
रालोद राष्ट्रीय कार्यकारिणी की ऑनलाइन बैठक में जयंत चौधरी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद चुन लिए गए हैं। अध्यक्ष चुने जाने के बाद उन्होंने 26 मई को किसानों के समर्थन में धरना देने का फैसला किया है। उन्होंने बड़ी संख्या में किसानों से इसमें शामिल होने की अपील की। ऑनलाइन बैठक में कार्यकारिणी के 37 पदाधिकारी शामिल हुए। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पार्टी को मजबूत करना ही जयंत की असली परीक्षा होगी।
दादा, पिता के बाद अब तीसरी पीढ़ी की बारी
पार्टी कार्यकर्ताओं के मुताबिक, पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह और छोटे चौधरी यानी अजित सिंह मंझे नेता थे। उन्होंने हमेशा किसान हितों को शीर्ष पर रखा। रालोद चाहे सत्ता में रही या नहीं रही, लेकिन अजित सिंह ने कभी किसानों का हाथ नहीं छोड़ा। पश्चिमी उप्र में किसानों के हक के लिए चौधरी साहब हमेशा खड़े रहे। क्षेत्र से लेकर संसद के सियासी गलियारों में अजित सिंह किसान पक्षधर नेता रहे। अब जयंत चौधरी की बारी है कि वो किसानों की उम्मीदों पर कितने खरे उतरेंगे।

जिला पंचायत चुनाव की जीत से मिली संजीवनी
हाल में उत्तर प्रदेश में हुए जिला पंचायत चुनाव में खोई रालोद को जीत की नई संजीवनी मिली है। पार्टी ने मेरठ सहित कई जिलों में अच्छा प्रदर्शन किया है। समर्थकों के अनुसार जयंत 15 साल से राजनीति में हैं। किसानों के मुद्दों की समझ रखते हैं। इसलिए सब उनके साथ हैं। इसका असर विधानसभा चुनाव में जीत के रूप में नजर आएगा।
पुराने समीकरण साधकर खड़ी करनी होगी पार्टी
- पंचायत चुनाव में फिर खड़ी हुई रालोद को हार का सामना भी करना पड़ा। पूर्व पार्टी सुप्रीमो रहे अजित सिंह पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के आगे टिक न सके और मुजफ्फरनगर से 2019 का चुनाव हार गए थे। अपने ही क्षेत्र में हुई हार से पार्टी की साख पर बट्टा लग गया। फिलहाल, पार्टी के पास न विधायक हैं और न ही सांसद।
- 2017 के चुनाव में रालोद का एक विधायक छपरौली सीट से चुना गया, जो बाद में बीजेपी में चला गया। पार्टी जिस जाट-मुस्लिम समीकरण को लेकर अभी तक आगे बढ़ती थी, 2013 के मुजपफरनगर दंगों के बाद पार्टी का वो समीकरण भी बिखर गया। अब जयंत की परीक्षा होगी कि वो पुराने समीकरणों को साधकर कैसे नए सिरे से पार्टी को खड़ा करते हैं।
चौधरी चरण सिंह ने रखी थी नींव
- पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने किसान हितों के लिए 1974 में कांग्रेस मंत्रिमंडल से इस्तीफा देकर भारतीय क्रांति दल (बीकेडी) बनाया था। बाद में बीकेडी का नाम लोकदल हो गया। 1977 में बीकेडी का जनता पार्टी में विलय हो गया। 1980 में जनता पार्टी टूटी तो चौधरी चरण सिंह ने जनता पार्टी (एस) का गठन किया।
- 1980 के लोकसभा चुनाव में इसका नाम बदलकर दलित मजदूर किसान पार्टी कर दिया। 1986 में चौधरी चरण सिंह का स्वास्थ्य खराब हुआ तो अजित सिंह विदेश से भारत आ गए। पिता की विरासत संभालते हुए, उन्हें किसान ट्रस्ट का अध्यक्ष चुना गया।
- जब अजित सिंह के पार्टी अध्यक्ष बनने की बात चली तो पार्टी में विरोध शुरू हुआ। बाद में अजित सिंह ने लोकदल (अ) का गठन किया। 1988 में जब जनता दल बना तो अजित सिंह उसके साथ हो लिए।













