सियासत में हांथ आजमाने वालों में कलमनवीस भी पीछे नहीं 

योगेश श्रीवास्तव
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लखनऊ। सियासत में हांथ आजमाने में नेताओं अभिनेताओं के अलावा जहां उद्योगपतियों ने हांथ आजमाये ता ेकलमनवीस भी पीछे नहीं रहे। पत्रकारों के राजनीति में आने उनके संसद या विधानसभाओं में पहुंचने की परंपरा कोई नई नहीं है। देश में आजादी से पहले जो सिलसिला शुरू हुआ जो आजतक जारी है। कई पत्रकार सांसद बनने के साथ केन्द्र में मंत्री बने तो जो चुनाव नहीं लड़े वे राज्यसभा के रास्ते संसद में पहुंचे। पत्रकार से राजनेता बने इन लोगों को राजनीति ऐसी रास आई कि उन्होंने पत्रकारिता छोड़ पूरी तरह राजनीति में ही जम गए।
कई पत्रकार जो राजनीति में सफल नहीं हुए बाद में इसी विधा में वापस लौट आए तो  कुछ ने नेतागिरी के साथ पत्रकारिता भी जारी रखी। स्वतंत्रता से पूर्व काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक मदन मोहन मालवीय शिक्षाविद और राजनीतिक होने के साथ ही एक सफल राजनीतिक भी थे।
मालवीय 1909 में प्रांतीय कौसिल के मेंबर निर्वाचित हुए थे उसके बाद वे केन्द्रीय व्यवस्थापिका के भी मेंबर निर्वाचित हुए। इससे पूर्व मालवीय 1907 से 1911 तक लगभग चार साल अभ्युदय,लीडर,व इंडियन हेराल्ड जैसे समाचार पत्रों का संचालन किया। जानकारों की माने तो श्री मालवीय ने कालांकाकर से प्रकाशित होने वाले देनिक हिन्दोस्थान का भी संपादन के बाद उन्होंने हिन्दुस्तान टाइम्स का संचालन भी किया।
इसके अलावा वाराणसी के ही कमलापति त्रिपाठी जो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और कांग्रेस के राष्टï्रीय कार्यकारी अध्यक्ष तथा केन्द्र में रेल मंत्री रहे उन्होंने भी आज समाचार पत्र का संपादन किया। कमलापति त्रिपाठी राजनीति में आने से पहले पत्रकारिता में सक्रिय थे। बाबूराव विष्णु पराडकर से उन्होंने पत्रकारिता का ककहरा सीखा। कमलापति त्रिपाठी ने आज के सम्पादन के साथ ही दैनिक संसार का भी संपादन किया। कुछ समय तक उन्होंने जबलपुर से प्रकाशित लोकमत का भी संपादन किया। इसके अलावा प्रसिद्घ राजनीतिज्ञ श्री प्रकाश जो कि केन्द्रीय वाणिज्य मंत्री महाराष्टï्र व तत्कालीन मद्रास राज्य के राज्यपाल रहे।
उन्होंने भी आज अखबार का संपादन किया किया था। लखनऊ सें पांच बार सांसद रहे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई ने भी पत्रकारिता के साथ ही अपनी राजनीतिक पारी शुरू की थी। वे राष्टï्रधर्म,पांचजन्य,स्वदेश तथा वीर अर्जुन जैसे समाचार पत्रों का संपादन किया। प्रखर समावादी नेता और चिंतक राममनोहर लोहिया ने  राजनीति के साथ पत्रकारिता में अपने हांथ आजमये। श्री लोहिया मैनकाइन्ड व जन पत्रों के संपादन किया। पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के पति फिरोजगांधी भी नेशनल हेराल्ड ग्रुप से सम्बद्घ थे फिरोजगांधी रायबरेली संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से कई बार सांसद चुने गये थे। मुख्यमंत्री रहते हुए गोरखपुर के मानीराम विधान सभा क्षेत्र से चुनाव हारने वाले टी.एन. सिंह भी मुलत: पत्रकार थे।  प्रसिद्घ समाजवादी आचार्य नरेन्द्र देव ने रणभेरी, संघर्ष व जनवाणी जैसे पत्रों का सम्पादन किया।  इसके अतिरिक्त मोतीलाल नेहरू के पत्र इंडिपेन्डेंट व लीडर की संचालन मंडल मे शमिल थे।
आजादी की लड़ाई के समय स्वदेश पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रसिद्घ अखबार था। इसके संपादक दशरथ प्रसाद द्विवेदी कानपुर के प्रताप में पत्रकार थे। उसके बाद व स्वदेश के संपादक हुए। लोकसभा के पहले चुनाव में दशरथ प्रसाद द्विवेदी गोरखपुर संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से सांसद चुने गये। इसी तरह बृजभूषण मिश्र मिर्जापुर जिले से विधायक चुने गये। श्री मिश्र ग्रामवासी नामक पत्र के संम्पादक थे। यह पत्र आजादी से पहले से प्रकाशित होता था। पत्रकार सीमा मुस्तफा  भी प्रदेश की डुमरियागंज लोकसभा सीट से अपनी किस्मत अजमा चुकी है।
नई जमीन के संपादक शाहिद सिद्दीकी सपा से सांसद चुने गये थे। पत्रकार संतोष भारती जनतादल से १९८९ में  फर्रूखाबाद से सांसद चुने गये थे। इसी प्रकार पूर्व में पत्रकार रहे राजीव शुक्ला कांग्रेस से राज्यसभा सदस्य रहे। मनमोहन सिंह की सरकार में उन्हे केन्द्रीय राज्यमंत्री भी बनाया गया था। स्वतंत्र भारत के संपादक रहे राजनाथ सिंह सूर्य को भारतीय जनता पार्टी ने राज्य सभा का सदस्य बनाया था इससे पूर्व राजग की सरकार में अटल बिहारी बाजपेयी के मंत्रिमंडल में इंडियन एक्सप्रेस के संपादक रहे अरूण शौरी भी उनकी कैबिनेट के सदस्य थे। वे लोकसभा का चुनाव तो नहीं लड़े लेकिन राज्यसभा सदस्य की हैसियत से मंत्रिमंडल के सदस्य जरूर रहे।

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