क्रेडिट कार्ड के इस्तेमाल में पारदर्शिता लाने और कार्डधारकों के अधिकारों की रक्षा के लिए आरबीआई लगातार कार्ड जारी करने वाले बैंकों पर नए नियम लागू कर रहा है. कुछ नए बदलाव 1 जून से लागू हुए है. ऩई गाइडलाइन में कार्डधारकों के लिए नए नियम बनाए गए हैं, साथ ही क्रेडिट कार्ड जारी करने वाले बैंकों और एनबीएफसी के लिए कुछ जिम्मेदारियां तय की हैं. आरबीआई की गाइडलाइन में क्रेडिट कार्ड से जुड़ी खामियों के लिए बैंकों को जवाबदेह बनाया गया है.
क्रेडिट लिमिट में बढ़ोतरी (To increase the limit) : बैंकों का कहना है कि वे क्रेडिट स्कोर, इनकम, समय पर भुगतान आदि के आधार पर क्रेडिट लिमिट बढ़ाएंगे. इसमें कार्ड बदलना और खर्च करने के लिए राशि को बढ़ाना शामिल हो सकता है।.अब तक ऐसा होता रहा कि बैंक पहले खुद क्रेडिट लिमिट बढाने के फैसले लेता था, बाद में कार्डधारकों को इस बारे में जानकारी उपलब्ध कराता था. कई बार तो वह उपभोक्ता को अपनी मर्जी से क्रेडिट कार्ड भेज देते थे. मगर अब बैंकों को क्रेडिट लिमिट बढ़ाने या अपग्रेड करने की अनुमति उपभोक्ताओं से लेनी होगी. कार्डधारकों की जानकारी के बिना सीमा बढ़ाना और उस पर शुल्क लगाना संभव नहीं है.यदि राशि वापस करने के अलावा शुल्क लिया जाता है, तो उन्हें कार्डधारकों को शुल्क की दोगुनी राशि का भुगतान करना होगा. कार्ड रखने वाले इस संबंध में आरबीआई लोकपाल से भी संपर्क कर सकते हैं. यह नियम कार्ड लोन पर भी लागू होगा.
मिनिमम पेमेंट के बारे में भी जानना जरूरी है.( Understanding the minimum payment) : अधिकांश लोग अपने क्रेडिट कार्ड के पूरे बिल के बजाय मिनिमम बैलेंस का पेमेंट करते हैं. यह आमतौर पर क्रेडिट कार्ड की शेष राशि का पांच प्रतिशत तक होता है. ग्राहक न्यूनतम राशि का भुगतान करने पर मोटे ब्याज का बोझ वहन करते हैं. आरबीआई ने सुझाव दिया है कि कार्ड देने वाले बैंक उपभोक्ताओं को इस बारे में जागरूक करें. बैंकों को बिल पर यह स्पष्ट करना होगा कि हर महीने सिर्फ न्यूनतम राशि का भुगतान करने से बकाया राशि का भुगतान करने में कुछ साल लगेंगे. आरबीआई का मानना है कि इससे उपभोक्ताओं को अपने बिलों का तेजी से भुगतान करने और ब्याज के बोझ से बचने में मदद मिलेगी.नए नियमों के तहत आरबीआई ने बैंकों को एक ही पेज पर क्रेडिट कार्ड से जुड़ी अहम जानकारी देने का निर्देश दिया है. बैंकों को अब चार्जेज, बैलेंस ट्रांसफर, लेट पेमेंट फीस और लागू होने वाले इंटरेस्ट रेट के बारे में बताना होगा. अगर बैंक कार्ड से जुड़े नई फीस लाते हैं तो उन्हें इसके बारे में ग्राहकों को एक महीने पहले सूचना देनी है. अगर उन्हें लगता है कि नए शुल्क कार्डधारकों के लिए बोझ होंगे, उन्हें उस कार्ड को अपने कब्जे में लेने का अधिकार होगा. यदि बैंक नए कार्ड के आवेदन को अस्वीकार करते हैं तो भी उन्हें कारणों के बारे में लिखित रूप में बताना होगा. क्योंकि यदि ग्राहक एप्लिकेशन रिजेक्ट होने का कारण जानेगा, तभी उस संबंध में सावधान रहेगा. उदाहरण के लिए, यदि क्रेडिट स्कोर कम है, तो आवेदक इसे बढ़ाने का प्रयास कर सकता है.
कार्ड गुम होने पर क्या करें : क्रेडिट कार्ड के कहीं गिरने और उसके माध्यम से अनाधिकृत लेनदेन होने की स्थिति में होने वाले नुकसान को कवर करने के लिए बीमा पॉलिसी ली जा सकती है. कार्ड कंपनियां ग्राहक की सहमति से यह पॉलिसी उपलब्ध करा सकती हैं. ऐसे में कभी कार्ड से लेनदेन में धोखाधड़ी होती है तो बीमा कंपनी इसकी भरपाई करती है. ऐसे मामलों में ग्राहकों की कोई गलती नहीं होती है और न ही कार्ड जारी करने वाली कंपनियां इसकी जिम्मेदारी लेती है. बीमा कंपनियों की ओर से इससे होने वाले नुकसान का ध्यान रखा जाता है. नया नियम कहता है कि कार्ड खो जाने की स्थिति में कार्ड धारक को तीन दिनों के भीतर बैंकों को इस मामले में जानकारी देनी चाहिए. इसके बाद ही हुए नुकसान के मुआवजे का अधिकार होगा.
यदि कोई ग्राहक अपना क्रेडिट कार्ड कैंसल कराना चाहता है तो एप्लिकेशन मिलने के सात दिनों के भीतर बैंकों को प्रक्रिया पूरी करनी होगी. अगर बैंक ऐसा नहीं करते हैं तो आठवें दिन से 500 रुपये तक का जुर्माना लगाया जाएगा. कार्ड तभी रद्द होगा जब कार्डधारक पूरी बकाया राशि का भुगतान कर देगा. यदि कार्ड का एक वर्ष तक उपयोग नहीं किया जाता है, तो बैंकों के पास इसे रद्द करने का अधिकार है. बैंकों और एनबीएफसी को 30 दिनों का नोटिस देना आवश्यक है. यदि ग्राहक अभी भी जवाब नहीं देता है, कार्ड रद्द कर दिया जाएगा. यदि कार्ड प्राप्त होने के 30 दिनों के भीतर कार्ड सक्रिय नहीं होता है, तो जारीकर्ता आपसे ओटीपी के माध्यम से इसे सक्रिय करने के लिए कहेगा. अगर ग्राहक अभी भी जवाब नहीं देता है.. तो सात दिनों के बाद कार्ड को चार्ज किए बिना कार्ड को रद्द करना संभव है.