
-पार्टी भाजपा ने आठ दलों को मिलाकर बनाया हिस्सेदारी मोर्चो
-सपा के साथ आए सात दल कई और साथ आने को तैयार
-कांग्रेस बसपा फिलहाल अकेले लडऩे के फैसले पर अडिग
-राजभर के भागीदारी संकल्प मोर्चे के हो गए कई भाग
योगेश श्रीवास्तव
लखनऊ। मिशन-२०२२ फतेह करने के लिए सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी हो या फिर समाजवादी पार्टी दोनों ही दलों को छुटभैय्ये दलों का सहारा लेना पड़ रहा है। जबकि बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस ने अभी तक किसी के साथ तालमेल का एलान नहीं किया है। अभी तक यह दोनों ही दल अकेले दम पर चुनाव लडऩे के फैसले पर कायम है। सत्तारूढ़ भाजपा हो या मुख्यविपक्षी दल सपा दोनों को ही अपने से ज्यादा छुटभैय्ये दलों भरोसा है। सपा हो या भाजपा दोनों ही दल छोटे दलों को साथ लेकर अपना कुनबा बढ़ानें में लगे हुए है। भारतीय जनता पार्टी ने पिछले दिनों सपा द्वारा किए जा रहे मोर्चे के जवाब में हिस्सेदारी मोर्चे के गठन का एलान किया है।
इस मोर्चे में जो दल शामिल हुए है उनमें भारतीय मानव समाज पार्टी,मुसहर आंदोलन मंच(गरीब पार्टी)शोषित समाज पार्टी,मानवहित पार्टी,भारतीय सुहेलदेव जनता पार्टी,पृथ्वीराज जनशक्ति पार्टी,भारतीय समता समाज पार्टी,प्रगतिशील समाज पार्टी प्रमुख है। पिछले दिनों भाजपा मुुख्यालय में आयोजित एक प्रेसकांफ्रेस में प्रदेशाध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह ने इस मोर्चे के गठन का एलान किया साथ ही यह भी कहा कि इस मोर्चे के साथ आने से भाजपा को पिछड़ों दलितों,वंचितों और उपेक्षितों का व्यापाक समर्थन मिलेगा। इन दलों के साथ आने से पहले निषाद पार्टी और अपना दल(एस) भाजपा के साथ है इन दोनों ही दलों के साथ पिछड़ों का एक बड़ा वर्ग जुड़ा हुआ है इसलिए भाजपा ने$तृत्व को लगता है कि इस बार राह पहले से ज्यादा आसान होगी।
भाजपा को अगड़ों के साथ पिछड़ों दलितों का वोट सहेजनें की बड़ी चिंता है। अपनी जीत सुनिश्चित करने की गरज से समाजवादी पार्टी कोई जोखिम उठाने को तैयार नहीं है इसीलिए उसने अपने साथ छोटे दलों को इक_ïा करना शुरू कर दिया है। उसने जिन दलों को साथ लिया है उनमें राष्टï्रीय लोकदल,सुहेलदेव भारत समाज पार्टी,जनवादी पार्टी,राष्टï्रवादी कांग्रेस,महान दल और तृणमूल कांग्रेस शामिल है। हालांकि सपा के कुनबे में आने वाले दिनों में आम आदमी पार्टी(आप) के साथ आने की संभावना है। भाजपा का हिस्सेदारी मोर्चा और सपा के साथ आई इन चिल्लर पार्टियों का क्या जनाधार है इसका पता तो चुनाव में ही लगेगा।
क्योकि इसी तरह का प्रयोग २०१७ के विधानसभा चुनाव में हुआ था जब सुहेलदेव भारत समाज पार्टी के अध्यक्ष पूर्व मंत्री ओमप्रकाश राजभर की अगुवाई में भागीदारी संकल्प मोर्चा का गठन हुआ था जिसमें एआईएमआई,भीम आर्मी,जनअधिकार पार्टी,राष्टï्रीय उदय पार्टी,राष्टï्रीय उपेक्षित समाज पार्टी,जनक्रांति पार्टी,अपनादल(कमेरावादी)भारत माता पार्टी शामिल थी। इनमें से कुछ पार्टियों ने चुनाव भी लड़ा था जिनमें से केवल सुहेलदेव भारत समाज पार्टी को ही चार सीटे मिली थी बाकी किसी दल का खाता भी नहीं ख्ुाला था। इस बार भी इसी मोर्चे के चुनाव में बढ़चढ़ कर भागलेने की उम्मीद थी लेकिन ओम प्रकाश राजभर के सपा के साथ जाने के बाद भागीदार संकल्प मोर्चे के कई भाग हो गए है। इस मोर्चे का हिस्सा एआईएमआई के साथ भीम आर्मीे आजाद समाज पार्टी ने फिलवक्त राजभर से दूरी बना ली है।
आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चन्द्रशेखर आजाद बसपा से गठबंधन के इच्छुक है तो औवेसी का भी मानना है कि मुस्लिमों के नाम पर राजनीति करने वाली सपा कांग्रेस ने बीते सालों में मुस्लिमों को अपना बंधुआ बनाकर रखा हुआ है। फिलहाल उन्होंने किसी पार्टी के साथ गठबंधन का नहीं किया है। राजनीतिक जानकारों की माने तो औवेसी बिना किसी गठबंधन के अकेले दम पर चुनाव लड़ते है तो वे सबसे ज्यादा सपा बसपा और कांग्रेस को नुकसान पहुंचायेगे। भाजपा ने कभी मुस्लिम वोटों के साथ रहने का दावा नहीं किया है इस वोटबैंक पर इन्हीं तीन दलों द्वारा अपना दावा किया जाता रहा है। जानकारों को यह मानने में गुरेज नहीं जिस तरह औवेसी ने बिहार में कांग्रेस राजद गठबंधन को नुकसान पहुंचाया उसी तर्ज पर वे यहां भी अपने और बाकी विपक्षी दलों को भला न कर पाये लेकिन भाजपा का फायदा जरूर पहुंचायेगे।