इस पुत्र ने ही माता पार्वती पर डाली थी बुरी नज़र, जानिए कौन था वो पापी ?

आप सबने शिव और पार्वती की संतानों के बारे में तो सुना ही होगा. गणेश और कार्तिकेय शिव पार्वती की चहेती संतानें थी जिन्हें पूरा संसार सदियों से पूजता आ रहा है. आपने वो कथा तो अवश्य सुनी होगी जब भगवान शिव ने दोनों बच्चों से पृथ्वी का चक्कर लगाने की शर्त रखी और कहा कि “देखते हैं कौन सबसे पहले पूरी पृथ्वी का चक्कर काट कर लौटता है?” इस शर्त के बाद कार्तिकेय पृथ्वी का चक्कर लगाने के लिए निकल पड़े जबकि गणेश ने माता पिता को ही अपनी पृथ्वी बता कर चक्कर काटने आरंभ कर दिए थे. गणेश की इस बुद्धि से भगवान शिव काफी प्रसन्न हुए थे. लेकिन यह बात तो थी भगवान के दोनों पुत्रों की मगर क्या आप जानते हैं कि शिव और पार्वती का एक और पुत्र था? जी हाँ, अंधक भगवान शिव की तीसरी संतान था जिसका वध स्वयं उन्होंने किया था. चलिए जानते हैं अंधक का वध शिव भगवान ने क्यूँ किया था.

पुरातन कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव और माता पार्वती काशी घूमने के लिए निकले थे. यही पर महादेव अपना मुख पूर्व की ओर करके बैठे थे इतने में देवी पार्वती को एक मजाक सूझा और उन्होंने पीछे से आकर अपने दोनों हाथों से भगवान की आंखें बंद कर दी. मां पार्वती के इस मज़ाक से समस्त संसार के चारों और अंधकार छा गया. इस अंधकार को मिटाने के लिए भगवान शिव ने अपना तीसरा नेत्र खोल दिया जिसके बाद पूरा संसार फिर से प्रकाशमय हो गया. परंतु भगवान की इस तीसरी आंख का ताप इतना अधिक था कि माता पार्वती के पसीने छूटने लगे. इसी पसीने की बूंदों में से एक बूंद से उनका एक बालक उत्पन्न हुआ. ऐसा माना जाता है कि यह बालक दिखने में बहुत ही भयानक लगता था और बिल्कुल एक असुर की तरह दिखाई देने वाला दानव था.

बूंदों में से अपने बालक को जन्मा देखकर माता पार्वती को बेहद आश्चर्य हुआ. जब उन्होंने महादेव से इस बालक के जन्म का रहस्य पूछा तो उन्होंने उसे अपना पुत्र बताया. शंकर भगवान के पुत्र का नाम अंधक रखा क्योंकि वह अंधकार के समय पैदा हुआ था.

हिंदू शास्त्रों में लिखा है कि असुरों का राजा हिरण्याक्ष भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए उस समय कठोरता में लीन था. अपने प्रति इतनी भक्ति भावना को देखकर शिव भगवान ने उसे वरदान मांगने को कहा. वरदान में हिरण्याक्ष ने महादेव से एक बलशाली पुत्र की कामना की जिस पर महादेव ने उसे अपना पुत्र अंधक ही सौंप दिया. अंधक को पाकर हिरण्याक्ष  बहुत प्रसन्न हुआ. इस प्रकार अंधक असुरों में ही पला-बढ़ा और आगे चलकर उन्हीं का राजा भी बना.

ऐसी मान्यता है कि अंधक दिखने में बेहद भयानक और बलवान दीखता था परंतु वह और भी अधिक शक्तिशाली बनना चाहता था. वरदान को हासिल करने के लिए उसने ब्रह्मा जी की उपासना शुरू कर दी और उनकी ही तपस्या में लीन हो गया.

अपने भक्त को उपासना करते देखकर ब्रह्मा जी काफी प्रसन्न हुए और उसे आशीर्वाद प्रदान किया. ब्रह्मा ने अंधक को वरदान दिया कि कोई भी उसका वध नहीं कर पाएगा उसकी मृत्यु तभी संभव होगी जब वह खुद अपनी माता पर कुदृष्टि डालेगा.

कहां जाता है कि अंधक को अपने असली मां बाप के बारे में कुछ भी याद नहीं था इसलिए उसने अपने लिए ऐसा वरदान मांगा था. अंधक के अनुसार वह जानता था कि उसकी कोई माता नहीं है इसलिए उसका अंत कर पाना असंभव है.

ब्रह्मा जी से वरदान पागल अंधक और भी अधिक शक्तिशाली बन गया और तीनों लोगों पर विजय प्राप्त करने का उसने अपना लक्ष्य साध लिया. अब अंधक के पास सब कुछ था लेकिन वह एक सुंदर स्त्री से विवाह करने के सपने देखने लगा. जब अंधक को पता चला कि पूरे संसार में सबसे सुंदर लड़की पार्वती देवी ही है तो वह उनके पास विवाह का प्रस्ताव लेकर पहुंच गया. अंधक के इस प्रस्ताव से मां पार्वती क्रोधित हो उठी और उन्होंने इस के प्रस्ताव को ठुकरा दिया. इस बात पर अंधक आग बबूला हो गया और बलपूर्वक उन्हें उठाकर ले जाने का प्रयास करने लगा जिस पर पार्वती जी ने भगवान शंकर का ध्यान करना शुरू कर दिया. माता पार्वती के बुलाते ही महादेव वहां प्रकट हो गए और अंधक को उसकी को कुदृष्टता के लिए दंडित किया.

इस प्रकार अंधक अपनी माता पर बुरी दृष्टि डालकर मृत्यु को प्राप्त हो गया. अंधक का शिव और पार्वती की संतान होना वापन पुराण में उल्लेखनीय हैं. एक और मान्यता के अनुसार अंधक ऋषि कश्यप और दिति का पुत्र था.

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