दिल्ली में पंजाबी-पूर्वांचली-जाट वोटों को टारगेट करने में जुटे है भाजपा-आप और कांग्रेस

सत्ता पर काबिज आप हो या 21 साल से सत्ता से बाहर बीजेपी या फिर लगातार 15 साल शासन का रिकॉर्ड लिए कांग्रेस, तीनों ही दल इस दफे दिल्ली में पंजाबी-पूर्वांचली-जाट वोटों को टारगेट करने में जुटे हैं. दरअसल, दिल्ली की सियासत में पूर्वांचली वोट बैंक कभी कांग्रेस का हुआ करता था. वहीं, पंजाबी और जाट समुदाय एक समय में बीजेपी का मजबूत वोट बैंक हुआ करता था. दिल्ली की बदली हुई राजनीति में ये तीनों समुदाय बीजेपी से छिटक कर केजरीवाल की पार्टी आप के साथ चला गया. ऐसे में बीजेपी हो या कांग्रेस किसी एक समुदाय के किसी नेता को सीएम पद का फेस घोषित कर दूसरे समुदाय को नाराज करने का जोखिम भरा कदम नहीं उठा रहे हैं.

पूर्वांचल का प्रभाव
दिल्ली में करीब 25 फीसदी से ज्यादा मतदाता पूर्वांचली हैं. दिल्ली की किराड़ी, बुराड़ी, उत्तम नगर, संगम विहार, बादली, गोकलपुर, जनकपुरी, मटियाला, द्वारका, नांगलोई, करावल नगर, विकासपुरी, सीमापुरी जैसी 13 विधानसभा सीटों पर पूर्वांचली मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं.

बाहरी दिल्ली में जाट वोटर्स
दिल्ली के 364 में से 225 गांव जाट बहुल हैं और विधानसभा चुनावों में करीब 20 फीसदी हिस्सेदारी जाट मतदाताओं की रहती है. बाहरी दिल्ली के तहत आने वाली विधानसभा सीट पर जीत हार का फैसला जाट समुदाय के मतदाता करते हैं.

दिल्ली में पंजाबी मतदाता 
दिल्ली में करीब 35 फीसदी आबादी पंजाबी समुदाय की है. इनमें 10 फीसदी से ज्यादा पंजाबी खत्री और 8 फीसदी आबादी जाटों और 12 फीसदी वैश्य समुदाय हैं. दिल्ली की विकासपुरी, राजौरी गार्डन, हरी नगर, तिलक नगर, जनकपुरी, मोती नगर, राजेंद्र नगर, ग्रेटर कैलाश, जंगपुरा, गांधी नगर, मॉडल टाऊन, लक्ष्मी नगर और रोहिणी जैसी 13 विधानसभा सीट पर पंजाबी समुदाय जीत हार तय करते हैं. दिल्ली में एक दौर में पंजाबी वोटर बीजेपी का परंपरागत वोट बैंक माने जाते थे. मदनलाल खुराना, विजय कुमार मल्होत्रा और केदारनाथ साहनी की तिकड़ी को बीजेपी का पंजाबी चेहरा माना जाता था. पंजाबी वोटरों के सहारे ही बीजेपी 1993 में सत्ता के सिंहासन पर विराजमान होने में कामयाब भी रही थी.

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