
देश में इन दिनों आस्था का महापर्व कुंभ चल रहा है. जहां साधु-संतों से लेकर देश-विदेश से आए करोड़ों श्रद्धालु पवित्र संगम में डुबकी लगाने के लिए पहुंच रहे हैं. कुंभ मेला हर 12 साल के बाद हरिद्वार में गंगा, उज्जैन में शिप्रा, नासिक में गोदावरी और इलाहाबाद में त्रिवेणी संगम में आयोजित किया जाता है. ज्योतिष के अनुसार जब बृहस्पति कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है, तब इस मेले का आयोजन किया जाता है. हरिद्वार में 1 अप्रैल से कुंभ मेला शुरू होने वाला है.

बता दें कि कुंभ में शाही स्नान के अलावा कुछ अनोखे बाबा भी लोगों की बीच चर्चा का विषय बनते है. आज हम कुछ ऐसे ही बाबाओं के बारे में आपको बताने जा रहे हैं, जिन्हें देखकर लोग हैरान हैं. उसे पहले आपको कुम्भ का शाब्दिक अर्थ बता देते है. कुंभ का अर्थ होता है कलश. कुम्भ का पर्याय पवित्र कलश से होता है. इस कलश का हिन्दू सभ्यता में विशेष महत्व है. कुम्भ ऊर्जा का स्त्रोत है. वैदिक ग्रंथों के अनुसार कुंभ का शाब्दिक अर्थ “घड़ा, सुराही, बर्तन” होता है.

इस बार आपको विदेशों की चमक दमक में पहले वाले लोग भी नजर आएंगे लेकिन जब वो एक बार हिंदुस्तान घूमने आए तो फिर यहीं के होकर रह गए कुछ सतों की शरण में चले गए तो कुछ खुद ही साधु बन गए. महाकुंभ में ऐसी ही कई विदेशी श्रद्धालु और संतों की दुनिया दिखाई देती है. यूरोप से ही 30 सदस्यीय दल के साथ आई फ्रांसेस भारतीय संस्कृति से इतनी प्रभावित हुई कि उसने अपना नाम बदलकर सीता रख दिया. सीता ने बताया कि वो सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति की बहुत कायल है. उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में संतों को ईश्वर का रूप मना गया है. वो श्रीमद्भागवत गीता का अध्ययन करती हैं. गीता के कई श्लोक उन्हें याद हैं.
वही इनके अलावा स्वामी ज्ञानेश्वर पुरी ने बताया कि वह क्रोशिया के रहने वाले हैं और अब जयपुर में रहते हैं. उन्होंने बताया 2007 में उनके गुरु महामंडलेश्वर स्वामी महेश्वरानंद गिरि उनके देश आए थे. जहां पर उन्होंने महेश्वरानंद गिरि के प्रवचनों को सुना. उन्होंने बताया कि स्वामी जी ने कई ऐसी बातें बताई कि मुझे भारतीय संस्कृति और सनातन परंपरा बहुत ही अच्छी लगने लगी. इसके बाद 2007 में संन्यास ले लिया तब से वे संन्यासी की जिंदगी जी रहे हैं.