बस्ती: रामरेखा में पहुंचा परिक्रमा में शामिल श्रद्धालुओ का जत्था 

बस्ती। 84 कोसी परिक्रमा के प्रथम पड़ाव स्थल रामरेखा पर बुधवार को सुबह आठ बजे से परिक्रमा में भाग लिए श्रद्धालु व साधू – संतों का जत्था पहुंचना शुरू हो गया। यह सिलसिला शाम तक चलता रहा। परिक्रमार्थी यहां रात्रि विश्राम करने के बाद बृहस्पतिवार को सुबह दूसरे पड़ाव स्थल हनुमान बाग चकोही के लिए प्रथान करें गें।

परिक्रमा शुभ मुहुर्त भोर में चार बजे जिले के मख भूमि मखौड़ा से  पौराणिक मान्यताओं को अपने आंचल में समेटने वाली पावन नदी  मनोरमा में स्नान के बाद से प्रारंभ हुई। धर्मार्थ सेवा संस्थान अयोध्या के अध्यक्ष महंत गया दास के नेतृत्व शुरू हुई यह परिक्रमा  बस्ती, अंबेडकरनगर, अयोध्या, बाराबंकी, गोंडा आदि जिलों से होकर 14 मई को पुनः मखौड़ा में वापस पहुंचेगी जहां हवन पूजन और भंडारे के बाद संपन्न होगी। इस यात्रा में विहार, राजस्थान, एमपी, झारखंड आदि प्रांतों से श्रद्धालु सम्मलित हुए हैं। महंत गया दास ने बताया कि इस बार परिक्रमा में शाम तक लगभग एक हजार परिक्रमार्थियों के सम्लित होंने की संभावना है जो पिछले वर्ष की अपेक्षा कुछ अधिक है।

परिक्रमा में जो लोग पहुंच गए हैं उनका परिचय पत्र जारी किया जा रहा है। बहुत लोग अभी रास्ते में हैं। रामरेखा मंदिर के पुजारी. बाबा दयाशंकर दास ने बताया कि मंदिर पर परिक्रमार्थियों के रहने, खाने, पीने व प्रकाश आदि सारी व्यवस्था पूरी कर ली गई है। इसमें छावनी, अमोढ़ा कस्बे के व्यवसाईयों तथा क्षेत्र के लोग भी पूरा सहयोग कर रहे हैं। मंदिर परिसर में समाजसेवी अंगद मिश्र, गोपाल सोनी, एमपी सिंह, रितेश सिंह, दिवाकर सिंह, गिरिजेश आदि  साधू – संतों की सेवा में लगे रहे। पीएचसी छावनी के प्रभारी डॉ. आशिफ फारूखी टीम के साथ स्वास्थ्य शिविर में श्रद्धालुओं के स्वास्थ्य संबंधी देखरेख में लगे थे।

सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए थानाध्यक्ष छावनी राजेश कुमार तिवारी अपने सहयोगियों के साथ मुस्तैद रहे। वेद,ग्रंथ के अनुसार मखौड़ा में पुत्र प्राप्ति के लिए अयोध्या के चक्रवर्ती सम्राट माहाराजा दशरथ ने श्रृंगी ऋषि के नेतृत्व में यज्ञ करवा था। यज्ञ के दौरान अग्नि देवता स्वयं प्रगट होकर राजा को खीर दिए थे जिसे खाकर तीनों रानियां राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न जैसे बालकों को जन्म दिया था। तभी से इस स्थान का महत्व बढ़ गया और हर वर्ष इस स्थान से 84 कोसी परिक्रमा प्रारंभ होकर पूरे अवध भ्रमण के बाद वापस मखौड़ा में हवन पूजन और भंडारे के साथ संपन्न होती हो। ऐसी मान्यता है कि इस परिक्रमा को करने से मनुष्यों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।और उन्हें चौरासी लाख योनियों में भटकना नहीं पड़ता है।

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