नई दिल्ली : राफेल डील पर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. इस मामले में चल रहे सियासी बवाल के बीच इस फाइटर जेट को बनाने वाली कंपनी दसॉ एविएशन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एरिक ट्रैपियर ने राहुल गांधी के आरोपों को खारिज किया है। ट्रैपियर ने एक इंटरव्यू के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा इस डील को लेकर लगाए गए सभी आरोपों को बेबुनियाद बताया है। न्यूज एजेंसी एएनआई को दिए इंटरव्यू में ट्रैपियर ने कहा कि पूर्व राष्ट्रपति (फ्रांस्वा ओलांद) ने दसॉ-रिलायंस जॉइंट वेंचर (जेवी) के ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट को लेकर झूठ बोला था। उन्होंने कहा, ‘मैं झूठ नहीं बोलता। मैं पहले जो भी कहा और अब कह रहा हूं वह सच और सही है।’
बता दें कि इसी महीने की 2 तारिख को राहुल गांधी ने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा था कि दसॉ एविएशन ने राफेल जेट विमान सौदे हासिल करने के लिए घाटे वाली भारतीय कंपनी में 284 करोड़ रुपये का निवेश किया था. हालांकि, राहुल के आरोपों को रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर ने खारिज कर दिया था.
रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड के प्रवक्ता ने कहा था कि काफी दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि समूह और इसके अध्यक्ष को लगातार राज्यों के विधानसभा चुनावों व आम चुनाव के पहले राजनीतिक लड़ाई में घसीटा जा रहा है. कंपनी ने कहा कि रिलायंस एयरपोर्ट डेवलपर्स लिमिटेड (आरएडीएल) में दसॉ के निवेश का भारत और फ्रांस की सरकारों के बीच राफेल विमान सौदे से कोई संबंध नहीं है.
I don't lie. The truth I declared before and the statements I made are true. I don't have a reputation of lying. In my position as CEO, you don't lie: Dassault CEO Eric Trappier responds to Rahul Gandhi's allegations, in an exclusive interview to ANI #Rafale pic.twitter.com/K6PMdhg8pF
— ANI (@ANI) November 13, 2018
‘मेरी छवि झूठ बोलने वाले व्यक्ति की नहीं’
ट्रैपियर से जब पूछा गया कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा था कि दसॉ रिलायंस ग्रुप को ऑफसेट पार्टनर चुनने को लेकर झूठ बोल रहा है तो उन्होंने कहा, ‘मेरी छवि झूठ बोलने वाले व्यक्ति की नहीं है। मेरी पॉजिशन पर आकर आप झूठ बोलने का रिस्क नहीं ले सकते।’
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने 2 नवंबर को आरोप लगाया था कि दसॉ ने नुकसान झेल रही अनिल अंबानी की कंपनी में 284 करोड़ रुपये निवेश किए हैं। उन्होंने कहा था, ‘यह साफ है कि दसॉ सीईओ झूठ बोल रहे हैं। यदि इस मामले में जांच होती है तो मोदी को परेशानियों का सामना करना पड़ेगा।’
‘कांग्रेस के साथ काम का लंबा अनुभव, राहुल के आरोपों से आहत हूं’
अपने इंटरव्यू में ट्रैपियर ने कहा उनका कांग्रेस पार्टी के साथ डील करने का पुराना अनुभव भी है। कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा की गई इस टिप्पणी से वह दुखी हैं। ट्रैपियर ने कहा, ‘हमारा कांग्रेस पार्टी के साथ लंबा अनुभव है। हमारी 1953 में भारत के साथ हुई डील भारत के पहले पीएम नेहरू के साथ थी। हम लंबे समय से भारत के साथ काम कर रहे हैं। हम किसी पार्टी के लिए काम नहीं करते हैं। हम भारतीय वायु सेना और भारत सरकार को फाइटर जेट जैसे रणनीतिक प्रॉडक्ट सप्लाई करते हैं। यह सबसे ज्यादा जरूरी है।’
‘अनिल अंबानी की कंपनी में नहीं, जॉइंट वेंचर में लगाए पैसे’
जब उनसे रिलायंस को ही ऑफसेट पार्टनर चुनने के पीछे के कारणों पर दबाव देकर पूछा गया, जबकि रिलायंस के पास फाइटर जेट बनाने का कोई अनुभव नहीं है। ट्रैपियर ने साफ किया कि इसमें निवेश किया गया पैसा सीधे तौर पर रिलायंस को नहीं जाएगा, बल्कि यह एक जॉइंट वेंचर को जाएगा। दसॉ भी इसका हिस्सा है।
‘अगले 5 सालों में जॉइंट वेंचर में लगाएंगे 400 करोड़ रुपये’
सरकार के बनाए गए नियमों के मुताबिक, इस डील में रिलायंस 51 प्रतिशत पैसा लगाएगा और दसॉ को 49 प्रतिशत पैसा लगाना है। उन्होंने बताया, ‘हमें एक साथ 800 करोड़ रुपये 50:50 के अनुपात में लगाने हैं। कुछ समय के लिए काम शुरू करने और कर्मचारियों को भुगतान करने के लिए हमने पहले ही 40 करोड़ रुपये लगाए हैं, लेकिन यह 800 करोड़ रुपये तक बढ़ेगा। इसका मतलब है कि दसॉ को आने वाले 5 सालों में 400 करोड़ रुपये लगाने हैं।’
‘ऑफसेट पार्टनरशिप में सिर्फ रिलायंस नहीं, 29 अन्य भारतीय कंपनियां’
ट्रैपियर ने कहा कि ऑफसेट के लिए दसॉ के पास 7 साल हैं। ट्रैपियर ने कहा, ‘पहले 3 साल के दौरान, हम इस बात की जानकारी नहीं देंगे कि हम किसके साथ काम कर रहे हैं। हमनें पहले 30 कंपनियों के साथ अग्रीमेंट किया है, जो कॉन्ट्रैक्ट के मुताबिक 40 प्रतिशत ऑफसेट हिस्सा है। इसमें रिलायंस का हिस्सा 10 प्रतिशत है। बाकी का 30 प्रतिशत दसॉ और अन्य कंपनियों के बीच है।’
‘9 प्रतिशत सस्ते दामों में भारत को बेचे राफेल’
ट्रैपियर ने राफेल की कीमत को लेकर भी मोदी सरकार के दावे की पुष्टि करते हुए कहा कि यह एयरक्राफ्ट 9 प्रतिशत सस्ता है। उन्होंने कहा, ‘जब आप 18 फ्लाइवे की कीमत से तुलना करते हैं तो 36 का दाम भी वही है। 36, 18 का दोगुना है। इसलिए यह रकम भी दोगुनी होनी चाहिए थी। क्योंकि यह गवर्नमेंट टु गवर्नमेंट डील है, इसलिए कीमत पर मोल-भाव हुआ। मुझे इसकी कीमत 9 प्रतिशत कम करनी पड़ी।’
‘हमें HAL के साथ भी नहीं होती परेशानी’
जब ट्रैपियर से एचएएल के साथ शुरुआती अग्रीमेंट के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि यदि पूर्व की 126 एयरक्राफ्ट डील आगे बढ़ती तो वह एचएएल (हिंदुस्तान ऐरोनॉटिक्स लिमिटेड) और मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाली रिलायंस के साथ काम करने में भी कोई परेशानी नहीं होती। उन्होंने कहा, ‘क्योंकि 126 एयरक्राफ्ट की डील सहजता से नहीं हुई और भारत सरकार को फ्रांस से तुरंत 36 एयरक्राफ्ट डील करनी पड़ी। इसके बाद मैंने रिलांयस के साथ काम जारी रखने का फैसला किया। यहां तक कि एचएएल ने भी पिछले कुछ दिन पहले कहा था कि वे इस ऑफसेट का हिस्सा होने में रूचि नहीं रखते हैं। इसके बाद मैंने और रिलायंस ने नई प्राइवेट कंपनी में निवेश करने का फैसला लिया’
‘राफेल सभी जरूरी उपकरणों से लैस’
दसॉ के सीईओ ने बताया कि इस डील के लिए हम कई अन्य कंपनियों के साथ भी बात कर रहे थे। उन्होंने कहा, ‘बिल्कुल हम लोग टाटा या अन्य किसी बड़े घराने के साथ जा सकते थे। उस समय दैसॉ को इसके लिए आगे बढ़ने का फैसला नहीं दिया गया था। साल 2011 में टाटा भी अन्य फ्लाइंग कंपनियों के साथ बात कर रहे थे। इसके बाद हम लोगों ने रिलायंस के साथ आगे बढ़ने का फैसला किया। क्योंकि उनके पास कई बड़े इंजिनियरिंग प्रॉजेक्ट को पूरा करने का अनुभव है।’
दसॉ के सीईओ ने कहा कि इस एयरक्राफ्ट में सभी जरूरी उपकरण हैं, लेकिन हथियार और मिसाइल नहीं। उन्होंने बताया, ‘हथियारों को अन्य कॉन्ट्रैक्ट के तहत भेजा जाएगा। लेकिन हथियार को छोड़कर विमान के साथ सब कुछ दसॉ द्वारा भेजा जाएगा।’