-यूपी में पहले इस तरह का हुआ प्रयोग रहा विफल
-मुस्लिम सहित हर वर्ग से लोगों को बनायेंगे मुख्यमंत्री
-सीएम के साथ ही हर साल बनायेगे चार डिप्टीसीएम
-आन्ध्र का फार्मूला यूपी में लागू की जद्दोजेहद में लगे राजभर
-योगेश श्रीवास्तव
लखनऊ। मिशन २०२२ में भाजपा को सत्ता से बेदखल कर सत्तारूढ़ होने की गलाकाट स्पर्धा छुटभैय्ये दलों और गठबंधनों में देखते बन रही है। सपा जहां चिल्लर पार्टियों के साथ भाजपा से दोचार होने का तानाबाना बुन रही है तो कांग्रेस हाशिए पर होने के बाद अकेले अपना दमखम दिखाने को बेताब है। इन सबसे इतर अभी कुछेक पार्टियों को लेकर तैयार हुए भागीदारी संकल्प मोर्चा ने डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को सीएम बनाने का आश्वासन देते हुए मोर्चे में शामिल होने का न्यौता दिया है, साथ ही आंध्रप्रदेश के फार्मूले पर पांच साल में पांच सीएम बनाए जाने का फार्मूला तैयार किया है। इन पांच सालों में पिछड़ा,दलित,सामान्य, मुस्लिम व एक अन्य वर्ग का सीएम बनाए जाने फार्मूला तैयार किया है। फिलवक्त यह फार्मूला आन्ध्रप्रदेश में लागू है जहां सीएम के अलावा पांच डिप्टीसीएम है और हर वर्ष वहां पांचों डिप्टीसीएम बदले जाते है। आन्ध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री एस जगन मोहन रेड्डी ने अपने मंत्रिमंडल में पांच उपमुख्यमंत्री बनाने का जो फ ार्मूला दो साल पहले निकाला था वही फ ार्मूला अब यूपी में सात दलों का गठबन्धन भागीदारी संकल्प मोर्चा अपनाना चाहता है। लेकिन सुहेलदेव समाज पार्टी के ओमप्रकाश राजभर और एस जगमोहन रेड्डी के फ ार्मूले में बड़ा अंतर यह है कि जहां आन्ध्रपदेश में केवल पांच डिप्टीसीएम का फ ार्मूला है वहीं ओमप्रकाश राजभर इससे दो कदम आगे हैं। वह चाहते है कि पांच साल की सरकार में पांच मुख्यमंत्री और हर साल चार उपमुख्यमंत्री बनाए जाएं। इसे लेकर न तो भागीदारी संकल्प मोर्चा के सहयोगी दलों की तरफ से कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है और न ही किसी अन्य राजनीतिक दल ने अपनी कोई प्रतिक्रिया दी है।
हालांकि राजभर का यह फार्मूला यूपी के लिए कोई नया नहीं है। इससे पहले बसपा-भाजपा के बीच पहले छह-छह महीने फिर ढाई-ढाई साल सरकार चलाने का करार हुआ था लेकिन यह मूर्तरूप नहीं ले सका था। भाजपा और बसपा के बीच 1996 के चुनाव के बाद किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत न मिल पाने के कारण विधानसभा निलम्बित रही और प्रदेश में एक साल तक राष्ट्रपति शासन लगा रहा। इसके बाद भाजपा. बसपा ने मिलकर एक रास्ता निकाला और दोनो दलों के नेताओं को छह-छह महीने के मुख्यमंत्री बनाए जाने की बात पर मुहर लगाई गयी। हांलाकि यह मतभेद एक साल के अंदर ही सामने आ गये। बसपा नेत्री मायावती ने तो अपना कार्यकाल पूरा कर लिया पर कल्याण सिंह के मुख्यमंत्री बनने के बाद अपनी पार्टी का समर्थन कुछ महीनों बाद ही वापस ले लिया। इस तरह का प्रयोग देश में पहली बार हुआ था। यूपी के बाद इस तरह का प्रयोग दो दशकों के बाद आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री एस जगन मोहन रेड्डी ने वर्ष 2019 में किया। 25 सदस्यीय मंत्रिमंडल में पांच उपमुख्यमंत्री बनाए जिसमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग अल्पसंख्यक और कापू समुदाय के एक एक उपमुख्यमंत्री बनाए जाने की बात कही। हालांकि ओमप्रकाश राजभर का फ ार्मूला और भी अलग है। राजभर का मानना है कि हर साल मुख्यमंत्री को बदल दिया जाएगा। उनका यह भी कहना है कि भागीदारी संकल्प मोर्चा की सरकार में हर साल चार उपमुख्यमंत्री बनाए जाएगें। मतलब पांच साल की विधानसभा में 20 उपमुख्यमंत्री हो जाएगें।
पिछले चुनाव में भाजपा का साथ देकर उत्तर प्रदेश की सरकार में शामिल रहे सुहेलदेव समाज पार्टी के ओमप्रकाश राजभर अब भाजपा से अलग हो चुके हैं और उन्होंने पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा की जनाधिकार पार्टी, कृष्णा पटेल की अपना दल (कमेरावादी) बाबू राम पाल की राष्ट्र उदय पार्टी, राम करन कश्यप की वंचित समाज पार्टी, राम सागर बिंद की भारत माता पार्टी और अनिल चौहान की जनता क्रांति पार्टी जैसे दलों को मिलाकर भागीदारी संकल्प मोर्चा बनाया है। इस मोर्चे में असदुदीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस.ए.इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआइएमईएम) भी शमिल हो चुकी है। जबकि समाजवादी पार्टी से अलग होकर अपनी अलग पार्टी बनाने वाले सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल सिंह यादव भी अपनी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी को लेकर भागीदारी संकल्प मोर्चा के अलावा अन्य दलों के सम्पर्क में है।