जातिगत जनगणना क्या है? जानिए इससे जुड़ी पूरी जानकारी सरल भाषा में, यहाँ मिलेगा आपको हर सवाल का जवाब

केंद्र की मोदी सरकार ने आखिरकार उस मांग को हरी झंडी दे दी, जिसे दशकों से सामाजिक न्याय की बुनियाद माना जा रहा था यानी जाति जनगणना. केंद्र की इस स्वीकृति के बाद बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने तुरंत प्रतिक्रिया दी और कहा, “जब हमने जाति जनगणना की मांग की थी, तब हमें ‘जातिवादी’ कहा गया. आज वही एजेंडा पूरी सरकार चला रही है. अभी बहुत कुछ बाकी है… हम संघियों को ऐसे ही नचाते रहेंगे.” इस फैसले से देश में न सिर्फ आरक्षण की राजनीति नया मोड़ ले सकती है, बल्कि सामाजिक योजनाओं और सत्ता संतुलन का समीकरण भी बदल सकता है. सवाल है कि क्या अब राजनीति जाति के आंकड़ों के भरोसे चलेगी या सामाजिक न्याय के सिद्धांतों पर?

 तो चलिए, अब एक-एक करके समझते हैं – जाति जनगणना क्या है, क्यों ज़रूरी है और इससे जुड़ी हर बात जो आपको पता होनी चाहिए.

1. जातिगत जनगणना क्या है?

जातिगत जनगणना एक ऐसा सर्वेक्षण होता है जिसमें लोगों की जातियों से संबंधित जानकारी इकट्ठी की जाती है. इसका उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को समझना होता है.

2. भारत में जातिगत जनगणना कब हुई थी?

जातिगत जनगणना पहली बार 1881 में ब्रिटिश काल में शुरू हुई. अंतिम विस्तृत जातिगत जनगणना 1931 में हुई थी. 2011 में Social Economic and Caste Census (SECC) हुआ, लेकिन जातिगत डेटा सार्वजनिक नहीं किया गया. 

3. जातिगत जनगणना क्यों ज़रूरी है?

  • आरक्षण और सामाजिक योजनाओं की प्रभावशीलता जानने के लिए.
  • वास्तविक जनसंख्या वितरण के आधार पर नीतियां बनाने के लिए.
  • सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने के लिए.

4. क्या 2021 में जातिगत जनगणना हुई?

2021 की जनगणना कोविड-19 के कारण स्थगित हुई. हालांकि केंद्र सरकार ने जातिगत जनगणना नहीं की, लेकिन बिहार सरकार ने 2023 में राज्यस्तरीय जातिगत सर्वेक्षण कराया.

5. SECC 2011 क्या था?

SECC 2011 (Socio Economic and Caste Census) एक व्यापक सर्वे था, जिसमें आर्थिक स्थिति और जाति की जानकारी ली गई थी. लेकिन इसकी जातिगत जानकारी अभी तक सार्वजनिक नहीं की गई है.

6. क्या OBC की जनसंख्या का कोई आधिकारिक आंकड़ा है?

नहीं. आखिरी बार OBC (Other Backward Classes) का आंकड़ा 1931 की जनगणना में मिला था. उसके बाद से कोई आधिकारिक डेटा उपलब्ध नहीं है.

7. जातिगत जनगणना से कौन-कौन सी समस्याएं हो सकती हैं?

  • सामाजिक विभाजन को और गहरा कर सकती है.
  • राजनीतिक लाभ के लिए इसका दुरुपयोग हो सकता है.
  • तकनीकी व प्रशासनिक कठिनाइयाँ हो सकती हैं.

8. इसे लेकर राजनीतिक बहस क्यों होती है?

कुछ दलों का मानना है कि जाति जनगणना से वंचित वर्गों को न्याय मिलेगा, जबकि कुछ का तर्क है कि इससे जातिवाद को बढ़ावा मिलेगा. असल में, यह राजनीतिक ताकत और नीतियों को प्रभावित करता है.

9. क्या बिहार ने जाति जनगणना की है?

हां, 2022-23 में बिहार ने अपनी ओर से जाति सर्वे कराया है. इसमें बताया गया कि OBC, EBC और SC/ST वर्गों की आबादी कुल का बड़ा हिस्सा है, जिससे राजनीतिक और सामाजिक बहस तेज़ हुई.

10. इससे क्या बदलाव आएंगे?

  • आरक्षण की समीक्षा हो सकती है
  • योजनाएं जाति-आधारित हो सकती हैं
  • राजनीतिक समीकरण बदल सकते हैं
  • कमजोर वर्गों को उनकी वास्तविक संख्या के अनुसार अधिकार मिल सकते हैं

11. विरोध क्यों होता है?

कुछ लोग मानते हैं कि इससे समाज में जाति के आधार पर बंटवारा और टकराव बढ़ सकता है. कुछ लोग इसे वोट बैंक की राजनीति भी मानते हैं.

12. क्या यह संविधान के खिलाफ है?

नहीं. अगर राज्य या केंद्र सरकार चाहें तो संविधानिक दायरे में रहकर जाति जनगणना करा सकते हैं. यह नीतिगत फैसला होता है.

13. आगे क्या होगा?

जाति जनगणना अब सिर्फ बहस नहीं रही, नीति और राजनीति का अहम मुद्दा बन चुकी है. आने वाले चुनावों और आरक्षण से जुड़े फैसलों में यह डेटा निर्णायक भूमिका निभा सकता है.

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