Insurance Claim law : इंश्योरेंस (Insurance Claim law) अपनी आर्थिक सुरक्षा के उद्देश्य से किया जाता है। वाहन व्यक्ति की एक संपत्ति होती है जहां उसे अपनी संपत्ति से जुड़े हुए सभी अधिकार प्राप्त होते हैं। मोटर व्हीकल एक्ट किसी भी वाहन का आवश्यक इंश्योरेंस किए जाने का निर्देश देता है।हालांकि वहां पर ऐसा इंश्योरेंस थर्ड पार्टी होता है अर्थात कोई भी ऐसे वाहन का इंश्योरेंस होना चाहिए जिससे किसी दूसरे को नुकसान होने की संभावना है।
मोटर व्हीकल एक्ट के अंतर्गत जिस व्यक्ति को वाहन से नुकसान होता है वह तो दावा कर सकता है, (How To Claim Vehicle Insurance) इसी के साथ एक व्यवस्था और है जहां पर किसी व्यक्ति को ऐसा नुक्सान होता है जो वाहन स्वामी से संबंधित होता है।
गाड़ी चोरी होने पर ऐसे प्राप्त करें बीमा
जब कभी गाड़ी चोरी होती है, तब उसकी रिपोर्ट संबंधित पुलिस थाना क्षेत्र के अंतर्गत फौरन की जानी चाहिए। जल्द से जल्द पुलिस थाने के अधिकारियों को इस बात से अवगत कराया जाना चाहिए कि उनके थाना क्षेत्र के अंतर्गत उसके स्वामित्व का वाहन चोरी चला गया है। पुलिस इन प्रकरण में अचानक रिपोर्ट दर्ज नहीं करती है बल्कि पहले जांच करती है जांच के पश्चात यह पाती है कि उनके थाना क्षेत्र से वाकई कोई वाहन चोरी गया है तब पुलिस दंड प्रक्रिया संहिता 154 के अंतर्गत रिपोर्ट दर्ज कर लेती है। यह रिपोर्ट कंप्यूटर पर होती है।
इस रिपोर्ट के दर्ज होने के बाद पुलिस मामले को अनुसन्धान करती है और चोर को पकड़ने का प्रयास करती है। जब कभी ऐसा वाहन चोर नहीं मिलता हिअ तब पुलिस उस मामले में अपनी खत्म रिपोर्ट प्रस्तुत कर देती है, जिसे क्लोजर रिपोर्ट कहा जाता है।
बीमा कंपनी से क्लेम राशि प्राप्त करने का अधिकार
जब गाड़ी का मालिक को न्यायलय में प्रस्तुत की गई क्लोजर रिपोर्ट और उस पर न्यायलय का आदेश प्राप्त हो जाता है तब गाड़ी का मालिक इन दस्तावेजों को लेकर बीमा कंपनी के समक्ष उपस्थित होता है और एक साधारण आवेदन के माध्यम से बीमा कंपनी को इस बात की जानकारी देता है कि पुलिस ने मामले में अनुसंधान कर लिया है और अनुसंधान के बाद पुलिस को चोरी गया वाहन मिला नहीं है। इस स्थिति में वाहन मालिक बीमा कंपनी से उसके चोरी गए वाहन के संबंध में क्लेम राशि प्राप्त करने का अधिकारी है।
सामान्य रूप से तो बीमा कंपनी जिस भी मामले में पुलिस क्लोजर रिपोर्ट प्रस्तुत कर देती है। क्लेम की राशि वाहन के मालिक को प्रदान कर देती है, लेकिन अगर बीमा कंपनी द्वारा ऐसी किसी राशि किसी अन्य कारण से भी नहीं दी जाती है तब गाड़ी के मालिक के पास कानूनी अधिकार होता है कि वे न्यायालय के समक्ष जाए और जाकर न्यायालय से ही कहे कि उसके द्वारा वाहन का बीमा करवाया गया और बीमा की शर्त को बीमा कंपनी द्वारा माना नहीं जा रहा है।
ये है कानूनी अधिकार
एक बीमा कंपनी और वाहन के स्वामी इन दोनों का रिश्ता आपस में सेवादाता और ग्राहक का है इसलिए इस मामले में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 लागू होता है। जब कभी बीमा कंपनी ऐसा इंश्योरेंस देने से इंकार कर देती है जिस मामले में पुलिस द्वारा क्लोजर रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी गई है और यह कह दिया गया है कि ढूंढने का प्रयास करने के बाद भी वाहन नहीं प्राप्त हुआ तब ग्राहक कंज़्यूमर फोरम में इसकी शिकायत कर सकता है।
दुर्घटना में होने वाली क्षति से संबंधित प्रकरण वाहन दुर्घटना क्लेम के न्यायालय में जाता है जो आमतौर से जिला न्यायालय में ही लगता है पर फर्स्ट पार्टी इंश्योरेंस के मामले कंज्यूमर फोरम के समक्ष जाते हैं।कंजूमर फोरम में किसी भी मामला संस्थित करने हेतु बहुत कम कोर्ट फीस देना होती है और शीघ्र से शीघ्र पक्षकारों को न्याय दे दिया जाता है।
कंज्यूमर फोरम मामले में यह देखती है कि आखिर बीमा कंपनी द्वारा किसी व्यक्ति को इंश्योरेंस की राशि देने से इंकार क्यों किया गया है। अगर कोई कारण अनैतिक होता है जहां पर इंश्योरेंस की शर्तों का उल्लंघन किया जाता है तब फोरम इंश्योरेंस कंपनी को यह आदेश देती है कि उसे ऐसी इंश्योरेंस राशि देना पड़ेगी क्योंकि वह अपनी शर्तों से बाध्य है और उसने इन शर्तों के आधार पर किसी ग्राहक को कोई बीमा बेचा है और उससे प्रीमियम की राशि प्राप्त की है।
इस प्रकार वाहन चोरी के मामले में इंश्योरेंस कंपनी से क्लेम प्राप्त किया जा सकता है। यह क्लेम केवल चोरी ही नहीं बल्कि किसी वाहन में टूट-फूट होने पर भी प्राप्त किया जा सकता है।