कोरोना: घंटाघर पर प्रदर्शनकारी महिलाओं ने धरना किया स्थगित, दुपट्टे छोड़ कर वापस लौटीं

लखनऊ । नागरिकता कानून व एनआरसी के विरोध में लखनऊ के घंटाघर में पिछले दो महीनों से चल रहे प्रदर्शन को आखिरकार स्थगित कर दिया गया है।

प्रदर्शनकारी महिलाओं ने रविवार देर रात तीन बजे पुलिस आयुक्त को लिखित सूचना देकर अवगत कराया कि वे कोरोना वायरस के कारण बीते 66 दिनों से चल रहे इस सांकेतिक धरने (विरोध प्रदर्शन) को फिलहाल स्थगित कर रही हैं।

उन्होंने कहा कि ये धरना वह अस्थायी तौर पर स्थगित कर रही हैं। जब भी कोरोना वायरस के संबंध में सरकार द्वारा दिए गए लॉकडाउन के आदेश की अवधि समाप्त हो जाएगी, सभी महिलाएं फिर से उसी जगह पर प्रदर्शन पर फिर बैठ जाएंगी।

हालांकि धरना स्थल खाली करने के बाद भी महिलाओं ने सांकेतिक प्रदर्शन के लिए वहां अपने दुपट्टे छोड़ दिए हैं। उन्होंने पुलिस आयुक्त को इसकी लिखित जानकारी भी दी है और कहा है कि प्रशासन से निवेदन है कि उनके सांकेतिक धरने को यथास्थिति बनाए रखने में सहयोग प्रदान करें। खुद को संघर्षशील महिलाएं बताने वाली इन प्रदर्शनकारियों के धरने को स्थगित करने के फैसले के बाद पुलिस की निगरानी में सभी को घर पहुंचाया गया।

इससे पहले कोरोना वायरस से बचाव व सुरक्षा के मद्देनजर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जनता कर्फ्यू के आह्वान के बावजूद ये महिलाएं घंटाघर पर प्रदर्शन खत्म करने को तैयार नहीं हो रही थीं। इसको लेकर शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे सादिक ने भी इन महिलाओं से अपील की कि हालात को देखते हुए प्रदर्शन को स्थगित कर दें। हालात गंभीर हैं। जैसे ही कोरोना वायरस का दौर थम जाए वह फिर से धरना शुरू कर सकती हैं लेकिन इस मुश्किल वक्त में उन्हें एहतियात बरतना चाहिए।

इसके अलावा कोरोना वायरस फैलने के बाद प्रदर्शन में शामिल रहीं सदफ जाफर ने भी कहा कि पूरे देश में जरूरी चीजों को छोड़ कर पूरे देश बंद है तो घंटाघर पर बैठी महिलाओं को अभी अपनी समाजिक जिम्मेदारी को निभाना चाहिए। प्रदर्शन में महिलाएं एक दूसरे के पास पास बैठी हैं। इससे संक्रमण का अधिक खतरा है। इंसानियत के खातिर कुछ दिनों के लिए धरना स्थगित कर देना चाहिए। हालात सामान्य होने पर फिर से धरना दे सकते हैं।

शायर मुनव्वर राणा की पुत्री सुमैया राना ने कहा कि इस्लाम ने हमेशा इंसानियत को बचाने का संदेश दिया है। ऐसे में घंटाघर पर महिलाओं को अपना प्रदर्शन समाप्त कर देना चाहिए या फिर सांकेतिक रूप से एक या दो महिलाएं ही वहां पर बैठे। आखिरकार महिलाओं के धरना स्थगित करने के फैसले से कई लोगों पर मंडरा रहा कोरोना का खतरा कुछ कम हुआ है। सार्वजनिक स्थल पर इस तरह समूह में बाहर बैठना न सिर्फ उनकी बल्कि अन्य लोगों की जान भी मुश्किल में डाल सकता था।

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