शिक्षक दिवस : शिक्षा से सामाजिक जीवन में आती है सक्रियता

यह सर्वविदित ही है कि शिक्षा सामाजिक जीवन में सक्रिय भूमिका निभाने की तैयारी है।सामाजिक किर्याकलापो में भागीदारी के लिए प्रत्येक प्राणी की शिक्षा बेहद जरूरी है। लेकिन यह शिक्षा मानवीय मूल्यों पर आधारित होनी चाहिए जो मनुष्य को मनुष्य का ज्ञान दे सके, मनुष्य
के व्यक्तित्व का विकास कर सके। अतः अपने विद्यार्थियों को सुयोग्य, कर्तव्य निष्ठ, नागरिक बनाने में शिक्षक को अहम भूमिका होती है जो हमारी सफलता प्राप्ति के लिए मदद करते है, हमारे जीवन को सही आकार में ढालते है, जीवन में अच्छा करने के लिए वह हमें हर संभव कार्य को संभव करने की प्रेरणा देते हैं।


एक शिक्षक विद्यार्थियों के जीवन के वास्तविक कुम्हार होते हैं,जो न सिर्फ हमारे जीवन को आकार देते हैं,अपितु इस योग्य बनाए हैं कि हम पूरी दुनिया में अंधकार होने के बाद भी प्रकाश

तरह जलते रहे। कहा भी गया है —–
गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ गढ़ काढ़े खोट।

आचार्य चाणक्य ने भी गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए कहा है –
किसी भी राष्ट्र /देश का उत्थान अथवा पतन गुरु के हाथ में होता है। इसलिए किसी भी देश को महान और गौरवशाली बनाने में शिक्षक की अहम भूमिका होती है तो आइये शिक्षक दिवस के इस पावन पर्व पर इसे है व्यक्तित्व के धनी, शिक्षा के प्रति समर्पित अध्येता, राजनयिक और खासतौर से एक शिक्षक के रूप में जाने जाने वाले,भारत के राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के बारे में बात करते हैं जिनका जन्म 5 सितम्बर 1888 में तमिलनाडु के तिरूतनी ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम सर्वपल्ली वीरास्वामी और माता का नाम सिताम्मा था। इनका विवाह सन 1903 में 16 वर्ष की आयु में सिवाकमु के साथ हुआ था। इन्हीं के जन्म दिवस पर प्रत्येक वर्ष 5 सितम्बर को शिक्षा के छेत्र में विशिष्ट कार्य करने वाले, शिक्षा के प्रति समर्पित शिक्षकों को सम्मान देने हेतु शिक्षक दिवस मनाया जाता है।इसके बारे में भी यह कहा जाता है कि एक बार 1962 में जब वह भारत के राष्ट्रपति बने तो कुछ विद्यार्थियों ने 5 सितम्बर को उनका जन्म दिन मनाने का निवेदन किया लेकिन डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा कि 5 सितम्बर को मेरा जन्म दिन मनाने के बजाय क्यों न इस दिन को अध्यापन के प्रति मेरे समर्पण के लिए शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाय, उनके इस कथन के बाद पूरे भारत वर्ष में 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।


डॉक्टर राधाकृष्णन एक महान शिक्षक थे जिन्होंने अपने जीवन के 40 वर्ष अध्यापन कार्य किया। वे विद्यार्थियों के जीवन में शिक्षकों के योगदान और भूमिका के लिए प्रसिद्ध थे, इसलिए वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने शिक्षकों के बारे में सोचा और 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने का अनुरोध किया। उन्होंने सन 1909 में चेन्नई के प्रेसीडेंसी कॉलेज में अध्यापन पेशे में प्रवेश करने के द्वारा दर्शन शास्त्र शिक्षक के रूप में अपने कैरियर कि शुरूआत की । उनका कथन था –
“एक योग्य शिक्षक वहीं है जिसके अंदर एक विद्यार्थी जिंदा रहता है”


अतः शिक्षक ज्ञान का श्रोत होता है जो हमारे जीवन में ज्ञान प्रदान करने के साथ जीवन को दिशा देते हैं। इसीलिए शिक्षक और विद्यार्थियों के बीच के रिश्तो की खुशी मनाने के लिए शिक्षक दिवस मनाया जाता है। इस पर्व को स्कूल, कॉलेज,विश्वविद्यालय और शैक्षणिक संस्थानों में शिक्षक और विद्यार्थियों के द्वारा बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है।इस दिन छात्र अपने प्रिय अध्यापक को सम्मान स्वरूप उपहार देते है तथा मीडिया एवम् अन्य माध्यमों से बधाइयां देते हैं। साथ ही इस दिन विद्यार्थियों द्वारा अपने पसंदीदा शिक्षकों कि वेश भूषा धारण करके अपनी से नीचे की कक्षाओं में जाकर पढ़ाते है जो बड़े तथा छोटे सभी तरह में विद्यार्थियों के लिए काफी मजेदार होता है। पढ़ाने के साथ ही दूसरी गतिविधियों में भी छात्र हिस्सा लेते है। इस दौरान सीनियर छात्र विद्यालय का अनुशासन बनाए रखते है। इस दिन कहीं कहीं बेस्ट ड्रेस शो एवं रोल प्ले जैसे कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। इस प्रकार इस पावन पर्व शिक्षक दिवस पर सभी शिक्षक एवं शिक्षिकाओं का सम्मान किया जाता है।क्योंकि अपने शिक्षकों के महान कार्यों के बराबर हम उन्हें कुछ भी नहीं लौटा सकते लेकिन उन्हें सम्मान और धन्यवाद ती डे ही सकते हैं। तो आइएं शिक्षक दिवस पर हम सब प्रतिज्ञा करें कि भविष्य निर्माता अपने शिक्षक का सम्मान करेंगे और उनके महानतम कार्यों में अपना पूर्ण सहयोग देंगे। क्योंकि बिना शिक्षक के हम सब अधूरे हैं।

जय हिन्द। जय शिक्षक।

                    प्रस्तुति
               अशोक कुमार
           जिला स्काउट शिक्षक
              जनपद बिजनौर

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