
बरेली ।इंसान खाने के बिना जिंदा रह सकता है, लेकिन पानी के बिना नहीं। भले ही दुनियां में पानी को अलग -अलग नामों से पुकारा जाता हों लेकिन पानी का एक ही काम हैं वो हैं प्यास बुझाने का। प्यास कोई मज़हब और धर्म नहीं देखती उसे तों बस अपना गला तर करना होता हैं। लेकिन एक प्यासे बच्चे को अपनी प्यास मिटानी इतनी महंगी पड़ सकती थी ये उसे खुद भी नहीं मालूम था। बच्चे का कसूर बस इतना था कि वो धर्म से मुस्लमान था। काश उसे पता होता कि वो जहां पानी पीने जा रहा हैं वहां धर्म देखा जाता हैं इंसानियत नहीं। जबकि इंसानियत यह कहती हैं कि इंसान किसी भी धर्म से ताल्लुक रखता हों पानी पीने के लिए उसका मज़हब नहीं देखा जाता।
लेकिन उत्तर प्रदेश के जिले के गाजियाबाद कस्बे के डासना में मानवता को शर्मसार करने वाली घटना सामने आई ।जिसकी वायरल वीडियो को देखकर देश की अजीबो- गरीब तस्वीर उजागर हुई। एक ख़ुशक गले को पानी की ज़रूरत थी इस बीच प्यासे बच्चे नें अपनी प्यास बुझाने के लिए मंदिर में प्रवेश किया जैसे ही उसने पानी पिया मंदिर परिसर में खड़े दो लोग दौड़ते हुए आए और उन दोनों ने इस बच्चे को बेरहमी से पीटना शुरू कर दिया। जबकि एक नें उसकी पिटाई की वीडियो बनाकर वायरल कर दी। वही बच्चे का गुनाह बस इतना था कि प्यास मिटाने के लिए उसने पानी को तो सही चुना था लेकिन उसका स्थान गलत था। काश उसकी प्यास नें बाहर लगें बोर्ड को देख लिया होता कि यहां मुसलमानों का प्रवेश वर्जित है और यहां प्यास धर्म से तौली जाती है।
शायद हमारा लोकतंत्र यही सीख देता हैं कि खाने पीने की चीज़ो में भी बटवारा करों फिर वो पानी ही क्यों ना हों। मैंने मुस्लिम समुदाय में प्यास के महत्व को जाना तों पता चला कि इमाम हुसैन के साथ कर्बला में क्या घटा इमाम हुसैन को जब यज़ीदी फौज ने कर्बला में घेर लिया उस समय दुश्मन फौज प्यासी थी इमाम हुसैन ने उन्हें पानी पिलाया जिस नदी फुर्रात को इमाम हुसैन ने खरीदा था। उस फुर्रात पर यज़ीद ने अपने सैनिकों का पहरा बैठा कर इमाम हुसैन का पानी बंद करा दिया। 3 दिन गुजर गए इमाम के परिवार के छोटे और मासूम बच्चे प्यार से तड़पने लगे फिर भी इमाम हुसैन ने यज़ीद को अपना खलीफा नहीं माना। तों क्या उन लोगों को मै यज़ीदी मान लूं जिन्होंने उस बच्चे के साथ ऐसा कृत्य किया। फिलहाल मुस्लिम धर्म में यज़ीद नाम को बुरा समझा जाता है। क्योंकि यज़ीद इस्लाम को अपने तरीके से चलाना चाहता था। वह चाहता था लोग खुदा को भूल जाएं और उसे याद रखें।
वही हिंदू समाज की बात करें तो प्यासे को पानी पिलाना बड़े पुण्य का काम हैं। मगर शायद यह इन मंदिर के पैरोंकारों को पता नहीं था। हिंदू धर्म में भी परोपकार को महत्व दिया गया है जिसका अर्थ होता है निस्वार्थ भाव से दूसरों की सहायता करना अपनी शरण में कोई भी आए चाहे वह मित्र हो शत्रु हो कीट,पतंगे देशी,परदेशी,बालक वृद्ध सभी के दुखों का निवारण ही परोपकार कहलाता है साथ ही यदि किसी मनुष्य में यह गुण नहीं है तो उसमें और पशु में कोई फर्क नहीं है। जिसमें अनेक उदाहरण देखने को मिलते हैं राजा रति देव को 40 दिन तक भूखे रहने के बाद जब भोजन मिला तो वह भोजन उन्होंने शरण में आए भूखे अतिथि को दे दिया। दधीचि ने देवताओं की रक्षा के लिए अपनी अस्थियां दे दी। कर्ण ने कवच और कुंडल दान दे दिया ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जो हमें सीख देते हैं।
समाज के पहलू के हिसाब से देखा जाए तो जब किसी जानवर को ज़िबहा किया जाता है तों उसे भी पानी पिलाया जाता हैं। मगर धर्म के रहनुमाओं को यह सब सीखने की ज़रूरत नहीं हैं क्यूंकि उनकी तों अपनी ही अलग किताब हैं जिसे वो पढ़कर जात पात के बटवारे के साथ अब पानी के पीने जैसी योग्य चीज़ पर रोक लगाने लगें।
यह मेरी अपनी राय हैं।

विशन आर्या
सोशल एक्टिविस्ट










