चोटी बांधने से होते हैं ये गजब के फायदे, दिन में एक बार जरूर बांधें लड़कियां

वैदिक संस्कृति में चोटी को शिखा कहते हैं और इस शिखा से हमारी संस्कृति के कुछ राज छुपे है |आपको बता दे आज के समय में तो युवा पीढ़ी के युवक-युवती भी चोटी तो जरुर बांधते हैं लेकिन वो सिर्फ फैशन के लिए ही ऐसा करते हैं और कुछ लोग तो इतने मॉडर्न हो चुके हैं की चोटी बांधना तो जैसे भूल ही चुके हैं इसकी वजह ये है की वे चोटी बाँधने के लाभ नहीं जानते।आपको जानकर हैरानी होगी दरअसल चोटी बांधना सिर्फ एक श्रंगार नहीं है बल्कि इससे बहुत से मानसिक और शारीरिक लाभ मिलते हैं। यही वजह है कि प्राचीन काल में महिलाओं के साथ पुरुष भी चोटी यानी शिखा रखते थें .

आपने देखा होगा आज भी जो लोग शास्त्रीय तौर-तरीकों को समझते हैं वे अपने सिर पर शिखा अवश्य रखते हैं। इसके पीछे का कारण यह है कि जिस स्थान पर चोटी रखी जाती है, सिर का यह हिस्सा अत्याधिक संवेदनशील होता है। उसे थोड़ा कसने से मस्तिष्क और बुद्धि नियंत्रित रहती है। शास्त्रों में तो यहां तक लिखा है जिस प्रकार अग्नि के बिना हवन का पूर्ण होना संभव नहीं है, उसी प्रकार शिखा के बगैर किसी भी धार्मिक कार्य को संपूर्ण नहीं माना जा सकता।

दरअसल सनातन धर्म के हर कर्म काण्ड के पीछे कुछ वैज्ञानिक कारण होते हैं चोटी बांधने के पीछे भी धार्मिक महत्व के साथ वैज्ञानिक लाभ छिपा हुआ है तो आइये हम आपको सबसे पहले इसके धार्मिक लाभ के विषय में बात देते हैं |शास्त्रों में चोटी यानी शिखा को विशेष महत्व दिया गया है शास्त्रों की माने तो जिस प्रकार अग्नि के बिना कोई हवन पूर्ण नहीं होता है, उसी तरह चोटी या शिखा के बिना कोई धार्मिक कार्य पूर्ण नहीं हो सकता है। सभी धार्मिक कर्मकाण्डों के लिए ये एक अनिवार्य मानी जाती है|

शास्त्रों में शिखा को ज्ञान और बुद्धि का प्रतीक माना गया है और कहते हैं इससे व्यक्ति की बुद्धि नियंत्रित होती है। ऐसे में पूजा करते वक्त मन की एकाग्रता बनी रहे, इसलिए भी चोटी रखी जाती है | शास्त्रों के अनुसार शिखा रखने के पीछे ऐसी मान्यता है की इससे मनुष्य धार्मिक, सात्त्विक और संयमी बना रहता है। साथ ही कहा गया है कि जो मनुष्य शिखा रखता है देवता भी उसकी रक्षा करते हैं।.

वहीं विज्ञान की दृष्टि से बात करें तो जिस स्थान पर चोटी बांधी जाती है, सिर का वो भाग बेहद संवेदनशील होता है। ऐसे में इस स्थान पर चोटी बाँधने पर मस्तिष्क और बुद्धि नियंत्रित रहती है। वैसे महिलाओं के चोटी बांधना अधिक हितकर माना गया है क्योंकि पुरुषों की तुलना में महिलाओं का मस्तिष्क अधिक संवेदनशील होता है। ऐसे में वातावरण की नकारात्मक ऊर्जा का असर महिलाओं के मन-मस्तिष्क पर पड़ता है। पर सिर पर चोटी होने से बाहरी नकारात्मक वातावरण से मस्तिष्क की रक्षा होती है|

इसके साथ ही विज्ञान के अनुसार हमारे मस्तिष्क के दो भाग होते हैं इन दोनों भागों के संधि स्थान यानी दोनों भागों के जुड़ने की जगह बहुत संवेदनशील होती है। ऐसे में इस भाग को अधिक ठंड या गर्मी से सुरक्षित रखने के लिए भी चोटी बनाई जाती है।

इसके अलावा योगशास्त्र में भी चोटी बाँधने का महत्वपूर्ण स्थान है। योगशास्त्र में पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियों के विषय में बताया गया है। इन तीनों में सुषुम्ना ज्ञान और क्रियाशीलता की नाड़ी मानी गई है। यह रीढ़ की हड्डी से होकर मस्तिष्क के बेच में पहुंचती है। जहां यह नाड़ी मिलती है वहीं चोटी बांधी जाती है, यह आत्मिक ऊर्जा और अत्मशक्ति को बढ़ाती है।

यही वजह है कि दिन में एक बार स्त्री को मस्तिष्क के बीचोंबीच चोटी अवश्य बांधनी चाहिए।

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