
नई दिल्ली (हि.स.)। बिलकिस बानो केस के दोषियों की समय से पहले रिहाई पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर सवाल उठाया। जस्टिस बीवी नागरत्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने गुजरात सरकार से पूछा कि दोषियों की रिहाई पर प्राधिकरण ने स्वतंत्र विवेक का इस्तेमाल कैसे किया। मामले की अगली सुनवाई 31 अगस्त को होगी।
दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने गुजरात सरकार से पूछा कि रिहाई देने के लिए सहमति वाली राय कैसे बनाई गई। सहमति वाली राय बनाने में भी विवेक का स्वतंत्र प्रयोग होना जरूरी है। कोर्ट ने कहा कि इसका व्यापक वजहों से समर्थन करने की जरूरत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने जेलों में भीड़भाड़ के संबंध में सवाल उठाते हुए कहा हम चाहते हैं कि भारत में 14 साल की सजा पूरी कर चुके सभी कैदियों के लिए सुधारात्मक सिद्धांत हो।
आज सुनवाई के दौरान बिलकिस के गुनहगारों में से एक राधेश्याम के वकील ने अपने मुवक्किल के अच्छे चाल-चलन को साबित करने के लिए कहा कि उनका मुवक्किल रिहाई के बाद वकालत कर रहा है। वो निचली अदालत में मोटर व्हीकल एक्सीडेंट क्लेम का वकील है। इस पर कोर्ट को आश्चर्य हुआ। जस्टिस बीवी नागरत्ना ने पूछा कि ये कैसे। क्या कोई सजायाफ्ता बतौर वकील प्रैक्टिस कर सकता है। तब राधेश्याम के वकील ने कहा कि वह अपनी सजा काट चुका है। तब कोर्ट ने कहा कि नहीं, दोषी तो अब भी है। उसकी तो सजा से पहले रिहाई हुई है।
बिलकिस के एक दोषी विपिन जोशी के वकील ने दलील दी कि बिलकिस के गुनहगारों की रिहाई में अगर कोई दोष है, तो इसका जवाब राज्य सरकार देगी। बिलकिस को जितना मुआवजा मिला है, उतना आज तक किसी भी रेप पीड़िता को नहीं मिला है। हालांकि, बिलकिस के साथ जो हुआ, उसकी भरपाई किसी मुआवजे से नहीं हो सकती।
इससे पहले भी कोर्ट ने 17 अगस्त को गुजरात सरकार से सख्त लहजे में पूछा था कि रिहाई की इस नीति का फायदा सिर्फ बिलकिस के गुनाहगारों को ही क्यों दिया गया। जेल कैदियों से भरी पड़ी है। बाकी दोषियों को ऐसे सुधार का मौका क्यों नहीं दिया गया। कोर्ट ने गुजरात सरकार से पूछा था कि नई नीति के तहत कितने दोषियों की रिहाई हुई। कोर्ट ने पूछा था कि बिलकिस के दोषियों के लिए एडवाइजरी कमेटी किस आधार पर बनी। कोर्ट ने पूछा था कि जब गोधरा के कोर्ट में मुकदमा नहीं चला तो वहां के जज से राय क्यों मांगी गई।
बिलकिस की ओर से 9 अगस्त को कहा गया था कि नियमों के तहत उन्हें दोषी ठहराने वाले जज से राय लेनी होती है। इसमें महाराष्ट्र के दोषी ठहराने वाले जज ने कहा था कि दोषियों को छूट नहीं दी जानी चाहिए। बिलकिस की ओर से वकील शोभा गुप्ता ने कहा कि 13 मई, 2022 को गुजरात सरकार के निर्णय में इस तथ्य का कोई उल्लेख नहीं है और राज्य सरकार ने भी जज की राय से अलग राय होने का कोई कारण भी नहीं बताया। शोभा गुप्ता ने कहा कि यह छूट के लिए उपयुक्त मामला नहीं है, भले ही आजीवन कारावास की सजा को 14 साल के रूप में देखा जाए।
याचिका में गुजरात सरकार के दोषियों की रिहाई के आदेश तत्काल रद्द करने की मांग की गई है। दिसंबर, 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो के दोषियों की रिहाई से जुड़े मामले में दायर बिलकिस की पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी थी। बिलकिस बानो की पुनर्विचार याचिका में मांग की गई थी कि 13 मई, 2022 के आदेश पर दोबारा विचार किया जाए। 13 मई, 2022 के आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि गैंगरेप के दोषियों की रिहाई में 1992 में बने नियम लागू होंगे। इसी आधार पर 11 दोषियों की रिहाई हुई है।