
ब्यूरो वाराणसी। अपशिष्ट पदार्थ को उसके श्रोत पर ही निस्तारित करने में वेस्ट टू गैस प्लांट बहुत अत्यंत उपयोगी है। यह पर्यावरण संरक्षण में भी अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सोमवार को काशी हिंदू विश्वविद्यालय के दुग्ध विज्ञान एंव खाद्य प्रौद्योगिकी विभाग, कृषि विज्ञान संस्थान में मेसर्स काशी सेवा सदन समिति द्वारा संचालित अजोला अमृत बायो गैस एवं गोबर गैस दोनों प्लांट का शुभारम्भ मुख्य अतिथि डा. रमेश चन्द, निदेशक, कृषि विज्ञान संस्थान के कर कमलों द्वारा किया गया। इस प्लांट के द्वारा अपशिष्ट पदार्थों यगीला कचड़ा, बचा भोजन, माला-फूल एवं गोबर आदिद्ध को जैविक ईंधन एवं खाद में बदला जा सकता है। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में संकाय प्रमुख डा. ए.पी. सिंह मौजूद थे एवं संस्थान के सभी प्राध्यापकगण, अधिकारीगण एवं कर्मचारीगण उपस्थिति थे। विभागाध्यक्ष, डा. दिनेश चन्द्र राय ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। प्रोफेसर रमेश चन्द ने संस्था को धन्यवाद देते हुए कहा कि ऐसे मिनी प्लांट जो संचालन में अति आसान है, होटल, रेस्टूरेन्ट और छात्रावासों के लिए अत्यन्त उपयोगी है।
जहां भोजनालय के बचे हुए भोजन से बाॅयो गैस बनाकर और अपशिष्ट से खाद बनाकर उसका समुचित निस्तारण किया जा सकता है। संकाय प्रमुख डा. ए.पी. सिंह ने बताया कि इस प्लांट की स्थापना से सभी लोग जागरूक एवं प्रेरित होगें। काशी सेवा सदन समिति के अध्यक्ष के. एन. शर्मा ने बताया कि स्वच्छ भारत मिशन के तहत अजोला अमृत बाॅयो गैस एवं गोबर गैस प्लांट कन्याकुमारी स्थित विवेकानन्द केन्द्र के काशी सेवा सदन समिति ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के दुग्ध विज्ञान एवं खाद्य प्रौद्योगिकी विभाग, कृषि विज्ञान संस्थान में विभागाध्यक्ष के विनम्र आग्रह पर यह दोनों प्लांट निःशुल्क स्थापित किया है। उन्होंने बताया कि बायो गैस प्लांट के लिए प्रतिदिन 5 किलो ग्राम अपशिष्ट पदार्थ की जरूरत पड़ेगी। जिसके अपघटन के पश्चात 500 ग्राम गैस का उत्सर्जन होगा, उसी अनुपात में जैविक खाद भी प्राप्त होगी। साथ ही दूसरे गोबर गैस प्लांट के लिए भी 20 किलो ग्राम गोबर की प्रतिदिन जरूरत पड़ेगी। जिसके अपघटन के पश्चात 430 ग्राम तक गैस का उत्सर्जन होगा, उसी अनुपात में जैविक खाद भी प्राप्त होगी। उन्होंने बताया कि यह प्लांट चार से पांच व्यक्तियों का भोजन बनाने के लिए पर्याप्त है। भविष्य में अपशिष्ट पदार्थ की मात्रा के अनुसार और भी बड़ा प्लांट लगाया जा सकता है। उन्होंने यह भी अवगत कराया कि प्लांट से निकली जैविक खाद का उपयोग खेती के लिए उपयोग किया जा रहा है।
चन्दौली, मिर्जापुर, गोरखपुर, सोनभद्र, भदोही एवं वाराणसी के गाॅवों में इस खाद का प्रयोग हो रहा है। साथ ही साथ संस्था ने यह भी बताया कि प्लांट द्वारा निकली हुई जैविक खाद को उचित मूल्य पर संस्था स्वंय खरीद भी लेती है। काशी सेवा सदन समिति के अधिकारी श्री संयोगजी ने बताया कि रसोईघर से निकलने वाले गीले कचड़े से बने बाॅयो गैस से भोजन भी पका सकते है। एल.पी.जी. या सी.एन.जी. की तरह पुराने चूल्हे में बिना कोई बदलाव किये इस बाॅयो गैस भोजन पकाया जा सकता है। शहर में रोजाना करीब 617 मीट्रिक टन कूडा निकलता है, इसमें 50 प्रतिशत से ज्यादा गीला कचड़ा होता है। संस्था की कोशिश है कि गीले कचड़े की मात्रा कम हो। वेस्ट टू गैस प्लांट से अपार्टमेंट, होटल, रेस्टूरेन्ट एवं कालोनियों मेें करीब 350 मीट्रिक टन गीला कचड़े का निस्तारण उसके श्रोत पर सम्भव है।
प्लांट मेें गोबर एवं पानी मिलाकर चार से पांच दिनों में गैस बनायी जाती है। इसे चलाने के लिए बिजली की आवश्यकता नहीं पड़ती है। रोज क्षमता के अनुसार इसमें गीला कचड़ा डालना पड़ता है। गैस पहुंचाने के लिए एक पाइप रसोईघर में लगायी जाती है। लगभग 5 किलो ग्राम क्षमता के प्लांट से 430 ग्राम गैस रोज मिलती है। साथ ही हर माह 90 किलो ग्राम तक जैविक खाद प्राप्त होती है। काशी सेवा सदन समिति के द्वारा अजोला हरा चारा जो पशु, भेड़-बकरियों, मुरगियों एवं मछलियों के लिए अत्यन्त लाभदायक है। यह अजोला हरित चारा विभिन्न प्रकार की बिमारियों से बचाता है तथा पशु एवं भेड़-बकरियों इत्यादि को स्वस्थ रखता है। अजोला हरित चारा एक प्राकृतिक वरदान के रूप में है।










