चतुर्दिक विकास के पर्याय बने योगी आदित्यनाथ, संकल्प पत्र में किए गए वायदों को पहनाया अमलीजामा

-संकल्प पत्र में किए गए वायदों को पहनाया अमलीजामा
-उपद्रवियों के साथ जैसे को तैसा की तर्ज पर कार्रवाई
-न्याय सबको तुष्टïीकरण किसी का नहीं के एजेंडे पर हो रहा काम
-तीन साल पूरे करने वाले योगी आदित्यनाथ बीजेपी के पहले सीएम

योगेश श्रीवास्तव

लखनऊ। प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने १९ मार्च को अपने कार्यकाल के तीन साल पूरे कर लिए। अपने तीन साल के कार्यकाल में उन्होंने प्रदेश के चतुर्दिक विकास की दिशा में जो अथक प्रयास किए वे अतुलनीय है। कानून व्यवस्था और विकास को लेकर उन्होंने जो कीर्तिमान स्थापित किए उस पर विपक्ष के आरोप-प्रत्यारोप बेमानी लगते है। प्रदेश में पन्द्रह वर्ष बाद भारतीय जनता पार्टी ने वर्ष २०१७ में प्रचंड बहुंमत के साथ सत्ता में लौटी थी।

तीन सौ बारह सीटों के साथ भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी। चुनाव नतीजे आने के बाद जब लखनऊ से दिल्ली तक नेतृत्व को लेकर माथापच्ची शुरू हुयी तो पार्टी के कद्दावर और कट्टïर हिन्दूवादी नेता के रूप मे सांसद योगी आदित्यनाथ का नाम आगे आया। उनके नाम पर सदन के सदस्यों के अलावा पार्टी के अदना से आला पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं ने उन्हे प्रदेश का नेतृत्व दिए जाने पर केन्द्रीय नेतृत्व के फैसलें पर अपनी मुहर लगाई। कल्याण सिंह और प्रदेशाध्यक्ष रह चुके विनय कटियार के बाद योगी आदित्यनाथ को कट्टïरहिन्दूवादी छवि का नेता माना जाता है।

उनकी जिस तरह छवि है उसे वह साकार भी कर रहे है। प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने अयोध्या मे ंजिस प्रकार दीपोत्सव,मथुरा में होली और जन्माष्टïमी के आयोजनो में हिस्सा लिया उससे यह स्पष्टï हो गया कि प्रदेश की जनता ने जिस अपेक्षा और आकांक्षा के साथ उन्हे प्रदेश का नेतृत्व सौंपा था उसमें कोई चूक नहीं हुई। वर्ष २०१७ से पहले प्रदेश में पन्द्रह वर्षो तक गठबंधन और जातीय आधारित राजनीतिक करने वाले दलों की सरकारें रही। इन सरकारों में प्रदेश में जहां प्रदेश की कानून व्यवस्था बद् से बद्तर हुई तो विकास के मामलें में प्रदेश मीलों पीछे चला गया।

विरासत में मिली आर्थिक जर्जरता और पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी कानून व्यवस्था का पटरी पर लाना किसी भी सरकार के मुखिया के लिए बड़ी चुनौती होता,लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इन सारी चुनौतियों का बखूबी सामना ही नहीं किया बल्कि उनपर पार भी पाया। किसी भी सरकार के लिए प्रदेश की कानून व्यवस्था का सुदृढ़ रखना बड़ी चुनौती होता है। वर्ष २०१७ से पहले प्रदेश मे ंरही सरकारों ने जातीय राजनीति के साथ तुष्टïीकरण की राजनीति का जो खेल खेला,उसी का नतीजा रहा कि प्रदेश में शांति सौहार्द का वातावरण एक चुनौती बन गया था लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शपथ लेने के बाद जिस तरह न्याय सबकों तुष्टïीकरण किसी का नहीं के फार्मूले पर काम किया उसी का परिणाम है कि पिछले तीन वर्षो में इस तरह की कोई साम्प्रदायिक दंगा या अराजकता जैसी स्थिति नहीं हुई, जिससे आमजनमानस प्रभावित होता। सीएए और एनआरसी को लेकर एक वर्ग विशेष द्वारा विरोध दर्ज कराने के नाम पर जो उपद्रव किया गया। उसकों उन्हीं की भाषा में जवाब भी दिया गया। यह पहला मौका है जब प्रदेश की सड़कों पर खुलेआम उप्रदव करने और सड़कों पर असलहे लहराने वालों के खिलाफ न सिर्फ सख्त कार्रवाई हुयी बल्कि उनके द्वारा जो सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाया गया उसकी भरपाई भी उन्हीे से की जा रही है।

इस तरह की कार्रवाई से साफ है कि कानून व्यवस्था से खिलवाड़ करने वाले किसी भी वर्ग के प्रति सरकार का रवैया नरम नहीं रहा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के रूप मे दंगाइयों उपद्रवियों से निपटने के लिए जो कार्रवाई की वह अपने आप में एक मिसाल बनती दिख रही है। हालांकि उपद्रवियों की फोटो सार्वजनिक स्थानो पर लगाए जाने पर उच्चन्यायालय स्वत: संज्ञान लेते हुए उन्हे हटाए जाने का आदेश दिया। सरकार उच्चन्यायालय के इस आदेश के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय गई है। लेकिन उपद्रवियों के खिलाफ योगी सरकार की पहल का व्यापाक जनसमर्थन मिल रहा है।

इन सबके अलावा अयोध्या में रामजन्मभूमि पर फैसला आने पर और कश्मीर से धारा ३७० हटाए जाने पर प्रदेश में किसी तरह की कोई अप्रिय घटना न होने देना भी योगी आदित्यनाथ के राजनीतिक कौशल की एक बड़ी उपलब्धि माना जा सकता है। अपने तीन साल के कार्यकाल में उनकी एक उपलब्धि यह भी रही कि वर्ष २०१९ में हुए लोकसभा चुनाव से लेकर विधानसभा के विभिन्न सीटों पर हुए उपचुनावों में उन्होंने भाजपा की जीत का जो तारतम्य बनाए रखा है उससे एक बात और साफ हो गयी कि योगी आदित्यनाथ अपने केन्द्रीय नेतृत्व के साथ जनता की कसौटी पर खरे उतरे है।

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