मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने जारी किया निकाह का नया इकरारनामा, जानिए क्या हुए नए बदलाव

मुसलमानों के नाम पर अपनी ठेकेदारी की दुकान चलाने वाले लोग अब भारतीय संस्कृति के खिलाफ जाकर अपने हिसाब से इस्लाम के नए नियम कानून बनाने में लगे हुए हैं. इन लोगों का सीधा मकसद है कि सबसे पुरानी सभ्यता और संस्कृति के हिसाब से नहीं बल्कि अब अपने हिसाब से मुसलमानों का चलाना हैं. ये धीरे धीरे उन चीजों को अपने मजहब से खत्म करने में लगे हुए हैं जिनमें कहीं ना कहीं हिंदू संस्कृति की झलक दिखाई देती है. कहने का मतलब ये है कि ये लोग उस स्थिति को एक दम बदलने में लगे हुए हैं जो हमारी हजारों साल पुरानी संस्कृति का बोध ही ना करा पाए.

इन सब बातों का जिक्र हम इसलिए कर रहे हैं क्यों कि आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अब निकाह को आसान बनाने, दहेज का बहिष्कार करने और शादियों में फिजूलखर्ची रोकने के लिए इकरारनामा जारी किया है. 11 बिंदुओं वाले इकरारनामे से फिजूलखर्ची रुकेगी, जबकि निगाह सादगी के साथ हो सकेगा. इसमें मैरिज हाल के बजाय मस्जिदों में सादगी से निकाह करने, सिर्फ बाहर से आने वाले मेहमानों और घर वालों के लिए ही दावत का इंतजाम किए जाने की भी अपील की गई है.इन बातों का कोई विरोध नहीं, निकाह, विवाह सादगी के साथ होने भी चाहिए और बेवजह के तामझाम का विरोध होना ही चाहिए, लेकिन इन बिंदुओं में कुछ बिंदू ऐसे हैं, जो पर्सनल लॉ बोर्ड की कट्टरपंथी मानसिकता को दर्शाने के लिए काफी है.

निकाह में गलत रस्मों को खत्म करने के लिए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने 10 दिवसीय अभियान शुरू किया है. छह अप्रैल तक चलने वाले अभियान के तहत बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना सय्यद राबे हसनी नदवी और महासचिव मौलाना वली रहमानी ने इकरारनामा जारी किया है. इकरारनामे का मौलाना अरशद मदनी, किछोछा शरीफ के सज्जादानशीन मौलाना फखरुद्दीन जीलानी, जमात ए इस्लामी हिंद के अमीर सआदतउल्लाह हुसैनी, मजलिस उलमा के महासचिव मौलाना कल्बे जवाद ने समर्थन किया है.

अब ये भी जान लीजिए किआल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के इकरारनामें में कौन कौन से वो बिंदू हैं जिसका पालन करने के लिए मुस्लिमों से गुजारिश की गई है.

सबसे पहले कहा गया है कि निकाह में बेकार रस्म-ओ-रिवाज, दहेज की मांग, हल्दी की रस्म औररतजगा से परहेज करने की बात कही गई है.इकरारनामें में अगले बिंदू में कहा गया है कि बरात की रस्म को खत्म करने के लिए मस्जिदों में सादगी से निकाह कराया जाए.

अब इन दो रस्मों को खत्म करने के पीछे की सोच क्या हो सकती है? क्यों ये बोर्ड इन रस्मों को खत्म करना चाहता है. दरअसल आप गौर करेंगे तो इसमें भारतीयता और भारतीय संस्कृति की झलक दिखती है. मुस्लिम मुल्कों में होने वाले निकाह में इन रस्मों को नहीं निभाया जाता लेकिन चूंकि भारत में रहने वाले मुस्लिम इसी संस्कृति और सभ्यता को देखकर पले बढ़े और इसी संस्कृति से निकलकर उन्हें धर्म अपनाया इसलिए वे भारतीय शादियों में होने वाली इन रस्मों को मानते आ रहे हैं. पाकिस्तान या बांग्लादेश में भी कई परिवार हैं जो निकाह के दौरान इन रस्मों को मनाते हैं. लेकिन अरब की सोच से प्रेरित कुछ मुस्लिम अब इस भारतीय संस्कृति से जुड़ी रस्मों पर कट्टरपंथ का हथौड़ा चलाना चाहते हैं. इसके पीछे इनका क्या मकसद है और हल्दी रस्म खत्म करने के पीछे इनका उद्देश्य क्या है ये किसी से छिपा नहीं है. तो सवाल ये कि क्या मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को अब भारतीय संस्कृति से भी परेशानी होने लग गई है और क्या वो भारतीयता से जुड़ी हर चीज़ से इस्लाम से खत्म कर अरबी संस्कृति को भारतीय मुसलमानों पर थोपना चाहता है, अपनी राय आप कमेंट बॉक्स में ज़रूर दें.

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