लखीमपुर : 15 अक्टूबर से होगा शारदीय नवरात्रि का शुभारंभ, जानें कब किस देवी की होगी पूजा

लखीमपुर खीरी। नवरात्रि का अर्थ-नवरात्र शब्द नव और अहोरात्र से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है कि इन रात्रियों में प्रकृति के बहुत सारे अवरोध समाप्त हो जाते हैं। इसलिए इन रात्रियों को बहुत ही पवित्र माना गया है। यह माना जाता है कि इन रात्रियों में किए गए शुभ संकल्प पूरे होते हैं। हर साल 4 नवरात्रि आती है, जिसमें चैत्र, आषाढ़, आश्विन और पौष नवरात्रि शामिल है। चैत्र नवरात्रि को बड़ी नवरात्रि और वसंत नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है। वहीं, आषाढ़ और पौष नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहते हैं और अश्विन मां की नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि कहा जाता है। व्रत रखने का अधिक महत्व चैत्र और शारदीय नवरात्रि का होता है। वहीं, गुप्त नवरात्रि तंत्र साधना करने वालों के लिए बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है।

शारदीय नवरात्रि को शुरू होने का भक्त लंबे समय से इंतजार कर रहे थे अब वह समय बेहद करीब है। इस खास दिन के शुभारंभ की तैयारी पहले से ही शुरू हो गई है। नवरात्रि में नौ दिनों तक मां के नौ रूपों की पूजा का विधान है। हिंदू पंचांग के अनुसार शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हर साल आश्विन मास की शुक्ल प्रतिपदा तिथि से होती है। ऐसे में इस साल नवरात्रि का शुभारंभ 15 अक्टूबर 2023 रविवार के दिन से हो रहा है और इसका समापन अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि यानी 24 अक्टूबर 2023 को होगा। 

घटस्थापना हेतु शुभ मुहूर्त

ज्योतिष पंचांग के अनुसार, आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि यानी 15 अक्टूबर को सुबह 06 बजकर 21 मिनट से लेकर सुबह 10 बजकर 12 मिनट तक घटस्थापना हेतु शुभ मुहूर्त है। इस दौरान घटस्थापना कर जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा की प्रथम शक्ति स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा कर सकते हैं। इसके पश्चात, अभिजीत मुहूर्त में घटस्थापना कर सकते हैं। आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर अभिजीत मुहूर्त 11 बजकर 44 मिनट से लेकर 12 बजकर 30 मिनट तक है। इस अवधि में भी घटस्थापना कर मां की पूजा कर सकते हैं।

नवरात्रि के नौ दिनों में माता दुर्गा के विभिन्न नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। ऐसा करने से साधक को माता रानी का आशीष प्राप्त होता है।

शैलपुत्री

नवरात्रि का पहला दिन मां शैलपुत्री का होता है। मां को गुलाबी रंग अति प्रिय है। साथ ही गुलाबी रंग खुशी, खुशी और उत्साह का प्रतिनिधित्व करता है। ऐसे में भक्तों को गुलाबी रंग के फूल मां को चढ़ाने की सलाह दी जाती है।

ब्रह्मचारिणी

दूसरा दिन मां ब्रह्मचारिणी का होता है। मां ने भगवान शिव के लिए कई वर्षों तक तपस्या की थी, जिस दौरान उन्होंने सफेद रंग वस्त्र धारण किए थे। इसलिए साधक को मां को मोगरा के फूल चढ़ाने की सलाह दी जाती है।

चंद्रघंटा

तीसरा दिन माता चंद्रघंटा को समर्पित होता है। मां को लाल रंग अति प्रिय है। ऐसे में आपको साहस और शक्ति की प्राप्ति के लिए देवी को लाल रंग के फूल चढ़ाने की सलाह दी जाती है।

कुष्मांडा

चौथा दिन मां कुष्मांडा का होता है। ऐसा कहा जाता है भक्तों को मां को ऑर्गेने रंग का डेजी फूल अवश्य चढ़ाना चाहिए। इससे मां प्रसन्न होती है।

स्कंदमाता

पांचवा दिन मां स्कंदमाता को समर्पित है, जो कार्तिकेय को अपनी गोद में विराजमान रखती हैं। मान्यताओं अनुसार, मां को पीला रंग अति प्रिय है। ऐसे में साधक को पीले रंग के वस्त्र और फूल मां को अवश्य चढ़ाने चाहिए।

कात्यायनी

छठा दिन मां कात्यायनी को समर्पित है। ऐसा कहा जाता है कि माता को गहरा लाल रंग अति प्रिय है। यह रंग समर्पण और इच्छा शक्ति को दर्शाता है। इसलिए भक्तों को गहरे लाल रंग का फूल और वस्त्र मां को जरूर चढ़ाना चाहिए।

कालरात्रि

सातवां दिन मां कालरात्रि को समर्पित होता है। दुश्मनों और बुरी शक्तियों से छुटकारा पाने के लिए मां को शमी का फूल चढ़ाने की सलाह दी जाती है।

महागौरी

आठवां दिन मां गौरी से जुड़ा है। मां को हरा रंग अति प्रिय है। ऐसे में भक्तों को सुझाव दिया जाता है कि वे मां महागौरी को हरे रंग के वस्त्र अर्पित करें और वैवाहिक सुख के लिए प्रार्थना करें।

सिद्धिदात्री

नौवा दिन मां सिद्धिदात्री को समर्पित है, जो भक्त मां सिद्धिदात्री की पूजा करते हैं उन्हें सभी प्रकार की सिद्धियों और तंत्र विद्या का आशीर्वाद मिलता है। मान्यताओं के अनुसार, मां को लाल रंग अति प्रिय है, ऐसे में आपको मां को लाल रंग का फूल अवश्य चढ़ाने चाहिए।

शारदीय नवरात्रि का शुभारंभ जल्द होने वाला है। सनातन धर्म में इस पर्व का अपना एक खास महत्व है। इस दौरान भक्त कठिन नियमों के साथ मां की पूजा करते हैं। यह नौ दिनों तक चलने वाला त्योहार है, जिसमें मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा का विधान है। मान्यता है कि अगर साधक पूरे समर्पण के साथ मां दुर्गा की पूजा और दुर्गा सप्तशति का पाठ करते हैं, तो उनके ऊपर मां की कृपा सदैव बनी रहती है। 

ऐसे में हर किसी को व्रत के दौरान दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए। लेकिन इस पाठ के कुछ नियम बताए गए हैं, जिन्हें ध्यान में रखना जरूरी है। 

दुर्गा सप्तशती पाठ का महत्व

• दुर्गा सप्तशती का पाठ मां दुर्गा को पूरी तरह से समर्पित है, जिसमें यह बताया गया है कि किस तरह से मां ने देवों और संसार की रक्षा के लिए भयंकर से भयंकर राक्षसों का वध किया था। दुर्गा सप्तशती की उत्पत्ति मार्कण्डेय पुराण से हुई है, जो 18 प्रमुख पुराणों में से एक है। इसकी रचना 400-600 ई. के बीच हुई थी और दुर्गा सप्तशती को सबसे शक्तिशाली ग्रंथ माना जाता है। नवरात्रि के पहले दिन से दुर्गा सप्तशती पाठ की शुरुआत करनी चाहिए।

•इसमें 13 अध्याय हैं, जिनमें कवच, अर्गला और कीलक शामिल हैं, जो साधक इस पवित्र पाठ को करना चाहते हैं उन्हें इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि उन्हें सबसे पहले कवच, अर्गला और कीलक से शुरुआत करनी है, जिनके बिना पाठ अधूरा माना जाता है। इस पाठ से साधक के जीवन की सारी मुश्किलों का अंत होता है। परिवार में खुशहाली आती है और घर में सदैव मां लक्ष्मी का वास होता है। दुर्गा सप्तशती के 13 अध्याय को एक ही दिन में पूरा करने का विधान है। लेकिन किसी वजह से पाठ पूरा नहीं हो पाया हो, तो नौ दिनों में अपने पाठ को पूरा कर लें।

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