मनरेगा में अब और नहीं होगी गड़बड़ी, जानिए क्या है मोदी सरकार का प्लान

Mgnrega Audit: जब से मोदी सरकार सत्ता में आयी है तब से देश में कई सकारात्मक बदलाव देखने को मिले हैं, फिर चाहे वो राम मंदिर का निर्माण हो या फिर देश की अर्थव्यवस्था का पुनरुद्धार करना हो। लेकिन अभी भी कुछ ऐसी योजनाएं हैं जहां सरकार का पैसा तो लग रहा है लेकिन उसमें कोई भी सकारात्मक बदलाव नहीं दिखाई दे रहे हैं और इसका सबसे बड़ा उदहारण है ‘मनरेगा’।

सकारात्मक बदलाव

सकारात्मक बदलाव अभी हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ग्रामीण क्षेत्र में होने वाली योजना की समीक्षा बैठक की थी जहां पर उन्होंने कई कल्याणकारी योजनाओं को हरी झंडी दिखाई थी। वहीं इस बैठक में पीएम मोदी ने मनरेगा जैसी योजना पर अपनी चिंता व्यक्त की थी। सरकार समय-समय पर लोगों के हितों और उन तक सही व्यवस्था पहुंचाने के लिए सकारात्मक बदलाव करती रहती है। इसी के चलते अब इसमें Mgnrega से संबंधित एक Audit भी शामिल होने वाली है।

द इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, मनरेगा फंड की मांग में विसंगति के मूल कारण का पूर्ण रूप से पता लगाने के लिए केंद्र 25 राज्यों का ऑडिट कर रहा है। केंद्रीय लेखापरीक्षा दल 341 ब्लॉकों में स्थित 1,360 ग्राम पंचायतों का दौरा कर रहे हैं। केंद्र के द्वारा दिए गए 59,000 करोड़ रुपये से अधिक और 25,000 करोड़ रुपये की मांग के कारण ही Mgnrega Audit की आवश्यकता पड़ी है।

क्योंकि कोरोना महामारी को खत्म हुए बहुत समय बीत चुका है और उसके बाद अर्थव्यवस्था का पुनरुद्धार भी तेजी से हुआ है जिससे मनरेगा नौकरियों की मांग में गिरावट आनी चाहिए थी लेकिन ऐसा बिलकुल भी नहीं हुआ है ।

ग्रामीण विकास मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, ‘वहां पर राष्ट्रीय स्तर के मॉनिटर हैं। ब्लॉकों को लाल झंडी दिखा दी गई क्योंकि इनमें बहुत अधिक व्यय दिखाया गया था। यही कारण है कि ऑडिट टीमों को जमीनी स्तर पर जांच करने के लिए भेजा गया था कि क्या खर्च किए गए खर्च से उचित संपत्ति का निर्माण हुआ है।”

गंभीर कदम उठाए गए

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब केंद्र के द्वारा इस योजना में व्याप्त दुर्भावना को खत्म करने की अपनी मंशा पर गंभीर कदम उठाए हों। पहले भी सरकार इसे लेकर गंभीर हो चुकी है। मनरेगा के साथ बड़ी समस्या यह है कि यह अपने कई विरासती मुद्दों से घिरी हुई है। इसके लागू होने से लेकर पीएम मोदी के कार्यभार संभालने तक, सार्वजनिक बुद्धिजीवियों द्वारा शायद ही कभी इस योजना की ठीक तरह से छानबीन की गई थी। यह योजना सकारात्मक रूप से ग्रामीण सड़कों में वृद्धि, नयें वृक्षारोपण, अकुशल निर्माण, ग्रामीण तालाबों, तालाबों, रोक बांधों, जल संचयन टैंकों, बांध, सिंचाई चैनलों, मौजूदा जल संसाधनों के नवीकरण, सूखे और कृषि उत्पादकता आदि से जुड़ी हुई है। डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर आरम्भ करने से पहले पीएम मोदी की पहल ने भी इसे पंख दिए थे।

इसके बाद योजना के तहत धन के आवंटन में काफी वृद्धि हुई। ग्रामीण विकास मंत्रालय की माने तो छह राज्यों बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा और उत्तर प्रदेश ने चालू वित्त वर्ष में रोजगार योजना में अकुशल श्रमिकों के ऊपर 45,770 करोड़ रुपये में से अब तक 17,814 करोड़ रुपये खर्च कर दिए है। जबकि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019-21 के मुताबिक , इन छह राज्यों में भारत की गरीब आबादी का 64.5% भाग है। इसके चलते उन्होंने इस साल अब तक मनरेगा फंड का 38.9% प्रयोग किया है।

शोषणकारी कार्य

संभवतः सरकार कार्यबल की भागीदारी के रुझानों से पूर्ण रूप से अवगत थी। यह योजना विशेष रूप से एससी, एसटी और महिलाओं को लाभ पहुंचाने के लिए बनाई गई थी। साल 2008 और 2019 के बीच, कार्यबल में एससी और एसटी की भागीदारी में काफी ज्यादा गिरावट देखने को मिली है। महिलाओं के मामले में यह बढ़ा है। लेकिन तथ्य यह है कि इतने कम वेतन पर उनका शोषण हुआ है। महिलाओं का रोजगार कुशल क्षेत्र में माना जाता है न कि अकुशल, कमरतोड़ और गड्ढा खोदने वाले शोषणकारी कार्यों में।

साल 2014 और 2019 के बीच, मोदी सरकार मनरेगा की स्थिरता को लेकर चिंतित थी लेकिन, कोविड के कारण होने वाली तबाही और लोगों की अपने गांवों में वापसी ने इसे पुनर्जीवित रखना ही उचित समझा।  ग्रामीण अर्थव्यवस्था में मांग को बनाए रखने के लिए वित्त वर्ष 21 में सरकारी आवंटन में 150 प्रतिशत से अधिक (वर्ष दर वर्ष) की वृद्धि सामने आयी है। जब से अर्थव्यवस्था में सुधार आना शुरू हुआ है तब से आवंटन में गिरावट आई है।

मनरेगा फंड में हेराफेरी

इस बीच मनरेगा अधिनियम की धारा 17 के द्वारा अनिवार्य एक सनसनीखेज Social Audit ने Mgnrega में भ्रष्टाचार के आरोपों को एक सांख्यिकीय औचित्य प्रदान किया है। जमीनी हकीकत के साथ आधिकारिक रिकॉर्ड की तुलना होने पर पाया गया कि 2017 और 2021 के बीच मनरेगा फंड में 935 करोड़ रुपये की हेराफेरी हुई थी। केंद्र ने राज्यों से ग्रामीण बुनियादी ढांचे के लिए 25 प्रतिशत से अधिक धन आवंटित नहीं करने की बात बोली है।

कुल मिलाकर संपत्ति या बुनियादी ढांचे के निर्माण, प्रशासनिक लागत और मजदूरी के तहत आवंटन बजट के 40 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होना चाहिए। शेष 60 प्रतिशत कृषि और संबंधित उद्योगों के लिए आरक्षित किया जाएगा। पिछले 17 सालों से चल रही इस मनरेगा योजना में अब सरकार को बड़े बदलाव लाने की काफी आवश्यकता है। जिससे धन की चोरी और दूसरी तरह की विसंगतियों से दूर गरीबों को सरकार की योजनाओं का लाभ मिल सके।

खबरें और भी हैं...

अपना शहर चुनें