सीतापुर लोकसभा : रणभूमि’ की ‘जमीं’ तैयार, कौन काटेगा ‘सियासत’ की ‘फसल’


-6 बार कांग्रेस, 4 बार भाजपा तो 3 बार बसपा का रहा है वर्चस्व
-सीतापुर लोकसभा में आमने-सामने होंगे आठ प्रत्याशी

हरिओम अवस्थी
सीतापुर। लोकसभा सीतापुर की जमीं पर टक्कर जोरदार होने का पूरा अनुमान है। क्योंकि तीन धुरंधर आमने-सामने है। कहने को भले ही कोई एकतरफा चुनाव कहे लेकिन धीरे-धीरे कांग्रेेस और बसपा का भी चुनाव गति पकड़ने लगा है। जिससे मुकाबला दिलचस्प होने के आसार नजर आने लगे है। सीतापुर लोकसभा की उपजाऊ रणभूमि पर चुनाव की जीत की फसल कौन काटेगा यह तो आने वाला चार जून ही बताएगा लेकिन सभी धुरंधर चुनावी रणभूमि में उतर चुके है।

भाजपा, बसपा और कांग्रेस में ही होगी जोरदार टक्कर
आपको बताते चलें कि मैदान में केवल आठ प्रत्याशी ही आ रहे है। क्योंकि नौ प्रत्याशियों के नामांकन पत्र खारिज हो गए है। आठ में प्रमुख रूप से केवल तीन ही हैं जिनके बीच मुकाबला होगा। जिसमें भाजपा से राजेश वर्मा, बसपा से महेन्द्र यादव तथा कांग्रेस से राकेश राठौर है। गुरूवार को नामांकन प्रक्रिया समाप्त होने के बाद जब शुक्रवार को नामांकन पत्रों की जांच हुई तो उसमें केवल आठ प्रत्याशियों के ही नामांकन पत्र सही पाए गए। तीनों धुरंधरों के कार्यकर्ता जमीन पर उतर चुके हैं और वोट मांगने में जुटे हुए है। सभी अपनी-अपनी उपलब्घियां गिना रहे हैं और एक-दूसरे के ऊपर जमकर जुबानी प्रहार कर रहे है।

तीनों पार्टियांें का रह चुका है वर्चस्व
ऐसा नहीं कि आपने-सामने की टक्कर में कोई पार्टी एक-दूसरे से कमजोर हो। अगर कांग्रेस पार्टी की बात करें तो सीतापुर की लोकसभा में 1952 के चुनाव से ही ये सीट चर्चा का विषय बनी रही है। 1952 और 1957 के चुनाव में इस सीट पर कांग्रेस की ओर से उमा नेहरु ने चुनाव जीता था। उमा नेहरु रिश्ते में पंडित जवाहर लाल नेहरु की भाभी लगती थीं, उन्होंने जवाहर लाल नेहरु के चचेरे भाई श्यामलाल से शादी की थी। 1962, 1967 के चुनाव में यहां भारतीय जनसंघ ने जीत दर्ज की थी। हालांकि, 1971 में एक बार फिर कांग्रेस ने यहां वापसी की थी। 1977 में जब आपातकाल के बाद चुनाव हुए तो कांग्रेस को यहां मुंह की खानी पड़ी। 1977 में भारतीय लोकदल यहां से चुनाव जीता। फिर 1980, 1984 और 1989 में कांग्रेस ने यहां जीत का हैट्रिक लगाई। 1990 में जब देशभर में मंदिर आंदोलन ने रफ्तार पकड़ी तो भाजपा की भी किस्मत जागी। 1991 का चुनाव यहां से भारतीय जनता पार्टी ने अपने नाम किया। 1996 में समाजवादी पार्टी और 1998 में भाजपा ने यहां से चुनाव जीती। 1999 से लेकर 2009 तक बहुजन समाज पार्टी ने लगातार तीन बार चुनाव जीता। लेकिन 2014 का चुनाव मोदी लहर के दम पर भाजपा के खाते में ये सीट गई।

वर्तमान में भाजपा का है अभेद्य दुर्ग
वर्तमान समय में सीतापुर लोकसभा की पांच विधानसभाओं में से चार में भाजपा का भगवा लहरा रहा है। जिसमें सीतापुर, सेउता, महमूदाबाद तथा बिसवां में भाजपा की सरकार है तो लहरपुर विधानसभा में सपा का झंडा बुलंद है। वहीं राम मंदिर की लहर तथा राशन वितरण समेत कई योजनाओं को लेकर देखा जाए तो जनता के बीच भाजपा गहरी पैठ बनाने में कामयाब दिख रही है लेकिन ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।

यह प्रत्याशी उतरेंगे रणभूमि में
जिन उम्मीदवारांें के आठ नामांकन पत्र विधिमान्य किए गए हैं उनमें भाजपा के राजेश वर्मा, बसपा से महेन्द्र सिंह यादव, कांग्रेस से राकेश राठौर, अपना दल से कासिफ अंसारी, राष्ट्रीय सोशित समाज से चंद्र शेखर वर्मा, सरदार पटेल सिद्धांत पाटी से राम आधार वर्मा, आजाद समाज पार्टी से लेखराज लोधी तथा निर्दलीय से विद्यावती का नामांकन पत्र मंजूर हुआ है। अन्य के नामांकन पत्र खारिज कर दिए गए है। आपको बताते चलें कि कल समाप्त हुए नामांकन प्रक्रिया के अंतिम दिन तक सात दिनों में 17 लोगों ने 28 सेटांें में नामांकन पत्र जमा किए है।

खबरें और भी हैं...

अपना शहर चुनें