Hardik Patel Joins Bjp : क्या छोटे नेता से भाजपा में ‘सरदार’ बनने का सफर तय कर पाएंगे हार्दिक? पढ़ें नफे-नुकसान का गणित

 

Hardik Patel Joins Bjp: गुजरात के पाटीदार नेता हार्दिक पटेल (Hardik Patel) संभवत: गुरुवार को भाजपा का दामन थाम लेंगे। गुरुवार सुबह उन्होंने अपने घर पर पूजा-पाठ के बाद ट्वीट किया कि वे आज से नए अध्याय की शुरुआत करने जा रहे हैं और वे राष्ट्रसेवा के काम में छोटे से सिपाही की तरह काम करेंगे। हार्दिक ने दो हफ्ते पहले ही कांग्रेस छोड़ी है। उसके वे कह चुके हैं कि उन्होंने कांग्रेस में शामिल होकर तीन साल बर्बाद किए।

हार्दिक ने खुद को छोटा सिपाही बताया है। राजनीति की शतरंज में प्यादे का इस्तेमाल अमूमन बलि के बकरे की तरह होता है। गुजरात में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले हार्दिक ने जिस तरह से पाला बदलकर भाजपा का दामन थामा है, उससे एक बात तो साफ है कि वे सौराष्ट्र में अपनी राजनीतिक पकड़ को मजबूत करने के साथ ही चुनाव में ‘सरदार’ की भूमिका निभाने की आशा रखते हैं। इसी बेचैनी में उन्होंने कांग्रेस छोड़ी है। लेकिन यहां भी दो सवाल हैं। क्या भाजपा हार्दिक पर दायर मुकदमे को वापस लेगी या चुनाव तक मामले को टालकर मोलभाव की स्थिति पैदा करेगी, ताकि हार्दिक कोई बड़ा दावा न कर सकें। अंदरूनी सूत्रों की मानें तो भाजपा नहीं चाहेगी कि हार्दिक पार्टी के लिए कमजोरी बन जाएं।

हार्दिक के आने से भाजपा को क्या फायदा होगा ?

सौराष्ट्र में हार्दिक पाटीदारों के अकेले कद्दावर नेता नहीं हैं। नरेश पटेल की ताकत उनसे भी कहीं ज्यादा है। नरेश पटेल (Naresh Patel) के कांग्रेस में शामिल होने की अटकलें लंबे समय से चल रही हैं। सौराष्ट्र के 1.5 करोड़ पाटीदारों का दबदबा 70 सीटों पर है। 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले पाटीदार आंदोलन ने भाजपा को तगड़ा झटका दिया था। तब हार्दिक ने अल्पेश ठाकोर (Alpesh Thakore) के साथ मिलकर आंदोलन का नेतृत्व किया था और इससे भाजपा को काफी नुकसान हुआ। उसकी झोली में केवल 99 और कांग्रेस को 82 सीटें मिलीं। लेकिन यहां यह भी देखना होगा कि 11% पाटीदार वोटों में कड़वा पटेल के 60% और लेउवा पटेल के 40% वोट हैं। हार्दिक के साथी अल्पेश ठाकोर पहले ही भाजपा का दामन थाम चुके हैं। हार्दिक कड़वा पटेल में से आते हैं और भाजपा की सत्ता में कड़वा पटेल का दबदबा रहा है। भाजपा का लक्ष्य इस साल के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनाव में माधव सिंह सोलंकी के 1985 में जीते 149 सीटों का रिकॉर्ड तोड़ने का है और इसके लिए सौराष्ट्र में पूरी ताकत झोंकी जा रही है, जहां से 54 सीटें आती हैं। जाहिर है, हार्दिक की एंट्री से भाजपा को कड़वा पटेल वोटों के एकजुट होने की उम्मीद है।

कांग्रेस क्यों कमजोर पड़ी है

गुजरात में पिछले एक साल की उठापटक देखें तो पता चलेगा कि तीन बड़ी घटनाएं हुई हैं। पहले तो एंटी इनकंबेंसी (Anti Incumbency) को कम करने के लिए भाजपा अलाकमान ने तकरीबन पूरी सरकार ही बदल दी। फिर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल का निधन हो गया और तीसरी बड़ी घटना आम आदमी पार्टी (AAP) की गुजरात में एंट्री है। तीनों घटनाओं के साथ हार्दिक पटेल का भाजपा में जाना पार्टी को और नुकसान दे गया है। एक तो भाजपा ने तेजी से राज्य सरकार की छवि को सुधारना शुरू किया है। दूसरी तरफ कांग्रेस के कार्यकर्ता ऊहापोह की स्थिति में नरेश पटेल की पार्टी में एंट्री की उम्मीद लगाए बैठे हैं। इस बीच आम आदमी पार्टी के कदम रखने से भाजपा खुश है, क्योंकि इससे उसके वोट बैंक पर कम और कांग्रेस के वोट बैंक को ज्यादा नुकसान होने की संभावना है। अगर कांग्रेस नेतृत्व की टालमटोल वाली नीति के चलते नरेश पटेल आप के खेमे में चले जाते हैं तो कांग्रेस के लिए यह नाव में छेद होने जैसा मामला होगा।