नई दिल्ली (हि.स.)। सुप्रीम कोर्ट बिलकिस बानो केस के दोषियों की समय से पहले रिहाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 11 अक्टूबर को सुनवाई करेगा। आज याचिकाकर्ता की ओर से कोर्ट में लिखित दलीलें दाखिल की गईं। इस मामले की सुनवाई जस्टिस बीवी नागरत्ना की अध्यक्षता वाली बेंच कर रही है।
इसके पहले सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हम छूट की नीति पर सवाल नहीं उठा रहे हैं बल्कि केवल इन लोगों को दी गई छूट पर सवाल उठा रहे हैं। सुनवाई के दौरान दोषियों की ओर से वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा ने कहा था कि आजीवन कारावास की सजा पाने वाले प्रत्येक व्यक्ति को सुधार का मौका भी दिया जाता है तो अपराध जघन्य होने के आधार पर सुधार को बंद नहीं किया जा सकता है। तब कोर्ट ने कहा था कि हम छूट की नीति पर सवाल नहीं उठा रहे हैं बल्कि केवल इन लोगों को दी गई छूट पर सवाल उठा रहे हैं। कोर्ट ने कहा था कि हम दूसरे सवाल पर हैं कि छूट देना सही है या नहीं। हम छूट की अवधारणा जो सर्वमान्य है, उसको समझते हैं लेकिन यहां हमारा सवाल सजा की मात्रा पर नहीं हैं। हम पहली बार छूट के मामले से नहीं निपट रहे हैं। तब लूथरा ने कहा कि 15 साल की हिरासत का जीवन पूरी तरह से कटा हुआ जीवन है।
कोर्ट ने 24 अगस्त को गुजरात सरकार से पूछा था कि दोषियों की रिहाई पर प्राधिकरण ने स्वतंत्र विवेक का इस्तेमाल कैसे किया। आखिरकार प्राधिकरण कैसे रिहाई देने की सहमति पर पहुंचा। 17 अगस्त को कोर्ट ने गुजरात सरकार से सख्त लहजे में पूछा था कि रिहाई की इस नीति का फायदा सिर्फ बिलकिस के गुनाहगारों को ही क्यों दिया गया। जेल कैदियों से भरी पड़ी है। बाकी दोषियों को ऐसे सुधार का मौका क्यों नहीं दिया गया। कोर्ट ने गुजरात सरकार से पूछा था कि नई नीति के तहत कितने दोषियों की रिहाई हुई।
कोर्ट ने पूछा था कि बिलकिस के दोषियों के लिए एडवाइजरी कमेटी किस आधार पर बनी । कोर्ट ने पूछा था कि जब गोधरा की कोर्ट में मुकदमा नहींं चला तो वहां के जज से राय क्यों मांगी गई। 9 अगस्त को बिलकिस की ओर से कहा गया था कि नियमों के तहत उन्हें दोषी ठहराने वाले जज से राय लेनी होती है। इसमें महाराष्ट्र के दोषी ठहराने वाले जज द्वारा कहा गया था कि दोषियों को छूट नहीं दी जानी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर, 2022 में बिलकिस बानो के दोषियों की रिहाई से जुड़े मामले में दायर बिलकिस की पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी थी। बिलकिस बानो की पुनर्विचार याचिका में मांग की गई थी कि 13 मई, 2022 के आदेश पर दोबारा विचार किया जाए। 13 मई, 2022 के आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि गैंगरेप के दोषियों की रिहाई में 1992 में बने नियम लागू होंगे। इसी आधार पर 11 दोषियों की रिहाई हुई है।