अयोध्या विवाद : एक बार फिर माहौल गरम, फिर चढ़ने लगा पारा

लखनऊ। मंदिर-मस्जिद विवाद के कारण आजादी के बाद से कई उतार-चढ़ाव देख चुकी धार्मिक नगरी अयोध्या आगामी 25 नवम्बर को विश्व हिंदू परिषद की धर्मसभा की वजह से एक बार फिर सुर्खियों में है।
उच्चतम न्यायालय द्वारा मंदिर-मस्जिद के मुकदमे की सुनवाई जनवरी तक टाले जाने से खफा विश्व हिंदू परिषद ने अयोध्या में एक लाख से अधिक हिंदुओं के पहुंचने का आह्वान कर दिया है। इसी बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने अयोध्या तक पदयात्रा की घोषणा कर सियासी पारे को और ऊपर चढ़ा दिया। परिषद के उपाध्यक्ष चंपत राय का कहना है कि उच्चतम न्यायालय द्वारा इसे प्राथमिकता के आधार पर नहीं लिए जाने की वजह से हिंदू समाज आहत है और एक बार फिर आंदोलन करना उसकी मजबूरी है। समाज को लग रहा है कि आंदोलन के बगैर अयोध्या में राम मंदिर निर्माण संभव नहीं है। इसलिए 25 नवम्बर को अयोध्या के साथ ही बेंगलुरु और मुंबई में इसी तरह का धर्म सभा आयोजित है। इन धर्म सभाओं में लाखों लोगों के आने की उम्मीद है।

22/23 दिसम्बर 1949 की रात में विवादित ढांचे में रामलला की मूर्ति रखी गई थी। हिंदू पक्ष का कहना है कि मूर्ति प्रकट हुई थी, जबकि मुसलमानों ने दावा किया था कि मूर्ति जबरन मस्जिद में रखी गई। विवाद बढ़ने पर फैजाबाद के तत्कालीन जिलाधिकारी के.के. नैयर और नगर मजिस्ट्रेट गुरुदत्त सिंह ने विवादित ढांचे के मुख्य द्वार पर ताला लगा दिया था। ढांचे के अंदर नमाज पढ़ना बंद हो गया था, लेकिन राम लला की पूजा शुरू हो गई थी।

इसके बाद मामला फैजाबाद की जिला अदालत में पहुंच गया लेकिन इसकी असली लड़ाई विश्व हिंदू परिषद ने 1984 में छेड़ी, जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुरु और तत्कालीन गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ की अध्यक्षता में श्री राम जन्म भूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन कर राम मंदिर निर्माण के लिए जन आंदोलन शुरू कर दिया गया। मैथिली क्षेत्र से श्री राम जानकी रथ यात्रा निकाली गई, जिसे देशभर में घूमते हुए दिल्ली पहुंचना था, लेकिन 31 अक्टूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो जाने के कारण यात्रा बीच में ही रोक दी गई। हालांकि मंदिर निर्माण के आंदोलन की तैयारी चलती रही।

इस बीच 1 फरवरी 1986 को फैजाबाद के जिला जज के पांडे ने ढांचे के मुख्य द्वार पर लगे ताले को खोलने का आदेश दे दिया। तत्कालीन जिलाधिकारी इंदु कुमार पांडे और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक कर्मवीर सिंह पूरी मुस्तैदी के साथ अयोध्या और फैजाबाद में शांति बनाए रखने में सफल रहे। कहीं कोई विवाद नहीं हुआ। विश्व हिंदू परिषद के दबाव और कारसेवकों की भीड़ को देखते हुए राजीव गांधी सरकार ने नवम्बर 1989 को विवादित धर्मस्थल के निकट मंदिर निर्माण के शिलान्यास की अनुमति दे दी। हालांकि दूसरे दिन ही काम रोक दिया गया इससे नाराज विश्व हिंदू परिषद ने आंदोलन और तेज करने का मन बना लिया।

25 सितम्बर 1990 को भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा शुरू कर दी। रथ यात्रा की वजह से हिंदू समाज में उबाल आ गया। उस स्थानों पर यात्रा के दौरान तनाव भी हुआ। नवम्बर 1990 में आडवाणी की रथ यात्रा बिहार के समस्तीपुर में रोक ली गई उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। इसकी वजह से कई जगह तनाव की स्थिति पैदा हो गई। कुछ स्थानों पर हिंसक झड़प भी हुई।

यह आंदोलन अक्टूबर 1990 में सर्वाधिक उग्र कहा जा सकता है। 30 अक्टूबर 1990 और 2 नवम्बर 1990 को पुलिस ने गोली चलाई, जिसकी वजह से कई कारसेवकों की जान गई। सैकड़ों घायल हुए और आंदोलन उग्र होता चला गया।
नवम्बर-दिसम्बर 1992 में आंदोलन काफी ऊपर चला गया जिसकी परिणति ढांचा ध्वस्त होने के रूप में हुई। 6 दिसम्बर 1992 को लाखों कारसेवकों ने अयोध्या पहुंचकर ढांचे को ध्वस्त कर दिया, जिसकी देश विदेश में व्यापक प्रतिक्रिया हुई। दुनिया भर के मीडिया कर्मियों ने उसका कवरेज किया। अयोध्या में कई जगह आगजनी हुई, कुछ लोगों की जानें भी गई। भारतीय जनता पार्टी की कल्याण सिंह सरकार समेत तीन और राज्यों की सरकारों को केंद्र सरकार ने उसी दिन शाम को बर्खास्त कर दिया। आजादी के बाद इसे देश की बड़ी घटना माना गया। उस मंजर की कई लेखकों ने अपने अपने ढंग से व्याख्या की।

विश्व हिंदू परिषद ने ढांचा ध्वस्त होने के बाद भी आंदोलन कमजोर नहीं होने दिया और सत्याग्रह शुरू कर दिया। सत्याग्रह से वापस जा रहे कारसेवकों को 27 फरवरी 2002 को गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में आगजनी करके मारा गया। एस-6 कोच में आग लगाई गई, जिससे 59 कारसेवकों की मौत हो गई। इसके बाद गुजरात में भयानक दंगा हुआ और इसकी मूल वजह अयोध्या मानी गई। अयोध्या से जा रहे कारसेवकों को ट्रेन के डिब्बे में बंद कर जलाया गया। इसके कारण गुजरात में दंगे हुए। गोधरा कांड में अदालत ने 1 मार्च 2017 को 11 लोगों को फांसी और 20 को उम्र कैद की सजा सुनाई।

अयोध्या विवादित प्रकरण में उस समय एक अहम मोड़ आया, जब जिला अदालत में मामला लंबा खींचते देख एक निर्णय के तहत अप्रैल 2002 में अयोध्या विवाद से जुड़े सभी मामलों को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ विशेष पूर्ण पीठ में स्थानांतरित कर दिया गया। जहां 30 सितम्बर 2010 को फैसला सुनाया गया। फैसले के मुताबिक विवादित स्थल को न्यायालय ने तीन भागों में विभाजित करने का आदेश दिया। एक भाग रामलला को दूसरा निर्मोही अखाड़ा और तीसरा सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को दे दिया गया। इस आदेश के खिलाफ हिंदू महासभा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने उच्चतम न्यायालय में मुकदमा दाखिल कर दिया। न्यायालय ने 2011 में उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी। तब से मामला उच्चतम न्यायालय में लंबित है। सितम्बर में मामले में सुनवाई होनी थी लेकिन न्यायालय की विशेष पीठ ने इसे जनवरी तक टाल दिया।

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि इस मामले की सुनवाई अब जनवरी में गठित होने वाली विशेष पीठ में शुरू की जाएगी। हालांकि उन्होंने सुनवाई की निश्चित तिथि नहीं बताई। इससे आहत विश्व हिंदू परिषद ने एक बार फिर मामले को गर्म करने का मन बनाया है और इसी वजह से 25 नवम्बर को धर्म सभा का आयोजन किया जा रहा है। धर्म सभा के साथ ही कई और कार्यक्रम किए जा रहे हैं ताकि सरकार पर दबाव बने और वह अध्यादेश लाकर या अन्य तरीकों से मंदिर निर्माण कराने की पहल करें।

दूसरी ओर मंदिर निर्माण के समर्थक माने जाने वाले राजीव कुमार सिंह कहते हैं कि इस मामले का जल्द से जल्द निपटारा हो जाना चाहिए क्योंकि 6 दिसम्बर 1992 को गुस्साए कार्य सेवकों ने ढांचा इसलिए तोड़ दिया था, क्योंकि कानूनी दांवपेचों के बीच में यह मामला उलझता ही चला जा रहा था। 6 दिसम्बर 1992 को भी अदालत ने यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए थे। उत्तर प्रदेश की तत्कालीन कल्याण सिंह सरकार ने उच्चतम न्यायालय में शपथ पत्र देकर विवादित ढांचे को सुरक्षित रखने का वचन दिया था, लेकिन जनाक्रोश के कारण वह भी ढांचे को बचा नहीं सके।

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