
….कही जरवल के इतिहास के पन्ने को दीमक तो नही चट कर गया हुजूर ?
चित्र परिचय-001- 14वी शताब्दी का अव्यवस्थाओ के बीच समाप्त हो रहा रानी तालाब व सती चौरा का अस्तित्व
क़ुतुब अन्सारी/अशोक सोनी
जरवल/बहराइच।
प्राचीन धरोहर को अपने आँचल मे सँजोये चौदहवीं शताब्दी के जरवल का ऐतिहासिक रानीताल आदि के इतिहास के पन्नो को शायद अब दीमक ने चट कर रखा है तभी तो प्रशासनिक तंत्र भी इसे भुला बैठा है उपेक्षा का दंश झेल रहे यहाँ के गुम हो रहे ऐतिहासिक धरोहरों के सौंदरीकरण के लिए अब प्रदेश की भाजपा सरकार के मुखिया योगी जी से लोगो को एक उम्मीद ही बाकी है कि वह जरूर गुम हो रही ऐतिहासिक धरोहरों पर अपनी नजरे इनायत करगे लेकिन यह तब संभव होगा जब यहाँ का निकाय प्रशासन उन तक कोई बात पहुचायेगा तब न ? बताते चले बीते चार-पाँच दशकों से लगातार इसे पर्यटन केन्द्र घोषित किए जाने की मांग की जा रही हैं।
यहाँ की जनता करती आ रही है अनेको बार विभिन्न समाचारो मे भी यहाँ के इतिहास पर खबरे प्रमुखता से प्रकाशित होती रही लेकिन न तो कोई जनप्रतिनिधि ने न ही शासन प्रशासन ने कोई तवज्जो दिया नतीजा ये निकला कि किसी भी ऐतिहासिक धरोहरों का कायाकल्प तक न हो सका।अब एक नजर यहाँ के इतिहास को जब दोहराते है तो रानीताल के साथ ही देवी मंदिर व सती चौरा भी उपेक्षा का शिकार हैं।चारो ओर से गन्दगी के कारण उधर से निकलना दूभर हैं।पेयजल सहित वहाँ की सफ़ाई पर भी ग्रहण लग चुका है। एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैला यह रानी तालाब धीरे धीरे पटता जा रहा है अधिकांश लोगों ने धीरे-धीरे अवैध रूप से कब्जा भी कर रखा है।बताते चले नगर पंचायत के पूर्व में स्थित इस रानी तालाब को चौदहवी शताब्दी के पूर्वाद्ध में भर्र राजा छत्रसाल की पत्नी ने खोदवाया था साथ ही पूजा अर्चना के लिए पूर्व दिशा में देवी मंदिर की भी स्थापना कराई थी।नाग पंचमी पर्व पर यहाँ एक बड़ा यज्ञ होता था जो एक मेले के रूप में रूप धारण करता था । दूर दराज से भर्र सम्प्रदाय के लोग इसमे सम्मिलित होते थे ।
देवी मंदिर तथा सती चौरा का जीणो उद्धार नगर के छेदी लाल निषाद द्वारा वर्ष 1993 में कराया । इसका उद्घाटन 12 दिसम्बर 1993 को तत्कालीन सांसद लक्ष्मी नारायण मणि त्रिपाठी ने किया था।रानी ताल के उत्तर में ईटो का एक टीला था जो सती चौरा के नाम जाना जाता था । कहां जाता हैं कि 1304 ईसवीं में ईरान देश के सय्यद अब तालिब के वंशज सय्यद जिक्रिया एव भर्र राजा छत्रसाल के मध्य हुए युद्ध में उनके पुत्र त्रिलोकीनाथ वीरगति को प्राप्त हुए थे । त्रिलोकीनाथ की पत्नी अपने पति के शव के साथ चिता में भस्म हो गई थी ।
बाद में यही स्थान सती चौरा के नाम से प्रसिद्ध हुआ था । महिलाएं नाग पंचमी,विवाह के अतिरिक्त मुंडन तथा विभिन्न पर्वो पर यहाँ पूजा अर्चना करती थी पर वहाँ पर शोहदों की शरारत के कारण कोई वहाँ पूज अर्चना तक करने नही जाता।बताते चले जरवल-धनसरी मार्ग के उत्तर छत्रसाल के पुत्र त्रिलोकीनाथ का खोदवाया हुआ त्रिलोकी ताल भी मौजूद है । कहा जाता हैं कि भर्रो के यहाँ कन्या का विवाह होता था तो इसी ताल की मिट्टी से चौका दिया जाता था । महिलाएं आज भी इसी ताल पर पूजा अर्चना करती हैं । कटी नाले के उत्तर विरीडीह स्थिति है जहाँ छत्रसाल का प्रधान सेनापति वीर सिंह रहता था।बताते हैं कि दिसम्बर 1978 में तत्कालीन प्रदेश सरकार मंत्री बाबूलाल वर्मा ने केंद्रीय पर्यटन मंत्री से मिलकर ऐतिहासिक रानीताल को पर्यटन केंद्र बनाने की माँग भी की थी। सन 1984 में नगर पंचायत सचिव ने रानीताल , देवी मंदिर , सती चौरा , आदि ऐतिहासिक स्थलों के पुनरूद्धार एव सुंदरी करण के लिए चार लाख रुपए का बजट बनाकर शासन को भेजा था।तत्कालीन जिलाधिकारी पंकज कुमार ने दो बार यहाँ आकर पत्रकरो के साथ रानीताल का स्थालीय निरीक्षण कर पर्यट्न केंद्र बनाने की संस्तुति की थी । उनके स्थानांतरित के बाद योजना खटाई पड़ गईं।वर्तमान में रानीताल सती चोरा से देवी मंदिर तथा रानीताल जाने वाला मार्ग पूरी तरह से अतिक्रमण का शिकार हैं ।
उक्त मार्ग को 1993 में तहसीलदार कैसरगंज द्वारा कानूनगो एव लेखपाल के साथ नपाई कराकर आवागमन के लिए खोल दिया गया था । बाद मे दबंग लोगो द्वारा उस पर कब्जा कर लिया गया । अब सती चौरा के चारो ओर झाड़ियो के मध्य घिरा है । देवी मंदिर का फाटक चोर तोड़कर उठा ले गये । पूरे मन्दिर के प्रांगण में घास सहित जबरदस्त गन्दगी हैं । छत्रसाल स्मारक समिति ने केंद्रीय मंत्री एव प्रदेशीय पर्यट्न मंत्री को पत्र भेज कर जांच के पश्चात ऐतिहासिक स्थलों का उद्धार कराकर उसे पर्यट्न केंद्र घोषित किये जाने माँग एक बार फिर से की है अब देखना है कि प्रदेश के मुखिया जरवल के एतिहासिक धरोहरों पर अपनी नजरे इनायत कब करते है फिलहाल एक यक्ष प्रश्न से कम कतई नही है।










