गैंगरेप दोषियो की रिहाई पर नाराज बिलकिस बानो, जनहित याचिका पर SC करेगी आज सुनवाई

बिलकिस बानो रेप केस के 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ दाखिल जनहित याचिका पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। याचिका में कहा गया है कि इस पूरे मामले की जांच CBI ने की थी इसलिए गुजरात सरकार दोषियों को सजा में छूट का एकतरफा फैसला नहीं कर सकती।

सरकार का हलफनामा- नियम के तहत छोड़ा

दोषियों को रिहा करने पर गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है। गुजरात सरकार ने कहा है कि गृह मंत्रालय से मंजूरी मिलने के बाद ही दोषियों को रिहा किया गया है। रिमिशन पॉलिसी के तहत सभी दोषियों को जेल से छोड़ा गया है। इस मामले में PIL दाखिल होना कानून का दुरुपयोग है। किसी बाहरी व्यक्ति को आपराधिक मामले में दखल देने का अधिकार कानून नहीं देता है, इसलिए याचिका खारिज की जाए।

क्या होता है रिमिशन पॉलिसी?

गुजरात सरकार ने ये फैसला CrPC की धारा 433 और 433A के तहत लिया था। CrPC की इन दो धाराओं के तहत- संबंधित राज्य सरकार किसी भी दोषी के मृत्युदंड को किसी दूसरी सजा में बदल सकती है। इसी तरह उम्रकैद को भी 14 साल की सजा पूरी होने के बाद माफ कर सकती है।

इसी तरह संबंधित सरकार कठोर सजा को साधारण जेल या जुर्माने में और साधारण कैद को सिर्फ जुर्माने में भी बदल सकती है। इस आधार पर राज्य नीति बनाते हैं। जिसे रिमिशन पॉलिसी कहते हैं।

गुजरात सरकार ने बनाई थी समिति

बिलकिस बानो वाले मामले में 11 दोषियों में से एक राधेश्याम भगवानदास शाह ने सीधे गुजरात हाईकोर्ट में अपील दायर की। अपील में कहा था कि रिमिशन पॉलिसी के तहत उसे रिहा किया जाए।

जुलाई 2019 में गुजरात हाईकोर्ट ने ये कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि सजा महाराष्ट्र में सुनाई गई थी, इसलिए रिहाई की अपील भी वहीं की जानी चाहिए। दरअसल, बिलकिस बानो की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने इस केस को महाराष्ट्र ट्रांसफर किया था। जहां मुंबई की स्पेशल CBI कोर्ट में इन सभी को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी।

गुजरात हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दोषी भगवानदास सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। मई 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में गुजरात सरकार फैसला करे, क्योंकि अपराध वहीं हुआ था। कोर्ट के निर्देश पर ही गुजरात सरकार ने रिहाई पर फैसला लेने के लिए पंचमहल के कलेक्टर सुजल मायत्रा की अध्यक्षता में एक समिति गठित की।

समिति ने सर्वसम्मति से 11 दोषियों के समय से पहले रिहाई के पक्ष में फैसला दिया। इसके बाद गुजरात सरकार ने इन दोषियों की रिहाई पर मुहर लगा दी।

बिलकिस का परिवार खेत में छिपा था, तभी हमला हुआ

3 मार्च 2002 को दाहोद जिले के रणधीकपुर गांव में बिलकिस बानो के परिवार पर हमला हुआ था। दंगों की वजह से वे अपने परिवार के साथ एक खेत में छिपी थीं। तब बिलकिस की उम्र 21 साल थी और वे 5 महीने की गर्भवती थीं। दंगाइयों ने बिलकिस का गैंगरेप किया। उनकी मां और तीन और महिलाओं का भी रेप किया गया। परिवार के 7 लोगों की हत्या कर दी। इस हमले में 17 में से 14 लोग मारे गए। इनमें 6 का पता नहीं चला। हमले में सिर्फ बिलकिस, एक शख्स और तीन साल का बच्चा ही बचे थे।

‘हमें यकीन ही नहीं हो रहा कि बिलकिस से गैंगरेप करने वाले, मेरी 3 साल की बेटी को पटक-पटककर मार देने वाले, मेरे परिवार के सात लोगों की हत्या करने वालों को सरकार ने कैसे छोड़ दिया। ये सोचकर ही हमें डर लग रहा है। इस फैसले ने बिलकिस को तोड़ दिया है।’ ये बातें बिलकिस बानो के पति याकूब रसूल ने कहा। याकूब ने बातचीत में बताया कि दंगों के बाद से ही परिवार खौफ में जी रहा था। हमने 15 से ज्यादा बार घर बदला। हमने ये बार-बार बताया है कि हम डर में जी रहे है। पहले वे (सभी दोषी) पैरोल पर छूटकर आते थे तो डर लगता था। अब तो सरकार ने उन्हें रिहा ही कर दिया है