अमर भारती साहित्य संस्कृति संस्थान ने मनाया गीतकार डॉ धनंजय सिंह का अमृत महोत्सव

संवाददाता

गाजियाबाद। देश के प्रतिष्ठित गीतकार डॉ. धनंजय सिंह का अमृत महोत्सव मनाया गया। इसी महीने की 29 तारीख को 77 वीं शीत ऋतु उनका स्वागत करेगी। इस अवसर पर उनके चाहने वालों ने उनके दीर्घायु, स्वस्थ, रचनारत और यशस्वी होने की कामना की।

कार्यक्रम की शुरुआत मां सरस्वती के सम्मुख दीप प्रज्वलित कर की गई। मंच पर उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों प्रो. जे.एल रैना, प्रो. दिविक रमेश, प्रो. सुनील कुमार पांडे, रमेश कुमार भदौरिया और प्रवीण कुमार ने दीप प्रज्वलित किया। इस अवसर पर प्रतिष्ठित गीतकार नेहा वैद्य ने मां सरस्वती पर लिखा एक गीत प्रस्तुत किया। कर रही हूं वंदना नित नित मैं तेरी शारदे….. जितना सुंदर गीत था नेहा वैद्य की आवाज भी उतनी ही सुरीली थी। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. जे. एल रैना ने की। प्रो. दिविक रमेश मुख्य अतिथि थे और प्रो. सुनील कुमार पांडे विशिष्ट अतिथि। कार्यक्रम का संचालन कवि और एडवोकेट प्रवीण कुमार ने किया।

अपने देश में मंचासीन लोगों के सम्मान की परंपरा है। इस कार्यक्रम में भी उस परंपररा का निर्वाह किया गया। मशहूर गजलकार सुरेंद्र सिंघल ने प्रो. दिविक रमेश को माला पहना कर उनका स्वागत किया। गोविंद गुलशन ने सुनील कुमार पांडे, रमेश भदौरिया ने प्रो. रैना का माला पहना कर स्वागत किया। कार्यक्रम के विशेष आकर्षण डॉ. धनंजय सिंह को तो उनके चहेतों ने शाल पहनाकर फूल-मालाओं से लाद दिया। उनका स्वागत करने वालों में परिंदे पत्रिका के संपादक ठाकुर प्रसाद चौबे, राजमणि श्रीवास्तव, ममता सिंह राठौर, नेहा वैद्य, पराग कौशिक, कमलेश त्रिवेदी फरूखाबादी, रमेश भदौरिया, सुनील पांडे, दिविक रमेश, प्रो. रैना प्रमुख रहे। डॉ. धनंजय सिंह को बधाई देने वालों में राज चैतन्य, ऊषा जी, डॉ. प्रीति कौशिक, कुलदीप जी भी शामिल रहे।

इस अवसर पर डॉ धनंजय सिंह पर प्रकाशित एक अभिनंदन ग्रंथ का विमोचन भी किया गया। इस अभिनंदन ग्रंथ को ‘काव्य रथ के सव्यसाची’ शीर्षक से प्रकाशित किया गया है। इसका संपादन प्रो. हरिमोहन और प्रवीण कुमार ने किया है। अभिनंदन ग्रंथ में देश के प्रतिष्ठित 44 लोगों ने अपनी यादें साझा की हैं। डॉ. धनंजय सिंह के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला है। इनमें अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान से व्यंग्य विधा में ढाई लाख का पुरस्कार प्राप्त करने वाले देश के मशहूर व्यंग्यकार सुभाष चंदर भी शामिल हैं। अभिनंदन ग्रंथ के आखिर में हरिवंश राय बच्चन का डॉ. धनंजय सिंह के नाम लिखा एक पत्र भी प्रकाशित किया गया है। सबसे आखिर में डॉ धनंजय सिंह की देश के प्रमुख साहित्यकारों के साथ तस्वीरें भी प्रकाशित की गई हैं। वे तस्वीरें समय-समय पर विभिन्न कार्यक्रमों में ली गई हैं।

ड़ॉ. धनंजय सिंह ने देश की प्रतिष्ठित पत्रिका कादम्बिनी में 28 वर्षों तक नौकरी की। इनकी दो पुस्तकें प्रकाशित हैं। पलाश दहके हैं और दिन क्यों बीत गए….इनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालने वाले वक्ताओं ने इस ओर भी लोगों का ध्यान खींचा। कहा कई लोग होते हैं जो बहुत ज्यादा लिखते हैं। ऐसे में धनंजय सिंह की रचनाएं उस अनुपात में जरूर कम हैं। लेकिन रचनाकार को उसकी रचनाओं की संख्या के आधार पर नहीं आंका जाना चाहिए। बल्कि उनकी गुणवत्ता के आधार पर आंका जाना चाहिए। डॉ. धनन्जय सिंह की रचनाएं भले ही ज्यादा न हों, लेकिन वे उच्च स्तरीय हैं। वक्ताओं ने ये भी कहा कि डॉ. धनंजय सिंह खुद तो बड़े गीतकार थे ही लेकिन इनका उससे भी बड़ा योगदान गीतकारों और साहित्यकारों की नई पौध तैयार करने को लेकर रहा। इन्होंने नए लेखकों की भरपूर मदद की और उनके लेखन को संवारा। आज देश के हर कोने में ऐसे साहित्यकार मिल जाएंगे जिन्हें डॉ. धनंजय सिंह ने निखारा है। वे लेखक खुद इस बात को मानते हैं। इस अवसर पर कई वक्ताओं ने धनंजय सिंह की कविताओं का जिक्र किया और पाठ भी किया। खुद धनंजय सिंह ने भी अपनी दो रचनाएं सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। आज पहली बार मैंने मौन की चादर बुनी है और गीत जीने का मन ही न हो, गीत गाने से क्या फायदा…. यह कार्यक्रम अमर भारती साहित्य संस्कृति संस्थान की ओर से आयोजित किया गया था। आखिर में संस्था के अध्यक्ष रमेश कुमार भदौरिया ने श्रोताओं को इस कार्यक्रम में शामिल होने औरसफल बनाने के लिए धन्यवाद दिया और आभार जताया

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