कहानी घटनाओं का व्याख्यान नहीं संवेदना और अलंकार की भाषा का नाम है : प्रेमपाल शर्मा

‘कथा संवाद’ में वंदना, सिनीवाली, रविन्द्रकांत व शिवराज की कहानियों ने दिए स्त्री स्त्री विमर्श को नए आयाम

 संवाददाता

गाजियाबाद। मीडिया 360 लट्रेरीरी फाउंडेशन के ‘कथा संवाद’ को संबोधित करते हुए प्रसिद्ध लेखक और कार्यक्रम अध्यक्ष प्रेमपाल शर्मा ने कहा कि कहानी घटनाओं का व्याख्यान नहीं होती। कहानी संवेदना का नाम है, कहानी अलंकार की भाषा का नाम है। कथा संवाद में पढ़ी गई कहानियों पर हुए विमर्श में उन्होंने कहा कि मंच से पढ़ी गई तमाम कहानियां स्त्री पात्रों को ही केंद्र में रखकर कही गई हैं। सुनी गई कहानियों की स्त्रियां किसी विशेष कालखंड का हिस्सा नहीं हैं। दुनिया भर में भाषा और बोलियां अलग हो सकती हैं लेकिन वैश्विक स्तर पर स्त्रियों की तकलीफ और दर्द एक जैसा ही है। उन्होंने कहा कि चार सदियों का इतिहास गवाह है कि यूरोप में परिवर्तन की अग्रज स्त्रियां ही रही हैं।

  सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल नेहरू नगर शाखा में आयोजित ‘कथा संवाद’ में ‘इत्रदान’ पर चर्चा करते हुए सुप्रसिद्ध साहित्यकार कमलेश भट्ट ‘कमल’ ने कहा कि कहानी में अतीत का रुदन और सौंदर्य का अधिक विवरण न तो कथा विन्यास के लिए अधिक आवश्यक है न ही तार्किक है। इसके बगैर भी कहानी का प्रवाह बखूबी बना रहता है। कहानी में किसान के संघर्ष का संकेत है, लेकिन उसका संघर्ष धरातल पर दिखाई नहीं देता। उन्होंने कहा कि हमें अतीत के आवरण से मुक्त होना होगा। अतीत को लेकर बैठते हैं तो समय के छलावे में चले जाते हैं। सुप्रसिद्ध लेखिका और कार्यक्रम की मुख्य अतिथि वंदना बाजपेई ने कहा कि ‘इत्रदान’ में लोक की मिठास है और ग्रामीण परिवेश का वह चित्रण है जो मीडिया या अन्य माध्यमों से हमारे समक्ष नहीं आ पाता है। सिनीवाली इसलिए बधाई की पात्र हैं कि उन्होंने ग्रामीण परिवेश का साक्षात चित्रण किया है। कार्यक्रम अध्यक्ष प्रेमपाल शर्मा ने कहा कि सिनीवाली की ‘इत्रदान’ को सुनते हुए हमें प्रेमचंद की ‘पूस की रात’ को भी सामने रखना होगा। वंदना वाजपेई की कहानी ‘तारीफ’ ने श्रोताओं की खासी तारीफ बटोरी। श्रोताओं और अतिथियों ने एक स्वर में ‘तारीफ’ को सशक्त रचना करार दिया। लेखक-पत्रकार सुभाष अखिल की कहानी ‘गुड वर्क’ पर लंबा विमर्श हुआ। कहानी का ताना-बाना दो दशक पूर्व वसुंधरा इलाके में हुई कुख्यात अपराधी सरगना श्रीप्रकाश शुक्ला के एनकाउंटर में मारे जाने और मीडिया में उसकी कवरेज के इर्द-गिर्द बुना गया है। लेखक रविंद्रकांत त्यागी ने कहा कि कोतवाल की बैठक में तीन लोग बैठे हैं, लेकिन कहानी पाठक से इतने सशक्त रूप से जुड़ती है कि उसे महसूस होता है कि चौथे व्यक्ति के रूप में वह भी बैठक में मौजूद है।

  रविंद्रकांत त्यागी की कहानी ‘गोश्तखोर’ का वाचन डॉ. पूनम सिंह ने किया। पूनम सिंह के सशक्त वाचन ने कथा के मार्मिक चित्रण को जीवंत कर दिया। प्रेमपाल शर्मा ने कहा कि वेश्या पात्र के इर्द-गिर्द रची गई इस कहानी का सबसे सशक्त पक्ष यह है कि रचनाकार ने इसे बिस्तर पर खेलने वाली कहानी होने से बचा लिया। ‘कथा संवाद’ में फाउंडेशन के अध्यक्ष शिवराज सिंह ने ‘परोपकार’, डॉ. बीना शर्मा ने ‘शादी’ और सोनम यादव ने शीर्षक विहीन अपनी कहानियों के प्लाट सुनाए। ‘परोपकार’ पर चर्चा करते हुए डॉ. पूनम सिंह ने कहा कि शिवराज सिंह के पास वह पारखी नजर है जो लोकाचार के आवरण में पनप रहे व्यभिचार को भी देख लेती है। उनकी लेखनी व्यभिचार के विस्तार में नहीं जाती, बल्कि लोकाचार्य की मर्यादा का निर्वहन करती नजर आती है।

  सुप्रसिद्ध रंगकर्मी अक्षयवरनाथ श्रीवास्तव ने कहा कि ‘कथा संवाद’ जैसे आयोजनों के जरिए हमारा स्थानीय रचनाकारों की रचनाधर्मिता से परिचय होता है। आलोक यात्री और सुभाष अखिल जैसे लेखकों की अधिकांश कहानियों में नाटक से लेकर फिल्म चित्रण के तमाम तत्व मौजूद हैं।

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