
वाराणसी। काशी के महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर शवदाह के बारे में तो सब जानते हैं। लेकिन धधकती चिताओं के बीच नगर वधुओं का नृत्य चकित कर देने वाला है काशी के महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर शवदाह के बारे में तो सब जानते हैं। लेकिन धधकती चिताओं के बीच नगर वधुओं का नृत्य चकित कर देने वाला है। पर ये हकीकत है। यहां हर साल वासंतिक नवरात्र की सप्तमी तिथि को बनारस ही नहीं अपितु देश के कोने-कोने से नर्तकियां आती हैं, नृत्य करने।
ये परंपरा 354 साल से चली आ रह है। इस बार ये नगर वधुएं आठ अप्रैल की रात पेश करेंगी नृत्य। इसके पीछे कुछ धार्मिक मान्यता है तो एक मुगल काल की एक कहानी भी है। तो जानते हैं कि नर्तकियां महाश्मशान पर क्यों नृत्य करने आती हैं…
जानें क्या है इस परंपरा की मान्यता
इस संबंध में मान्यता है कि वासंतिक नवरात्र की सप्तमी तिथि की महानिशा को महा शमशान पर नृत्य करने वाली नगरवधुएं महाश्मशान नाथ को नृत्य व संगीतांजलि पेश कर ये दुआ करती हैं कि उनका अगला जन्म सम्मानजनक हो। इस तरह के शापित जीवन से मुक्ति मिले।
देश के अलग-अलग स्थानों से आती हैं नगरवधुएं
यहां आने वाली कोई भी नगर वधु नृत्य का पैसा नहीं लेती बल्कि मन्नत का चढ़ावा अर्पित करके जाती है। पश्चिम बंगाल (कलकत्ता), बिहार, दिल्ली, मुंबई समेत भारत के कई स्थानों से नगरवधुएं यहां पहुंचती हैं।
धधकती चिताओं के बीच नगर वधुओं का नृत्य अचंभित करने वाला
वासंतिक नवरात्र की सप्तमी तिथि की शाम बाबा महाश्मशान नाथ को समर्पित नगर वधुओं का नृत्य-संगीत देख हर कोई अचंभित हो जाता है। दरअसल नगर वधुएं पहले स्वरंजली प्रस्तुत करती हैं, फिर शुरू होता है धधकती चिताओं के बीच घुंघरुओं की झंकार का सिलसिला। ‘जिंदगी’ और ‘मौत’ का एक साथ एक ही मुक्ताकाशीय मंच पर प्रदर्शन हर किसी को अचंभित करने वाला होता है।
354 साल पुरानी है यह परंपरा
मणिकर्णिका घाट पर नगर वधुओं के नृत्य से संबंधित उपब्ध इतिहास के अनुसार ये परंपरा करीब 354 साल पुरानी है। इस संबंध में बाबा महामशानेश्वर महादेव मंदिर, मणिकर्णिका घाट के व्यवस्थापक गुलशन कपूर ने पत्रिका को बताया कि महा शमशान नाथ मे सजने वाली नगरवधुओं की इस महफिल का इतिहास राजा मानसिंह से जुड़ा है। शहंशाह अकबर के समय में राजा मान सिंह ने 16वीं शताब्दी में इस महाश्मशान नाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। उसके बाद वहां भजन-कीर्तन होना था। पर श्मशान होने की वजह से यहां कोई भी ख्यातिबद्ध कलाकर आने को राजी नहीं हुआ।
लेकिन इसकी जानकारी जब नगर वधुओं को हुई तो उन्होंने महाराज तक अपनी फरियाद पहुंचाई और इस समारोह में शरीक होने व नृत्य संगीत पेश करने की इजाजत मांगी। काफी सोच विचार के बाद राजा मान सिंह ने उनका आमंत्रण स्वीकार कर लिया, तभी से नगर वधुओं के नृत्य की परंपरा शुरू हुई। शिव को समर्पित गणिकाओं की यह भाव पूर्ण नृत्यांजली मोक्ष की कामना से युक्त होती है।
वासंतिक नवरात्र में ही मनाया जाता तीन दिवसीय उत्सव
इस संबंध में बाबा महामशानेश्वर महादेव मंदिर, मणिकर्णिका घाट के व्यवस्थापक गुलशन कपूर बताते हैं कि वासंतिक नवरात्र की पंचमी से सप्तमी तिथि तक बाबा महाश्मशाननाथ का वार्षिकोत्सव मनाया जाता है। इसके तहत पहले दिन यानी पंचमी तिथि को वैदिक रीति से रुद्राभिषेक होता है, ये आयोजन इस बार छह अप्रैल को होगा।
अगले दिन भोग भंडारा होगा जिसमें पंचमतार का भोग लगाया जाएगा। ये आयोजन सात अप्रैल होगा जबकि तीसरे व अंतिम दिन यानी सपत्मी तिथि को तंत्र पूजन और शाम को नगर वधुएं धधकती चिताओं के बीच नृत्य-संगीत का कार्यक्रम पेश करेंगी।