अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का नया झटका : पहले टैरिफ अब नौकरियों के नाम पर दे रहे टेंशन, भारतीयों की बढ़ी चिंता

नई दिल्ली । अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पहले टैरिफ के नाम पर दुनिया को टैंशन में डाला अब नौकरियों के नाम पर डराने का काम कर रहे हैं। ट्रंप ने कई पॉलिसी में बदलाव किया है। अमेरिका में वीजा प्रतिबंधों और लोकल प्रोफेशनल्स की हायरिंग पर जोर ने भारतीय युवाओं के लिए विदेशी नौकरियों के अवसरों को सीमित कर दिया है। इससे गूगल में नौकरी मिलना मुश्किल हो सकता है। हालांकि चुनौतियों के बीच भारत में नए अवसर भी बन रहे हैं। ग्लोबल कंपनियां अब भारत में ही अपने ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स खोल रही हैं, जिससे देश के अंदर ही युवाओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर के प्रोजेक्ट्स पर काम करने का मौका मिल रहा है।

डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के दौरान एच-1बी जैसे वीजा प्रोग्राम्स को लेकर सख्ती बढ़ गई है, जिससे अमेरिकी कंपनियों को विदेशी टैलेंट हायर करने में दिक्कतें आने लगी हैं। इससे भारतीय इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स पर सीधा असर पड़ा है। टीसीएस, इन्फोसिस, विप्रो जैसी टॉप लेवल की आईटी कंपनियां बड़ी संख्या में भारतीय युवाओं को अमेरिका भेजती थीं। डोनाल्ड ट्रंप की नई नीतियों और लगातार आते स्टेटमेंट के चक्कर में उन्हें भी नई रणनीति बनानी पड़ी। बता दें कि ग्लोबल टेक्नोलॉजी लैंडस्केप में भारत दुनिया के सबसे बड़े आईटी टैलेंट हब के रूप में उभर कर सामने आया है। आईआईटी और आईआईएम जैसे संस्थानों से हर साल हजारों होनहार इंजीनियर और मैनेजमेंट प्रोफेशनल्स निकलते हैं। ये सभी दुनिया की टॉप कंपनियों में नौकरी का सपना देखते हैं। ज्यादातर लोगों का लक्ष्य एपल, माइक्रोसॉफ्ट और गूगल जैसी ग्लोबल कंपनियों में प्लेसमेंट की तैयारी करते हैं। लेकिन हाल ही में अमेरिका में बढ़ती प्रोटेक्शनिज्म नीतियों ने भारतीय आईटी क्षेत्र के लिए नई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं।

आईटी सेक्टर में यह बदलाव भारत को ग्लोबल टेक्नोलॉजी पावरहाउस बनाने की दिशा में मजबूत कदम है। अब जरूरी है कि स्टूडेंट्स सिर्फ विदेश में नौकरी पर निर्भर न रहकर देश में मौजूद खास अवसरों का भी भरपूर फायदा उठाएं। विदेश में हायरिंग में मुश्किलें बढ़ने के बाद कंपनियां अब भारत में ही अपने ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स खोलने पर फोकस कर रही हैं। माइक्रोसोफ्ट, गूगल अमेजोन जैसी दिग्गज कंपनियां भारत में ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स के जरिए आर एंड डी, एआई, क्लाउड जैसे अल्ट्रा-मॉडर्न सेक्टर्स में काम कर रही हैं। इससे भारत के इंजीनियरिंग स्टूडेंट्स और प्रोफेशनल्स के लिए देश में ही हाई-पेइंग नौकरियों के मौके बढ़ गए हैं। उन्हें खास प्रोजेक्ट के लिए विदेश भेजा जा सकता है।

आईआईटी और आईआईएम जैसे संस्थानों के प्लेसमेंट पर भी अमेरिकी पॉलिसी का असर देखने को मिल रहा है। जहां पहले बड़ी संख्या में स्टूडेंट्स को विदेशी कंपनियों में अच्छी सैलरी वाली नौकरी का ऑफर मिलता था, वहीं अब कंपनियां भारत में ही अच्छे पैकेज ऑफर कर रही हैं। इसका पॉजिटिव पहलू यह है कि अब टैलेंट ब्रेन ड्रेन के बजाय देश में ही काम कर रहा है, जिससे इकोनॉमी को भी मजबूती मिल रही है। भारतीय युवाओं को अपनी स्किल्स लगातार अपडेट करनी होंगी।

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