रामजन्मभूमि पर बोले CM योगी -24 घंटे के अंदर होगा इस विवाद का समाधान…

रामजन्मभूमि: योगी के बयान पर अयोध्या में आलोचना और समर्थन का दौर शुरु

अयोध्या । मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के राम जन्मभूमि विवाद के बयान के बाद एक बार फिर अयोध्या में बली मचा दिया है।
उल्लेखनीय है कि उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विगत दिनों एक समाचार चैनल पर रामजन्मभूमि विवाद को लेकर बयान दिया था। कहा था कि सुप्रीम कोर्ट जल्द सुनवाई करे, अगर न्यायालय अपना फैसला नहीं सुना रही है तो हमें सौंप दें और हम 24 घंटे के अंदर इस विवाद का समाधान कर देंगे। इस बयान के बाद अयोध्या के संत, धर्माचार्य, पक्षकारों द्वारा आलोचना और समर्थन का दौर शुरू हो गया है।
मीडिया  से रविवार को रामजन्मभूमि न्यास के वरिष्ठ सदस्य महंत कमलनयन दास ने योगी जी के बयान का स्वागत करते हुए कहा कि रामजन्मभूमि आन्दोलन जब आरम्भ हुआ। तब से योगी जी के गुरु महंत अवेद्यनाथ जी रामजन्मभूमि संघर्ष समिति के अध्यक्ष बनाये गए। बराबर रामलला और राष्ट्र के लिये संघर्ष करते रहे।
कहा कि हम जानते है हिन्दुओं के अंदर जितनी पीड़ा जन्मभूमि के लिये है, उससे भी अधिक पीड़ा योगी जी को है। योगी हमेशा से चाहते हैं कि रामजन्मभूमि पर जल्द से जल्द भव्य राममंदिर का निर्माण हो। इस मुद्दे पर सभी संत और पूरा राष्ट्र योगी जी के साथ खड़ा है।
कहाकि सुप्रीम कोर्ट लगातार हिन्दुओं का जो अपमान कर रही है, इससे जल्द से जल्द हिन्दू समाज आंदोलित होगा। और पूरे राष्ट्र में क्रांति मच जाएगी। इसलिये सुप्रीम कोर्ट जल्द इसका निर्णय ले।
रामलला के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येन्द्र दास ने सीएम योगी इस बयान को राजनीतिक करार देते हुए कहा कि ये सब 2019 के चुनाव की दृष्टि से कह रहे हैं। विवादित परिसर को किसी को नहीं दिया जा सकता। विवाद होने कारण रिसीवर नियुक्त है। पूरा परिसर अधिग्रहण किया गया है इसलिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बिना किसी को नहीं सौंपा जा सकता हैं।
उन्होंने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि इन्होंने वादा किया था। जब सत्ता में आएंगे तो राममंदिर बनवायेंगे। अब कह रहे हैं कोर्ट मसला इनको दे दे। मोदी जी ने क्यों नहीं कहा कोर्ट अयोध्या मसले को हमको दे दे। ये अब क्यों कह रहे हैं सिर्फ रामभक्तों को प्रलोभन दे रहे,ताकि चुनाव में इनको कोई नुकसान न हो।
बाबरी पक्षकार इकबाल अंसारी ने कहा कि हम लोग भी चाहते हैं कि कोर्ट जल्द फैसला करे। किसी को सौंपने की जरूरत नहीं है। चुनाव का समय नजदीक है। राजनीति बिल्कुल चरम सीमा पर है। बाबरी मस्जिद और रामजन्मभूमि का मसला सुप्रीम कोर्ट में है। फैसला कोर्ट को करना है, सरकारें तो आती जाती रहती हैं। बहुत से सरकारें आयी और गईं। लेकिन कोर्ट सबूतों की आधार पर फैसला करता है।

अयोध्या मामले में केंद्र सरकार की सुप्रीम कोर्ट में अर्जी

अविवादित जमीन से यथास्थिति का आदेश वापस लेने की मांग

 अयोध्या मामले में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर अविवादित जमीन से यथास्थिति का आदेश वापस लेने की मांग की है। केंद्र सरकार ने 67 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था और सिर्फ 2.77 एकड़ जमीन पर विवाद है। बाकी जमीन को रिलीज करने के लिए याचिका दायर की गई है। केंद्र सरकार ने 1993 में इस जमीन का अधिग्रहण किया था। आपको बता दें कि अयोध्या मामले की सुनवाई आज होनी थी लेकिन सुनवाई करने वाली बेंच के सदस्य जस्टिस एसए बोब्डे आज उपलब्ध नहीं हैं जिसकी वजह से आज सुनवाई टल गई है। 25 जनवरी को अयोध्या मामले की सुनवाई करनेवाली 5 जजों की नई बेंच का गठन कर दिया गया था जिसके सदस्य जस्टिस एस ए बोब्डे भी हैं। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच में जस्टिस एसए बोब्डे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर शामिल हैं। पिछले 10 जनवरी को जस्टिस यूयू ललित ने वकील राजीव धवन की ओर से एतराज जताए जाने के बाद खुद ही बेंच से हटने की बात कही थी।

धवन ने कहा था कि 1995 में जस्टिस ललित बतौर वकील यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के लिए पेश हुए थे। जस्टिस यूयू ललित के सुनवाई से हटने की वजह से सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई टाल दी थी। 27 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत के फैसले से अयोध्या मसले पर फैसला सुनाते हुए कहा था कि इस्माइल फारुकी का मस्जिद संबंधी जजमेंट अधिग्रहण से जुड़ा हुआ था। इसलिए इस मसले को बड़ी बेंच को नहीं भेजा जाएगा। जस्टिस अशोक भूषण ने फैसला सुनाया था जो उनके और चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा का फैसला था। जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर ने अपने फैसले में कहा कि इस इस्माईल फारुकी के फैसले पर पुनर्विचार के लिए बड़ी बेंच को भेजा जाए।

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