कर्मचारियों को वेतन देने के लिए नहीं हैं पैसे, बीएसएनएल ने सरकार को भेजा संदेश.

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नई दिल्ली । सार्वजनिक क्षेत्र की टेलीकॉम कंपनी भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) ने सरकार को एक एसओएस भेजा है, जिसमें कंपनी ने ऑपरेशंस जारी रखने में असमर्थता जताई है। बीएसएनएल ने कहा है कि नकदी की कमी के चलते कर्मचारियों को जून माह का वेतन देना मुश्किल है। कर्मचारियों को वेतन देने के लिए बीएसएलएल को लगभग 850 करोड़ रुपये की जरूरत है।
बीएसएनएल पर करीब 13 हजार करोड़ की है लायबिलिटी
उल्लेखनीय है कि बीएसएनएल पर करीब 13 हजार करोड़ रुपये की आउटस्टैंडिंग लायबिलिटी है, जिसकी वजह से सरकारी टेलीकॉम कंपनी बीएसएनएल का कारोबार डांवाडोल हो रहा है। यह जानकारी बीएसएलएल के कॉपरेट बजट एंड बैंकिंग डिविजन के सीनियर जनरल मैनेजर पूरन चंद्र ने टेलीकॉम डिपार्टमेंट में ज्वाइंट सेक्रेटरी को एक पत्र लिखकर दी है। पत्र में उन्होंने कहा कि हर महीने के रेवेन्यू और खर्चों में गैप की वजह से अब कंपनी का संचालन जारी रखना चिंताजनक स्थिति में है। दरअसल यह एक ऐसे लेवल पर पहुंच चुका है जहां से बिना किसी पर्याप्त इक्विटी को शामिल किए बीएसएनएल के ऑपरेशंस को जारी रखना अब नामुंमकिन दिख रहा है।

क्‍यों लग रहे हैं कयास?

मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक बीएसएनएल ने सरकार से कहा है कि कंपनी के पास कामकाज जारी रखने के लिए पैसे नहीं हैं। कंपनी के मुताबिक कैश की कमी की वजह से जून के लिए लगभग 850 करोड़ रुपये की सैलरी दे पाना मुश्किल है. बीएसएनएल के कॉर्पोरेट बजट एंड बैंकिंग डिविजन के सीनियर जनरल मैनेजर पूरन चंद्र ने टेलिकॉम मंत्रालय में ज्‍वाइंट सेक्रटरी को लिखे एक पत्र में कहा, ‘हर महीने के रेवेन्यू और खर्चों में अंतर की वजह से अब कंपनी का संचालन जारी रखना चिंता का विषय बन गया है।’ उन्‍होंने आगे कहा कि अब यह एक ऐसे लेवल पर पहुंच चुका है जहां बिना किसी पर्याप्त इक्विटी को शामिल किए बीएसएनएल के ऑपरेशंस जारी रखना लगभग नामुमकिन होगा।’

BSNL इस हालात में क्‍यों ?

अगर बीएसएनएल आज इन हालातों में है तो इसके पीछे कई वजह हैं। सबसे बड़ी वजह कंपनी का कर्मचारियों पर खर्च है. दरअसल, बीएसएनएल का कुल आमदनी का करीब 55 फीसदी कर्मचारियों के वेतन पर खर्च होता है. हर साल इस बजट में 8 फीसदी बढ़ोत्तरी हो जाती है. आसान भाषा में समझें तो वेतन पर खर्च लगातार बढ़ता जा रहा है और आमदनी में गिरावट आ रही है।

डेटा वॉर और 4जी में पीछे

बीएसएनएल की कमर तोड़ने में रिलायंस जियो की टेलिकॉम इंडस्‍ट्री में एंट्री ने भी अहम भूमिका निभाई. दरअसल, साल 2016 में जियो के आने के बाद टेलिकॉम कंपनियों में सस्‍ते डेटा पैक और टैरिफ की जंग छिड़ गई। कई टेलिकॉम कंपनियां बोरिया- बिस्‍तर समेटने पर मजबूर हुईं. वहीं बीएसएनएल भी जियो, एयरटेल और वोडाफोन के मुकाबले पिछड़ती चली गई. साल 2018 में कंपनी को करीब 8,000 करोड़ रुपये तक का नुकसान हुआ है।

सार्वजनिक  क्षेत्र की कंपनी बीएसएनएल के संघर्ष के पीछे 4जी सेवा में पिछड़ना है। देश 5जी की तैयारी में जुटा है तो वहीं बीएसएनएल अब भी 4 जी के लिए संघर्ष कर रहा है। यहां बता दें कि पीएसयू टेलिकॉम कंपनी स्पेक्ट्रम हासिल करने के लिए नीलामी की बोली में हिस्सा नहीं ले सकती हैं। ऐसे में बीते दिनों दूरसंचार विभाग (डीओटी) ने बीएसएनएल के स्पेक्ट्रम का प्रस्ताव परामर्श के लिए ट्राई के पास भेजा था।

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