टूट रही विपक्षी एकता, अखिलेश-माया के गठबंधन से कांग्रेस की NOEntry!

लखनऊ :  आगामी 2019 में लोकसभा की चुनावी बिसात पर असर छोड़ना शुरू कर दिया है. कांग्रेस की 3 राज्यों में जीत के  परिणाम आने के चंद घंटों के अंदर ही उत्तर प्रदेश की सियासत में घटनाक्रम तेजी से बदलता दिख रहा है. भाजपा के लिए ये चुनाव बेहद जीतना जरुरी है. इस बीच एक बड़ी खबर आ रही है.  क्या उत्तर प्रदेश में बहुचर्चित विपक्षी एकता पटरी से उतर रही है?

मंगलवार को विधानसभा सत्र के पहले दिन बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) और समाजवादी पार्टी (एसपी) ने सेंट्रल हॉल में पारंपरिक मीडिया ब्रीफिंग से कन्नी काट ली। हालांकि शीतकालीन सत्र के पहले दिन कांग्रेस ने जरूर उन मुद्दों के बारे में मीडिया को बताया जिन्हें वह उठाना चाहती है। इससे पहले तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार के शपथग्रहण से अखिलेश यादव और मायावती ने दूरी बनाई थी। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या यूपी में महागठबंधन अभी दूर की कौड़ी है।

बसपा सूत्रों की मुताबिक यूपी में सपा-बसपा के साथ गठबंधन और सीटों के फॉर्मूला तय हो गया है. इस फॉर्मूले के तहत कांग्रेस के लिए अमेठी और रायबरेली छोड़ सकते हैं. इसके अलावा चौधरी अजीत सिंह की पार्टी आरएलडी को  2 से 3 सीटें मिल सकती है. आरएलडी के खाते में बागपत, मुजफ्फरनगर और कैराना संसदीय सीटें दी जाएगी.

सूत्रों की मानें तो दोनों पार्टियों ने सूबे की 80 लोकसभा सीटों में अपने लिए सीटें तय कर ली है. एक फॉर्मूले के मुताबिक बीएसपी 38 और सपा 37 सीटों पर चुनावी लड़ेगी. जबकि दूसरे फॉर्मूले के तहत बसपा 39 और सपा को 37 सीटों पर चुनावी मैदान में उतरेंगी. ऐसी स्थिति में आरएलडी को 2 सीटें मिल सकती है. कहा जा रहा है कि इस फॉर्मूले पर दोनों ही दलों के शीर्ष नेताओं के बीच सहमति भी बन चुकी है.

राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकारों के शपथग्रहण समारोह में दोनों पार्टियां शामिल नहीं हुई थीं। हालांकि गौर करने वाली बात यह है कि एसपी-बीएसपी ने इन राज्यों में कांग्रेस सरकार को अपना समर्थन दे रखा है। मध्य प्रदेश में तो कांग्रेस अल्पमत में थी लेकिन एसपी ने अपने एक और बीएसपी ने दो विधायकों के समर्थन का ऐलान करके सरकार गठन का रास्ता साफ किया था। इस बीच शपथग्रहण में शामिल ना होने को लेकर दोनों पार्टियों ने चुप्पी साध रखी है।

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2019 में यूपी में बनेगा महागठबंधन?

इस घटनाक्रम ने 2019 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी-एसपी के गठबंधन में कांग्रेस के शामिल होने पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि यहां तक कि इस साल हर सत्र की शुरुआत से पहले विपक्षी दलों की होने वाली औपचारिक बैठक और चर्चा तक नहीं हुई। इस बीच एक वरिष्ठ बीजेपी नेता का कहना है कि सत्र के पहले दिन पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी और मंत्री राजकुमार वर्मा को श्रद्धांजलि दी गई लिहाजा कहने को कुछ नहीं है। उन्होंने कहा, ‘मंगलवार को कुछ भी नहीं हुआ लिहाजा हमने मीडिया से बात नहीं की। कांग्रेस को भी ऐसे दिन कोई राजनीतिक टिप्पणी नहीं करनी चाहिए।’

एसपी के एक विधान परिषद सदस्य (एमएलसी) का कहना है कि चूंकि विधान भवन के बाहर सुबह एक विरोध प्रदर्शन था और इस दौरान मीडिया को संबोधित किया गया, ऐसे में दोबारा मीडिया से बात करने की जरूरत नहीं थी। हालांकि एसपी-बीएसपी की ओर से औपचारिक ब्रीफिंग से दूर रहने पर प्रतिक्रिया देने से इनकार करते हुए कांग्रेस सूत्रों ने कहा कि यह सत्र अनूठा है क्योंकि विपक्षी पार्टियों ने एक साझा रणनीति के लिए अब तक कोई बैठक नहीं की है।  

एक वरिष्ठ कांग्रेस सदस्य ने कहा, ‘आम तौर पर हर सत्र के पहले विधानसभा और विधान परिषद में विपक्षी पार्टियां एक-दूसरे से मिलती हैं और अनौपचारिक रूप से आगे की रणनीति पर चर्चा करती हैं। प्रमुख विपक्षी पार्टी के रूप में एसपी ज्यादातर पहल करती रही है लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ है।’

शपथ समारोह से दूरी, मिले ये संकेत
मायावती, अखिलेश यादव और जयंत चौधरी की शपथ ग्रहण समारोह से दूरी के बाद कांग्रेस की गठबंधन में मौजूदगी को लेकर वेस्ट यूपी में काफी चर्चा है। दरअसल, जिस तरह से एसपी, बीएसपी और आरएलडी की तरफ से कांग्रेस से अलग रहने का संदेश देने की कोशिश की जा रही है, उससे माना जा रहा है कि 2019 में वेस्ट यूपी में सियासी तस्वीर अलग हो सकती है।

वेस्ट यूपी में दलित, मुस्लिम और पिछड़ा वर्ग (जाट) के वोटों के सम्मिलित आंकड़े बीजेपी को 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में मिले मतों से काफी भारी है। दलितों पर बीएसपी, पिछड़ों (जाटों) पर आरएलडी और बीजेपी, मुस्लिमों पर एसपी-बीएसपी, आरएलडी और कांग्रेस का दावा है। कांग्रेस के अलग रहकर चुनाव लड़ने से सहारनपुर, मुरादाबाद, गाजियाबाद, मेरठ आदि जिलों में गठबंधन को मिलने वाले वोटों में खासकर मुस्लिमों में बंटवारे का सबसे बड़ा खतरा संभावित है। ऐसे में बीजेपी को फायदा हो सकता है।

35 सीटों पर निर्णायक स्थिति में हैं मुस्लिम मतदाता
जानकारों की मानें तो वेस्ट यूपी की करीब 35 प्रतिशत सीटों पर मुस्लिम मत निर्णायक है। जनसंख्या में मुस्लिमों की आबादी करीब 19 फीसद है। शहरी इलाकों में करीब 32 और ग्रामीण इलाकों में 16 फीसद है। यूपी में 13 लोकसभा सीटों पर मुस्लिमों की आबादी 30 फीसद या उससे ज्यादा है। मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, बिजनौर, मुरादाबाद, रामपुर में 40 फीसद से ज्यादा मुसलमान हैं। रामपुर में 50 फीसद से ऊपर मुस्लिमों की तादाद है। कैराना में 35 फीसद से ज्यादा, मेरठ में 30 से ज्यादा, बागपत, गाजियाबाद में 25 फीसद से ज्यादा मुस्लिम हैं। नगीना और बरेली ऐसे जिले हैं, जहां एक तिहाई मुस्लिम हैं। सिर्फ गौतमबुद्धनगर और बुलंदशहर में 20 फीसदी से कम मुस्लिम हैं। बीजेपी के वेस्ट यूपी अध्यक्ष अश्विनी त्यागी का कहना है कि संभावित गठबंधन स्वार्थ की कवायद है, इसे ना तीन राज्यों के चुनाव में होना था और ना आगे 2019 के चुनाव में होगा।

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