
निरूपा रॉय का फिल्मों में उनका आगमन संयोगवश ही हुआ. उनके पति यूं तो राशनिंग इंस्पेक्टर की नौकरी करते थे, मगर उन्हें फिल्मों में हीरो बनने का काफी शौक था. मुंबई में अपनी पोस्टिंग के दौरान एक दिन उनकी नज़र ‘राणकदेवी’ के विज्ञापन पर पड़ी, जिसमें अभिनय के इच्छुक कलाकारों को स्क्रीन टेस्ट के लिए बुलाया गया था. सनराइज़ पिक्चर के बैनर तले बनने वाली इस फिल्म के निर्देशक वी.एम्. व्यास थे. इस विज्ञापन को देखकर उनके पति ने अपना भाग्य आज़माने की सोची और आवेदन कर दिया. उन्हें इंटरव्यू का बुलावा आया तो उनकी हौसला आफजाई के लिए निरूपा रॉय भी उनके साथ गई. लेकिन संयोग कुछ ऐसा हुआ कि इंटरव्यू में पति तो फेल रहे मगर व्यास ने निरूपा रॉय के सामने हीरोइन बनने का प्रस्ताव रख दिया. पति की इच्छा थी इसलिए निरुपा जी ने हामी भर दी लेकिन उनकी इस सहमति के बाद उनके मायके और ससुराल में जैसे जलजला आ गया.
निरूपा रॉय का जन्म एक परंपरावादी गुजरती परिवार में हुआ था. 14 वर्ष की उम्र में उनकी शादी हुई और शादी के बाद वो कोकिला चौहान से श्रीमती कोकिलाबेन बलसारा बन गई. उनके ससुराल वाले मायके से भी ज्यादा परंपरावादी थे. उन दिनों फिल्मों में अभिनय को अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता था. अतः उनके निर्णय का काफी विरोध हुआ. परिवार वालों ने उनसे सारे रिश्ते समाप्त कर लिए लेकिन उनके पति ने हमेशा उनका साथ दिया. उनके समर्थन और प्रोत्साहन से निरूपा रॉय फिल्मों में आ गई. उनका नाम निरूपा रॉय फिल्म के निर्देशक वी.एम्. व्यास ने ही रखा था. राणक देवी तो नहीं चली लेकिन निरूपा रॉय को काम मिलता रहा. उन्होंने अपने करियर में कई ऐतिहासिक फ़िल्में की. विमल रॉय की फिल्म ‘दो बीघा ज़मीन’ से उनकी इमेज बदली. इस फिल्म में वो बलराज साहनी की नायिका थी. फिल्म सफल रही और उनका करियर भी स्थापित हो गया. 1955 तक नायिका के रूप में निरूपा रॉय का करियर आगे बढ़ता रहा.
सन 1955 में निर्माता-निर्देशक सुबोध मुखर्जी ने उनके सामने फिल्म ‘मुनीम जी’ का प्रस्ताव रखा जिसमें उन्हें नायिका के युवावस्था से लेकर वृद्धावस्था तक का रोल निभाना था. निरूपा रॉय ने इसके लिए हामी भर दी. बाद में सुबोध मुखर्जी ने उनसे बिना बताये युवावस्था वाला रोल नलिनी जयवंत के साथ रीशूट कर लिया. इस फिल्म में निरूपा रॉय ने खुद से 10 साल बड़े देवानंद की मां का रोल निभाया था. फिल्म तो हिट हो गयी लेकिन इस फिल्म ने निरूपा रॉय की नायिका वाली छवि को तहस-नहस कर दिया. अब उन्हें हीरोइन के रूप में स्वीकार करने के लिए कोई तैयार ही नहीं था. निरूपा रॉय को काम मिलना बंद हो गया और वो घर बैठ गयी.
विमल रॉय की सलाह पर उन्होंने फिल्म ‘छोटी बहु ‘ से माँ का किरदार निभाना शुरू किया. 1975 में वैजयंती माला द्वारा फिल्म ठुकराए जाने के बाद यश चोपड़ा ने उन्हें फिल्म ‘दीवार’ में अमिताभ बच्चन और शशि कपूर की मां का रोल ऑफर किया जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया. इस फिल्म में उन्हें इतना पसंद किया गया कि आगे चलकर वो अमिताभ बच्चन की फ़िल्मी मां के रोल में टाइपकास्ट ही हो गयी. इस फिल्म में शशि कपूर का डायलॉग ” मेरे पास मां है’ तो जैसे अमर ही हो गया.
बिग बी के साथ उन्होंने ‘सुहाग,अमर अकबर एंथोनी ,मुकद्दर का सिकंदर, मर्द और गंगा जमुना सरस्वती’ जैसी हिट फिल्मों में काम किया. 1992 में आई फिल्म ‘जहाँ भी तुम ले चलो ‘ से वो दादी के किरदार में नज़र आने लगी. निरूपा रॉय ने गुजराती,मराठी और हिंदी सहित कुल 500 फिल्मों में काम किया लेकिन हिंदी फिल्मों में उनकी पहचान जो बनी वो आज भी कायम है.