भाजपाइयों ने गौशालाओ को बना रखा है कमाई का जरिया: नसीमुदद्दीन सिद्दीकी

प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मीडिया एवं कम्युनिकेशन विभाग के चेयरमैन नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने गाय के जरिये भाजपा पर हमला बोला। उन्होंने कहा है कि भारतीय जनता पार्टी ने गाय पर सिर्फ राजनीति की है। हालत यह है कि प्रदेश के लोगों के आस्था से जुड़ी गाय आज छुट्टा जानवर बनकर रह गयी है। सरकार के अधिकारी और भाजपा के कार्यकर्ताओं ने गोशालाओं को कमाई का जरिया बना लिया है।

पार्टी के जिला प्रवक्ताओं की नियुक्ति की जनाकारी देने के लिए आयोजित प्रेस कांफ्रेंस के दौरान नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने कहा है कि एक ओर गौवंश को कथित गौशालाओं में भूखा प्यासा रखकर उनकी हत्या की जा रही है, दूसरी ओर खुले में घूमते पशुओं की वजह से पूरे प्रदेश के किसान परेशान हो गए हैं। स्थिति यह हो गई है कि किसान खेती छोड़ने पर भी विचार करने लगा है। नसीमुद्दीन ने कहा है कि उत्तर प्रदेश में 5 साल में फसलों को उगाने से ज्यादा पैसा किसानों ने जानवरो से उसकी रखवाली पर खर्च किया है। प्रदेश के किसान कड़ाके की सर्दी, चिलचिलाती धूप और गरजते बादलों के बीच रात-रातभर जगकर फसल की रखवाली करने को मजबूर हो रहे हैं।

सड़कों पर घूम रहे है 4 लाख से ज्यादा अन्ना मवेशी

सिद्दीकी ने कहा कि प्रदेश में 4-5 लाख छुट्टा पशु सड़कों पर हैं, जिनकी देखभाल कोई नहीं कर रहा है। छुट्टा जानवरों के आतंक से किसान ही नहीं परेशान हैं बल्कि राज्य में ग्रामीण सड़कें, गांवों में गली, चौक-चौराह तक छुट्टा जानवरों के आतंक से का शिकार हैं। उन्होंने कहा कि प्रदेश के अनेक हिस्सों से समय-समय पर गोशालाओं में रखरखाव में कमी और पशुओं के बीमार होने और मरने की खबरें आती रही हैं। बांदा, उन्नाव, अमेठी, हमीरपुर, कन्नौज जैसे उनके जिलों में पशु शेड न होने, पशुओं के भीगने यहां तक कि पशुओं को जिंदा दफनाने तक की घटनाएं सामने आती रही हैं। लेकिन कोरे वादों और जांच के झांसे के अलावा सरकार ने न तो कहीं कोई ठोस कदम उठाया और न ही जिम्मेदारों पर कार्रवाई की गई। मवेशियों के हिस्से का बजट खा रहे अधिकारी

खेतों की तारबंदी में टूट रही छोटे किसानों की कमर

सिद्दीकी ने कहा कि सरकार पशुओं के रखरखाव के लिए जितना बजट दे रही वह योगी सरकार के अधिकारियों और भाजपा के कार्यकर्ताओं के बीच बंट रहा है। छुट्टा जानवरों के आतंक से परेशान प्रदेश का किसान खेतों की तारबंदी करने पर मजबूर हैं। एक बीघे की तारबंदी का खर्च 2-3 हजार रुपये के आसपास आता है, जो फसल उत्पादन की लागत से अलग है। बड़े किसानों को तो थोड़ी आसानी है लेकिन छोटी जोत के गरीब किसानों के पास इतना पैसा नहीं है कि वह अपने खेतों की तारबंदी कर सकें।

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