
कुछ रियायतें अमेरिका को दें…कुछ रियायतें अमेरिका से ली जाएं
नई दिल्ली । अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर 25 फीसदी टैरिफ लगाने के बाद भी भारत ने अमेरिका के साथ ट्रेड डील पर उम्मीद नहीं छोड़ी है। भारत एक इसतरह के समझौते को सिरे चढाने को कोशिश में है, जिससे अमेरिका के साथ उसका व्यापार संतुलित हो जाए, कृषि और डेयरी जैसे संवेदनशील क्षेत्रों को नुकसान भी न पहुंचे और व्यापार के मामले में चीन को बढ़त न मिले। इसकारण मोदी सरकार ने ट्रंप की बेसिर-पैर वाले दावों, धमकियों और आरोपों पर टकराव वाला रास्ता न अपनाकर संयम दिखा रही है। केंद्र ने अब प्रमुख मंत्रालयों से अपने-अपने अधीन आने वाले उन क्षेत्रों की सूची मांगी है, जिसमें अमेरिका को छूट मिल सकती है। ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान भारत ने जवाबी टैरिफ लगाए थे, लेकिन इस बार भारत ने ऐसा कदम नहीं उठाया है और इसके बजाय उन क्षेत्रों में रणनीतिक रियायतें देने पर काम कर रहा है, जो अमेरिका के लिए प्रमुख हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, मोदी सरकार का मानना है कि अमेरिका को रियायतें अगर समझदारी से दी जाएं, तब ये घरेलू अर्थव्यवस्था के लिए लाभकारी भी हो सकती हैं। गौरतलब है कि वर्ष 1991 के आर्थिक सुधार भी एक बाहरी संकट के चलते ही शुरू हुए थे। व्यापार समझौते पर वार्ता के लिए 25 अगस्त को अमेरिकी टीम भारत आ रही है। यह देखकर मोदी सरकार ने अब अपनी तैयारियां तेज कर दी हैं। ट्रंप के टैरिफ खतरों से निपटने की जद्दोजहद में लगे कई देशों की तरह भारत ने भी अब तक विवेकपूर्ण लेकिन टकराव से बचने वाला रुख अपनाया है, ताकि सीमित रियायतों के साथ अपने हितों की रक्षा हो सके। यानि सांप भी मर जाएं और लाठी भी नहीं टूटे।
भारत अमेरिका के साथ व्यापार समझौता करने के लिए जल्द बातचीत शुरू करने वाले देशों में शामिल रहा है। लेकिन, दोनों देशों के बीच अभी तक बात बनी है। बातचीत की धीमी प्रगति से वाशिंगटन गुस्सा है। अन्य देशों के साथ अमेरिका की वार्ताओं पर नज़र रखने वाले सूत्रों के अनुसार, अधिकांश देशों ने जल्दबाजी में अमेरिका के साथ इसतरह के समझौते किए जो एकतरफा साबित हुए और उन समझौता में उन्होंने अपेक्षा से अधिक खोया है। इसमें यूके और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भी शामिल हैं, जिनका अमेरिका के साथ व्यापार घाटा है।
मोदी सरकार फिलहाल कृषि उत्पादों जैसे सोयाबीन, मक्का और डेयरी पर शुल्क रियायत देने से बचना चाहती है। हालांकि, अमेरिका से आने वाले 55 प्रतिशत आयात पर शुल्क कम करने का प्रस्ताव दिया गया है, जिसे आगामी वार्ताओं में और बढ़ाया जा सकता है। यह ध्यान देने योग्य है कि जापान, कोरिया और एशियन जैसे देशों के साथ किए गए एफटीए में 80 फीसदी वस्तुओं पर टैरिफ शून्य किया गया था।
भारत को उम्मीद है कि अमेरिका भारत और चीन के बीच टैरिफ में 10-20 प्रतिशत का अंतर बनाए रखेगा। चीन पर अमेरिका ने 30 फीसदी टैरिफ लगाया है। सूत्रों के अनुसार, अमेरिका के साथ समझौते की आखिरी समयसीमा जो अभी अक्टूबर के आसपास मानी जा रही है, वह अगर सकारात्मक वार्ता होती है तब और पहले लाई जा सकती है। भारत के लिए मामला इसलिए भी जटिल है क्योंकि चीन अमेरिका के साथ व्यापार समझौता अंतिम चरण में है, जिसमें उसे बेहतर टैरिफ दर और संभावित द्वितीयक टैरिफ छूट मिल सकती है, जिसमें रूस से तेल आयात पर लगने वाला शुल्क और प्रस्तावित 10 प्रतिशत ब्रिक्स शुल्क शामिल हैं।