नयी दिल्ली .अब आत्महत्या का प्रयास करने वाले पर आपराधिक मुकदमा नहीं चलेगा। आत्महत्या करने वाले को अब अपराधी नहीं, बल्कि मानसिक रोगी माना जाएगा। मेंटल हैल्थकेयर एक्ट-2017 में ऐसे प्रावधान किए गए हैं। यह एक्ट गुरुवार से लागू हो गया। इसके तहत अब मानसिक बीमारों का भी मेडिकल इंश्योरेंस हो सकेगा। दूसरी ओर, भारतीय दंड संहिता की धारा 309 के तहत आत्महत्या का प्रयास अपराध माना जाता है। इस धारा में पिछले 155 साल से कोई भी संशोधन नहीं किया गया है।
मेंटल हैल्थकेयर एक्ट-2017 की प्रदेश में पालना अनिवार्य कर दी गई है। अभी तक कोई भी कंपनी मानसिक रोगियों का मेडिकल इंश्योरेंस नहीं करती थी। एक्ट के लागू होने से अब कोई भी कंपनी इनका इंश्योरेंस करने से इनकार नहीं कर सकेगी। इसके लिए बुधवार को राज्य मेंटल हेल्थकेयर अथॉरिटी का गठन भी कर दिया गया। एनएचएम की अतिरिक्त निदेशक डाॅ. आरुषि मलिक ने बताया कि काफी रिसर्च और जानकारियों के बाद यह तय किया गया है कि आत्महत्या मानसिक बीमारी के रूप में मानी जाएगी। ऐसे व्यक्ति को अपराधी नहीं माना जा सकता। इसलिए नियम में परिवर्तन किया गया है।
एक्ट में उल्लेख : आत्महत्या की कोशिश करने वाले का इलाज कराना सरकार का कर्तव्य:मेंटल हैल्थकेयर एक्ट-2017 की धारा 115 के तहत आत्महत्या की कोशिश व्यक्ति भारी तनाव में करता है। ऐसे में उसे अपराधी मानकर दंडित नहीं किया जाना चाहिए। ऐसे व्यक्ति के लिए सरकार का कर्तव्य है कि उसे मानसिक रोगी मानकर उसके इलाज से लेकर उसके पुनर्वास करे, ताकि ऐसा फिर से होने की आशंका कम हो सके।
93% तक खुदकुशी मानसिक कारणों से
-3,765 लोगों ने आत्महत्या की प्रदेश में 2017 में। 2,641 पुरुष, 1,124 महिलाएं।
– 366 लोगों ने खुदकुशी की 2017 में जयपुर में।
– मध्यप्रदेश में अगस्त 2017 को सबसे पहले लागू किया गया था मेंटल हेल्थकेयर एक्ट।
– विशेषज्ञों के अनुसार 93% तक आत्महत्याएं मानसिक कारणों से होती हैं।
जिला स्तर पर भी कमेटियों का गठन होगा:एनएचएम की अतिरिक्त निदेशक डाॅ. आरुषि मलिक ने बताया कि जिला स्तर पर भी अथॉरिटी बनाई जाएगी, ताकि वहां मरीजों के रजिस्ट्रेशन किए जा सकें। अभी तक मानसिक मरीजों और परिजनों को इलाज के लिए परेशान होना पड़ता था, लेकिन अब मरीजों को भर्ती करने और इलाज की जिम्मेदारी तय होगी। मरीज को भर्ती करने से पहले उसकी या परिजनों की लिखित अनुमति लेनी होगी। यहां तक कि यदि कोई संस्थान बिना रजिस्ट्रेशन मरीजों को भर्ती करता है तो उसके खिलाफ एफआईआर तक दर्ज होगी। पिछले काफी समय से मरीजों और परिजनों की शिकायतें आ रही थीं और उन्हीं को आधार मानते हुए अधिनियम-1985 में बदलाव किया गया है।