कल है अपरा एकादशी, श्रीकृष्ण ने बताया था इस व्रत का विधान

15 मई को ज्येष्ठ महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी है। इसे अपरा या अचला एकादशी कहते हैं। द्वापर युग से ये व्रत किया जा रहा है। उस युग में सबसे पहले श्रीकृष्ण ने इस व्रत के बारे में अर्जुन को बताया था। फिर पांडवों ने ये व्रत किया। पांडवों के पुरोहित धौम्य ऋषि ने भी इस व्रत को किया था।

अपरा एकादशी पर सुबह तीर्थ स्नान करने का विधान है। इसके बाद भगवान विष्णु के त्रिविक्रम रूप या वामन अवतार की पूजा करें। दिन में जरुरतमंद लोगों को अन्न या जलदान करें। पुराणों के मुताबिक इस व्रत से बीमारियां और परेशानियां दूर होती हैं। इस एकादशी पर स्नान-दान से गोमेध और अश्वमेध यज्ञ करने जितना पुण्य मिलता है।

जानिए अपरा एकादशी की पूजा विधि

सूर्योदय से पहले उठकर तीर्थ जल से स्नान करें। साफ कपड़े पहनें और पीले आसन पर बैठकर व्रत का संकल्प लें। भगवान विष्णु का ध्यान करें। पूर्व दिशा की में बाजोट पर पीला कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की मूर्ति या फोटो स्थापित करें। कलश स्थापित करें और धूप-दीप जलाएं। शंख में गंगाजल और कच्चा दूध मिलाकर भगवान विष्णु का अभिषेक करें। पंचामृत से नहलाएं फिर शुद्ध जल से भगवान को स्नान करवाएं। अबीर, गुलाल, चंदन, फूल और अन्य पूजन सामग्री से पूजा करें। भगवान को तुलसी पत्र अर्पित करें। व्रत की कथा सुनें और आरती करने के बाद प्रसाद बांट दें।

आखिर क्यों किया जाता है अपरा एकादशी का व्रत

इस व्रत से भगवान विष्णु की विशेष कृपा मिलती है। अपरा एकादशी पर नियम और विधि से भगवान की स्तुति करने से दुश्मनों पर जीत, सुख-समृद्धि और हर तरह के संकट से मुक्ति मिलती है। इस व्रत को करने से आरोग्य और कई यज्ञों का फल मिलता है।

महाभारत और पुराणों में बताया है महत्व

नारद और भविष्य पुराण के मुताबिक अपरा एकादशी का व्रत और पूजन करने से जाने-अनजाने में हुए पाप खत्म हो जाते हैं। मनोकामनाएं भी पूरी होती है। महाभारत में बताया है कि पांडवों ने अपरा एकादशी की महिमा भगवान श्रीकृष्ण के मुख से सुनी थी। पांडवो ने श्रीकृष्ण के मार्गदर्शन में इस व्रत को करके महाभारत युद्ध में जीत हासिल की थी।

धौम्य ऋषि ने किया था ये एकादशी व्रत धौम्य ऋषि जंगल से गुजर रहे थे तब उन्होंने पीपल के पेड़ पर एक राजा को प्रेत रूप में देखा। उन्होंने अपने तपोबल से उसके प्रेत बनने का कारण जाना। ऋषि ने पीपल के पेड़ से राजा की प्रेतात्मा को नीचे उतारा और परलोक विद्या का उपदेश दिया।

राजा को प्रेत योनि से मुक्ति के लिए ऋषि ने अपरा एकादशी व्रत रखा और उसका पुण्य प्रेत को दे दिया। एकादशी व्रत के पुण्य से राजा प्रेत योनि से मुक्त हो गया और स्वर्ग चला गया।

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