औरैया : शासन व प्रशासन की अनदेखी से बराहार में अभिशाप बनी पांडव नदी

बिधूना औरैया। बिधूना तहसील क्षेत्र में पांडव नदी की सायफन की सफाई की लगातार मांग किए जाने के बावजूद शासन और प्रशासन की अनदेखी से समस्या का निराकरण न किए जाने से यह पांडव नदी क्षेत्रीय किसानों के लिए अभिशाप बनी हुई है।
कंसुआ राजवाहे पर बनी पांडव नदी की साइफन सफाई के अभाव में अवरुद्ध होने से खासकर बरसात के मौसम में क्षेत्र के कई गांवों में जलप्लावन की समस्या उत्पन्न हो जाती है जिससे प्रतिवर्ष सैकड़ों एकड़ भूमि की फसलें जलप्लावित होकर नष्ट हो जाती हैं और इस समस्या का दंश झेल रहे अधिकांश किसान रोजी रोटी के लिए गांवों से शहरों के लिए पलायन भी कर चुके हैं।

बिधूना तहसील क्षेत्र के ग्राम बराहार के समीप ब्रिटिश हुकूमत में कंसुआ रजवाहे पर पांडव नदी की साइफन बनाई गई थी ताकि नदी का पानी आसानी से निकल सके लेकिन जब कंसुआ रजवाहे का पक्का निर्माण कराया गया तो पटरी के दोनों तरफ मिट्टी जमा कर दी गई और यह तमाम मिट्टी सायफन के अंदर भर गई वहीं साइफन के अंदर हाथी घास भी बुरी तरह उग आई जिससे पांडव नदी की सायफन पूरी तरह अवरुद्ध हो गई ऐसे में मामूली सी बारिश में जल निकास के अभाव में क्षेत्र में जलप्लावन की समस्या उत्पन्न हो जाती है वही बरसात के मौसम में पुर्वा अजीत नूरपुर पुर्वाधनी पुर्वा विधी रायपुर कैथावा रुपपुर नंदपुर पुर्वा हिंदू बराहार आदि आसपास के कई गांवों के किसानों की प्रतिवर्ष सैकड़ों एकड़ भूमि की फसलें जल प्लावन से बर्बाद हो जाती है।

समस्या से परेशान किसानों द्वारा लगातार समस्या के निराकरण की मांग उठाई जाती रही है वही प्रत्येक चुनाव के समय सभी राजनीतिक दलों द्वारा किसानों को उक्त समस्या के निराकरण के भी पक्के आश्वासन मिलते रहे हैं लेकिन आज तक उक्त समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है। हालत यह है कि उपरोक्त अधिकांश गांवों के किसान जलप्लावन से बर्बाद हुई खेती के कारण रोजी रोटी के लिए गांवों से शहरों के लिए पलायन भी करने को मजबूर हो चुके हैं।

अर्जुनसिंह सेंगर गंगा सिंह नरेंद्र सिंह उमेश सिंह विकल सेंगर आदि किसानों का कहना है कि कंसुआ रजवाहे पर पांडव नदी की बनी सायफन क्षेत्रीय किसानों के लिए अभिशाप बन चुकी है और इसके बावजूद शासन व प्रशासन लगातार इसकी अनदेखी कर रहा है जिससे क्षेत्रीय लोगों में भारी आक्रोश है और यही हालत रही तो इसका खामियाजा आगामी चुनावों में निश्चित रूप से सत्ताधारी पार्टी को भुगतना पड़ सकता है।

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