सीतापुर : त्याग-भक्ति और मोक्ष की सनातन यात्रा का आज ‘शंखनाद’

नैमिषारण्य-सीतापुर। तपोभूमि नैमिषारण्य में आज फाल्गुन मास की सोमवती अमावस्या के पावन पर्व पर बड़ी संख्या में प्रदेश और देश के विभिन्न भागों से आये श्रद्धालुओं, साधु संतों ने पावन चक्रतीर्थ और गोमती नदी के राजघाट, दशाश्वमेघ घाट, देवदेवेश्वर घाट पर स्नान दान कर बड़े ही आस्था भाव से तीर्थ धर्म की परम्परा का पालन किया। श्रद्धालुओं ने चक्रतीर्थ व गोमती नदी में स्नान, दान के बाद नैमिषारण्य स्थित माँ ललिता देवी, व्यास गद्दी, हनुमान गढ़ी, कालीपीठ, सूतगद्दी, देवदेवेश्वर, देवपुरी, कालीपीठ आदि मन्दिरों में दर्शन पूजन किया। आज श्रद्धालुओं के स्नान दर्शन का क्रम सुबह 3 बजे से ही प्रारम्भ हो गया था जो देर शाम तक चलता रहा।

बोल कडाकड़ सीताराम, जय श्रीराम के जयकारों से गूंजेगी नैमिष की सरजमीं

ज्ञात हो कि फाल्गुन मास की सोमवती अमावस्या का अपना अलग ही आध्यात्मिक महत्व होता है अमावस्या के ठीक दूसरे दिन 15 दिवसीय रामादल परिक्रमा का नैमिष तीर्थ से प्रारम्भ होता है। रामादल डंके की धुन के साथ सुबह 4 चार बजे से प्रति वर्ष की परम्परा के अनुसार यात्रा मार्ग पर विभिन्न देवदर्शन करते हुए प्रथम पड़ाव कोरौना पहुंचता है। इस अद्भुत यात्रा में भाग लेने के लिए बड़ी संख्या में 19 और 20 फरवरी को श्रद्धालुगण नैमिष तीर्थ पहुँच चुके है और अब बस कुछ ही घण्टो बाद मंगलवार सुबह इस पावन परिक्रमा का शंखनाद होने वाला है जिसका इंतजार इस अनोखी परिक्रमा में भाग लेने वाले हर सन्त, गृहस्थ, महिला और युवा को है।

रामादल यात्रा का महत्व

मान्यता है कि ये परिक्रमा महर्षि दधीचि ने राक्षस वृत्तासुर के वध के लिए अपनी अस्थियों का दान देने पहले प्रारम्भ की थी। इस परिक्रमा में देवराज इंद्र ने सभी देव और तीर्थो को आमंत्रित किया था और इस परिक्रमा में सभी तीर्थों और देवो का दर्शन करने के बाद महर्षि दधीचि ने मिश्रिख तीर्थ में गायों से अपने शरीर को चटवाकर अपनी अस्थियों का दान दिया था जिससे देवराज इंद्र ने वज्र का निर्माण करवाया और वृत्तासुर दैत्य का वध किया गया।

मान्यता है कि 84 कोस की 11 पड़ावों पर की इस यात्रा में सभी 33 कोटि देव और साढ़े तीन करोड़ तीर्थो का स्वरूप विद्यमान है। प्रभु श्रीराम द्वारा इस परिक्रमा में शामिल होकर पुण्य लाभ लेने के बाद से इस परिक्रमा को रामादल कहा जाता है। मान्यता है कि 84 कोस की इस पावन यात्रा में प्रतिभाग करने से मनुष्य 84 लाख योनियों के बंधन से मुक्त हो जाता है और श्रीहरि नारायण की अनन्य कृपा से प्राणी को भक्ति और मोक्ष प्राप्त होता है।

ये है रीति व पहले पड़ाव के मध्य दर्शन

सबसे पहले चक्रतीर्थ या गोमती नदी में स्नान, फिर चक्रतीर्थ प्रांगण पर गणेश जी को लड्डू का प्रसाद अर्पण करते है इसके बाद चक्रतीर्थ प्रांगण स्थित श्री भूतनाथ, संकटमोचन हनुमान, श्रृंगी ऋषि, रामसीता, गोकर्णनाथ, सूर्यदेव, नारायण की परिक्रमा कर माँ ललिता देवी, पंच प्रयाग, जानकी कुंड का दर्शन कर डंके की धुन के बाद पहले पड़ाव ‘कोरावन’ कोरौना के प्रमुख दर्शन श्री कर्कराज, कुनेरा तीर्थ, कटह, रामकुंड, यज्ञ वाराह कूप द्वारिकाधीश तीर्थ, द्वारिकाधीश मन्दिर पर पूजा अर्चना करते है और कोरौना तीर्थ पर प्रथम पड़ाव करते है।

दूसरी बार महंत नन्हकू दास बजायेंगे डंका

हर वर्ष रामादल परिक्रमा का शंखनाद पहला आश्रम महंत के द्वारा परंपरागत डंका की धुन के साथ होता है। वर्ष 2021 में महंत भरतदास ने डंका बजाकर यात्रा का प्रारम्भ किया था पर फरवरी 2022 में उनका देहांत हो जाने के चलते अब नए महन्त नन्हकू दास दूसरी बार इस परम्परा का निर्वहन करेंगे।

किन तिथियों पर कहां रूकेगे परिक्रमार्थी

पड़ाव पड़ाव कोरौना 21 फरवरी, दूसरा पड़ाव हर्रेया 22 फरवरी, तीसरा पड़ाव नगवा कोथांवा 23 फरवरी, चैथा पड़ाव गिरधरपुर-उमरारी 24 फरवरी, पांचवा पड़ाव साखिन (साक्षी) गोपालपुर 25 फरवरी, छठा पड़ाव दधनामउ देवगंवा 26 फरवरी, सांतवा पड़ाव मडरूवा 27 फरवरी, आठवां पड़ाव जरीगंवा 28 फरवरी, नौवा पड़ाव नैमिषारण्य 1 मार्च, दसवा पड़ाव कोल्हुआ बरेठी 2 मार्च, ग्यारवा पड़ाव मिश्रिख 3 मार्च।

खबरें और भी हैं...

अपना शहर चुनें