गढ़ बचाने की चुनौती: कांग्रेस के लिए इस बार कठिन है अमेठी की राह, जानिये क्या है वजह

अमेठी। कांग्रेस की दबदबे वाली अमेठी सीट पर इस बार भाजपा से पार पाना उसके लिए आसान नहीं होगा। 2014 में हार के बाद भी स्मृति ईरानी का अमेठी में डटे रहने व गठबंधन की ओर से प्रत्याशी उतारे जाने की खबर ने कांग्रेसियों की नींद उड़ा कर रख दी है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से 2014 में 1,07,000 वोटाें से शिकस्त पाने वाली केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने चुनाव हारने के बाद भी अमेठी से अपना नाता बनाए रखा। इसका बड़ा फायदा यह हुआ कि यहां लोग उनसे जुड़ते गए।

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क्षेत्र में कम आने-जाने और क्षेत्र की उपेक्षा के चलते यहां के लोगों का राहुल से मोह भंग होता गया। खुद राहुल गांधी इधर जब-जब अमेठी आए तो उनके खिलाफ सड़कों पर जमकर प्रदर्शन हुआ जबकि स्मृति ईरानी ने हर बार यहां आकर सौगातों की बौछार की। अब यहां से गठबंधन का प्रत्याशी मैदान में उतारे जाने की भी सुगबुगाहट है। ऐसे में राहुल के लिए 2019 में अमेठी से जीत का ताज कांटों से भरा हो सकता है।

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वैसे अब तक हुए 16 लोकसभा चुनावों और दो उपचुनावों में कांग्रेस ने 16 बार यहां जीत का परचम लहराया। सिर्फ दो बार उसे हार का सामना करना पड़ा। 1977 में भारतीय लोकदल और 1998 में भाजपा ने इस सीट पर जीत दर्ज की थी। बात अगर 2014 के चुनाव की हो तो इस चुनाव में राहुल गांधी को 4 लाख 8 हजार 651 वोट मिले थे। स्मृति ईरानी को 03 लाख 748, बीएसपी के धर्मेन्द्र प्रताप सिंह को 57 हजार 716 व आप के कुमार विश्वास को 25 हजार 527 वोट मिले थे। यह राहुल गांधी की सबसे कम वोट से जीत थी।

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वर्ष 2009 के चुनाव की अगर बात करें तो राहुल ने 3 लाख 50 हजार से भी ज्यादा के अंतर से चुनाव जीता था। उन्हें 04 लाख 64 हजार 195 वोट मिले थे। दूसरे पायदान पर रहे भाजपा के प्रदीप कुमार को 37 हजार 570 वोट मिले थे। पहली बार 2004 में राहुल गांधी ने बसपा प्रत्याशी चंद्रप्रकाश मिश्रा को 2,90, 853 वोटों के अंतर से हराया था। जातिगत समीकरण कुल मतदाता-18 लाख 87 हजार पुरुष-10 लाख 78 हजार 400 महिला-8 लाख 8 हजार 485 थर्ड जेंडर-56 पोलिंग बूथ-1963

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