कुंभ खत्म होते ही नागा साधु कहां हो जाते हैं गायब, कैसी है उनकी रहस्यमयी दुनिया ?

वह अर्धकुंभ, महाकुंभ में निर्वस्त्र रहकर हुंकार भरते हैं, शरीर पर भभूत लपेटते हैं, नाचते गाते हैं, डमरू ढपली बजाते हैं लेकिन कुंभ खत्म होते ही गायब हो जाते हैं। आखिर क्या है नागाओं (aghori baba) की रहस्यमयी दुनिया का सच? कहां से आते हैं और कहां गायब हो जाते हैं ये साधु, आइए जानते हैं।

कुम्भ में ज्यादा समय दिखाई देने बाले नागा साधुओ की दुनिया बड़ी ही विचित्र और रहस्मय से भरी होती है। देश में कंही भी कुम्भ या अर्ध कुम्भ का अयोजन होते ही, बह अचानक से प्रकट हो जाते है। और कुम्भ सम्पति होते होते फिर न जाने कहा गायब हो जाते है। इसके बाद नागा साधु अगले कुम्भ में ही दर्शन देते है। इस बीच बह कहा रहते है, सायद ही आपको मालूम हो। इसलिए आज हम नागा साधुओ के उस रहस्य से आपको रूबरू कराते है, जिसके बारे में सायद ही किसी को मालूम हो।

Naga Sadhu Life miracles
फोटो साभार – सोशल मीडिया

नागा साधुओ के बारे में कहा जाता है, कि बह दिन रात यानि की चौवीस घंटो में केवल एक बार ही भोजन करते है। गुरु परम्पराओ के अनुसार बह केवल भिक्षा मांग कर ही अपना पेट भरते है। इतना ही नहीं नागा साधु अपनी दिनचर्या में केवल सात घरो से ही भिक्षा मांगते है। इन घरो से जो भी प्राप्त होता है। उसी से अपना गुजारा करते है। अगर सात घरो से उन्हें पर्याप्त भिक्षा न मिले तो नागा साधु को भूखा ही रहना पड़ता है। बह आठवे घर कभी भी भिक्षा मांगने नहीं जाते है। भिक्षा में मिले किसी भी तरह के भोजन में बह पसंद न पसंद का सवाल नहीं उठाते बल्कि भगवन भोले की इच्छा समझ उसका भोग लगाते है।

नागा साधुओ को अपने सन्याशी जवान में बहुत ही कठिन नियमो का पालन करना होता है। सन्यासी जीवन के अनुसार बह गृहस्थ जीवन की तरह पलंग, चारपाई या किसी अन्य बिस्तर पर नहीं सो सकते है। बह सिर्फ जमीन पर ही सोते है, फिर चाहें कितनी भी शर्दी हो या फिर गर्मी। हर हालात में उनको सन्यासी जीवन का पालन करना ही होता है। इतना ही नहीं नागा साधू कभी भी अपनी पहचान को उजागर नहीं करते है। बह ज्यादातर अकेले पन में रहना पसंद करते है। सांसारिक और गृहस्थ जीवन से उनका किसी तरह का कोई मोह नहीं होता है।

Naga Sadhu Life miracles
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नागा साधुओ के बारे में सबसे दिलचस्प बात यह है, की बह अपने सम्पूर्ण जीवन में कभी भी एक जगह नहीं रहते है। कुछ वर्षो तक बह एक जगल या गुफा में रहने के पश्चात् दूसरी नयी जगह के लिए प्रस्थान कर जाते है। इसी कारण आज तक किसी नागा साधु के किसी भी प्रमुख स्थान का किसी को पता नहीं चलता है। आमतौर पर कुंभ में देखा जाता है कि नागा साधु निर्वस्त्र ही रहते हैं। हालांकि कुछ नागा साधु ऐसे भी हैं जो वस्त्र धारण करते हैं।

मान्यता के अनुसार कहा जाता है, कि नागा साधु अलौकिक शक्तियों के स्वामी होते है। और बह यह शक्तियां अपने कठोर तप और भक्ति से हासिल करते है। पुराणों के अनुसार नागा साधु भगवन शंकर के गण माने जाते है। इसी लिए बह अपने शरीर पर हर बक्त भभूत लपेटे हुए रहते हैं। भगवन शंकर के गण होने की बजह से बह ज्यादा समय जंगलो में रहकर जड़ी-बूटी और कंदमूल के सहारे ही अपना पूरा जीवन काट लेते हैं।

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फोटो साभार – सोशल मीडिया

मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है, कि प्रत्येक नागा साधु किसी न किसी अखाड़े से जुड़ा होता है। जब तक उनकी दीक्षा कार्यक्रम होता है, बह अखाड़े में पुनर्वास करते है, उसके पश्चात् बह अखाडा छोड़ जंगलो और पहाड़ो की तरफ तपस्या करने के लिए निकल पड़ते है। कहते है, कि कुम्भ के समय नागा साधुओ को निमंत्रण देने के लिए अखाड़ों की तरफ से कोतवाल की नियुक्ति की जाती है। जो कि सभी नागा साधुओ को कुम्भ में शामिल होने के लिए निमंत्रण देता है। जिसके बाद बह रहस्मयी तरिके से सही समय पर कुम्भ में शामिल हो जाते है।

Naga Sadhu Life Miricles
फोटो साभार – सोशल मीडिया

नागा साधु का जीवन एक कठोर तपस्या के समान होता है। नागा साधु बनने के लिए इंसान को अपना सांसरिक जीवन त्याग कर दीक्षा लेनी होती है। इसके लिए बह स्वयं का पिंडदान भी करते है। मान्यताओं के अनुसार ऐसा इसलिए किया जाता है, कि जिससे इंसान सांसारिक जीवन से मोह त्याग सिर्फ प्रभु की भक्ति में अपना ध्यान लगा सके। इसी लिए नागा साधु दीक्षा लेते समय अपने सर के बालो को मुंडवा कर स्वयं का पिंडदान करते है। इसके पश्चात उनका अपने परिवार और सांसारिक चीजों से मोह भंग हो जाता है। और बह केवल भगवन शंकर की उपसना करने पहाड़ो पर चले जाते है। आपको अंत में बता दे, नागा साधु पृथ्बी लोक पर भगवन शंकर के गण की भूमिका निभाते है। और हिन्दू धर्म की रक्षा के सदैव तैयार रहते है।

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