26 वीक प्रेग्नेंसी टर्मिनेशन केस में हुई सुनवाई, कोर्ट बोला- हम बच्चे की हत्या नहीं कर सकते

सुप्रीम कोर्ट में 26 हफ्ते की गर्भावस्था खत्म करने की याचिका पर गुरुवार को तीन जजों की बेंच में सुनवाई हुई। CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा ने याचिका करने वाली महिला के वकील से पूछा कि 26 सप्ताह तक इंतजार करने के बाद, क्या वह कुछ दिन और इंतजार नहीं कर सकती।

बेंच ने कहा- हमें अजन्मे बच्चे के अधिकार को मां के अधिकार के साथ बैलेंस करने की जरूरत है। वो एक जीवित भ्रूण है। क्या आप चाहते हैं कि हम AIIMS के डॉक्टरों को उसके दिल को रोकने के लिए कहें, हम ऐसा नहीं कर सकते। हम किसी बच्चे को नहीं मार सकते।

सुप्रीम कोर्ट ने ASG ऐश्वर्या भाटी और महिला की वकील को इस संबंध में आवेदन करने वाली महिला से बात करने कहा। इस केस में अगली सुनवाई 13 अक्टूबर को होगी।

12 अक्टूबर की बहस की बड़ी बातें

सुनवाई के दौरान गर्भवती महिला भी पति के साथ वर्चुअली मौजूद थी। बहस के दौरान कोर्ट ने वकील और ASG से पूछा कि मां और सरकार की तरफ से तो आप दोनों आ गए, अजन्मे बच्चे के अधिकारों की पैरवी कौन कर रहा है? आप इसे कैसे बैलेंस करेंगे।

CJI चंद्रचूड़ : AIIMS कह रहा है कि अगर आप कुछ और हफ्ते इंतजार करेंगे तो बच्चे के सामान्य रूप से पैदा होने की संभावना काफी ज्यादा है। आपके पास दो विकल्प हैं- एक भ्रूण के हृदय को रोकना- जिसका मतलब है कि सुप्रीम कोर्ट AIIMS को भ्रूण हत्या करने के लिए कहे।

दूसरा विकल्प, बच्चे को विकृति के साथ अभी जन्म देना है। क्या आपका क्लाइंट इसके लिए तैयार है? हम आपको समय दे रहे हैं। हम पीछे नहीं हटेंगे। आप महिला से बात करें, इस पर कल विचार करेंगे।

ASG भाटी: महिला खुद भी फैसला नहीं कर पा रही है। वह बहुत कमजोर है। हमने उसकी काउंसलिंग की भी कोशिश की। एक बार वह तैयार हो गई और अब वह मना कर रही है। ये फैसला उनकी खुद की सेहत के लिए भी नुकसानदायक है। उसने सुसाइड की कोशिश भी की थी।

CJI चंद्रचूड़: यह ऐसा मामला नहीं है जहां महिला कोई नाबालिग पीड़िता हो। वह विवाहित है। 26 सप्ताह तक क्या कर रही थी? उसके दो बच्चे हैं, वह परिणाम भी जानती है। यदि आप 8 हफ्ते वेट करते हैं तो पूरी संभावना है कि यह एक सामान्य बच्चा होगा।

पिछली 3 सुनवाई में क्या हुआ….

11 अक्टूबर : बुधवार को 26 हफ्ते की प्रेग्नेंट शादीशुदा महिला के अबॉर्शन केस में बेंच की दोनों जजों की राय अलग रही। जस्टिस हिमा कोहली प्रेग्नेंसी टर्मिनेट करने के पक्ष में नहीं थीं, लेकिन जस्टिस बीवी नागरत्ना उनसे सहमत नहीं थीं। दोनों जजों के बीच असहमति को देखते हुए मामले को बड़ी बेंच के पास रेफर कर दिया गया।

10 अक्टूबर : कोर्ट ने याचिकाकर्ता को AIIMS के गायनेकोलॉजी डिपार्टमेंट में जाने को कहा था और AIIMS के डॉक्टरों को निर्देश दिया था कि महिला का चेकअप करके जल्द से जल्द उसकी प्रेग्नेंसी टर्मिनेट कर दी जाए, लेकिन डॉक्टरों ने मंगलवार शाम जानकारी दी कि भ्रूण के जीवित रहने की संभावना है, जिसके बाद कोर्ट ने इस आदेश को वापस ले लिया।

9 अक्टूबर : सुनवाई के दौरान बेंच ने 27 साल की महिला को अनचाहे गर्भ को अबॉर्ट करने की अनुमति दी थी। महिला ने कोर्ट को बताया था कि वह दो बच्चों की मां है और डिप्रेशन से जूझ रही है। उसने अपने मानसिक, भावनात्मक और आर्थिक पहलुओं का हवाला देते हुए कहा कि वह तीसरा बच्चा पालने की स्थिति में नहीं है।

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