जबलपुर की सुरसाधिका डॉ. श्रुति जौहरी, जिन्होंने ऑक्सफोर्ड तक पहुँचाया हिंदुस्तानी संगीत

दैनिक भास्कर सेवा 

शास्त्रीय संगीत केवल सुरों की साधना नहीं, बल्कि आत्मा का साक्षात्कार है। जब यह साधना जुनून बन जाए और उद्देश्य बन जाए सांस्कृतिक परंपरा को आगे ले जाने का, तब कोई साधिका केवल गायिका नहीं रह जाती, वह सांस्कृतिक दूत बन जाती है। जबलपुर की डॉ. श्रुति जौहरी भी ऐसी ही साधिकाओं में शामिल हैं, जिन्होंने अपने सुरों, लेखनी और शिक्षण के माध्यम से न केवल देश में, बल्कि विदेशों में भी हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की गूंज पहुंचाई है। उन्होंने मंचीय प्रस्तुतियों के साथ-साथ कई महत्वपूर्ण पुस्तकों के ज़रिए संगीत की जटिलताओं को पाठकों तक सहजता से पहुंचाने का कार्य भी किया है।

सुरों की परवरिश बचपन से

डॉ. श्रुति जौहरी का जन्म 15 जुलाई 1969 को मध्यप्रदेश के सांस्कृतिक नगरी जबलपुर में हुआ। उनका परिवार संगीतप्रेमी था, और उनके पिता डॉ. आर. एम. वर्मा न केवल उनके पहले गुरु बने बल्कि उनके भीतर संगीत के बीज भी बोए। बचपन से ही संगीत उनके जीवन का हिस्सा बन गया था।

नौ वर्ष की आयु में उन्होंने पंडित जी. आर. कुलकर्णी से खयाल गायकी की विधिवत शिक्षा लेनी शुरू की, जो कि मैहर घराने से संबद्ध थे। बाद में उन्होंने पंडित शारदा प्रसाद भट्ट से ठुमरी और अन्य गायन शैलियों की गहराई से शिक्षा ली।

संगीत की गंभीर साधना के साथ-साथ उन्होंने अपनी औपचारिक शिक्षा में भी किसी तरह की कमी नहीं छोड़ी। उन्होंने जूलॉजी में एम.एससी. और संगीत में एम.ए. किया, और दोनों ही विषयों में विश्वविद्यालय स्तर पर गोल्ड मेडल हासिल किया। बाद में उन्होंने संगीत में पीएच.डी. भी की।

उन्हें नेशनल एनवायर्नमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (NEERI) में करियर का सुनहरा अवसर मिला था, लेकिन उन्होंने उस मार्ग को त्यागकर संगीत को ही अपना जीवन मार्ग चुना।

दक्षिण में उत्तर भारतीय संगीत की लौ

1994 में डॉ. जौहरी चेन्नई शिफ्ट हो गईं, जहां उन्होंने हिंदुस्तानी संगीत को दक्षिण भारत में लोकप्रिय बनाने का बीड़ा उठाया। यह कार्य आसान नहीं था, लेकिन श्रुति जौहरी ने इसे अपने संकल्प से मुमकिन कर दिखाया।

चेन्नई में उन्होंने प्रसिद्ध कर्नाटिक गायक पद्म भूषण के. जे. यसुदास से लगभग पांच वर्षों तक वॉयस कल्चर की गहन शिक्षा ली। इस दौरान उन्होंने कर्नाटिक संगीत की शैलियों को समझते हुए अपनी गायकी में और निखार लाया।

2001 में उन्होंने चेन्नई में ही ‘गीतांजलि संगीत अकादमी’ की स्थापना की, जो लगभग एक दशक तक दक्षिण भारत में हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत शिक्षा का प्रमुख केंद्र बना रहा। इसके साथ ही वे के.एम. म्यूजिक कंजरवेटरी (संगीतकार ए. आर. रहमान द्वारा स्थापित) में हिंदुस्तानी संगीत विभाग की प्रमुख भी रहीं। वे मद्रास विश्वविद्यालय में विज़िटिंग फैकल्टी के रूप में भी पढ़ाती रही हैं।

देश-विदेश के मंचों पर बिखेरा सुरों का जादू

डॉ. श्रुति जौहरी का संगीत सफर भारत तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय, यूके के डेनिस अर्नोल्ड हॉल में अपनी प्रस्तुति दी। इसके अलावा उन्होंने लिसेस्टर (यूके) के बेलग्रेव नेबरहुड सेंटर, नेशनल पाइपिंग सेंटर, ग्लासगो (स्कॉटलैंड), एशियन सिविलाइजेशन म्यूजियम, सिंगापुर, वाइलोप्पिल्ली संस्कृती भवन (केरल), इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (नई दिल्ली), पुरंदर भवन (बेंगलुरु), भारत भवन (भोपाल), और यूनिवर्सिटी ऑफ मद्रास जैसे प्रतिष्ठित स्थलों पर भी अपनी कला का प्रदर्शन किया है।

शास्त्रीय संगीत के व्याख्यान और कार्यशालाएं

सिर्फ मंचीय प्रस्तुतियों तक सीमित न रहते हुए, डॉ. जौहरी ने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की परंपराओं को समझाने के लिए ‘श्रुति संवाद’ नामक कार्यशाला श्रृंखला चलाई है। श्रुति संवाद के माध्यम से उन्होंने नई पीढ़ी को संगीत से जोड़ने का काम किया।

इन वर्कशॉप्स के माध्यम से वे राग, ताल, घराने, गायन शैली और इतिहास को सरल भाषा में समझाती हैं। ये वर्कशॉप्स नारद गान सभा (चेन्नई), तेनांगुर, डिपार्टमेंट ऑफ विमेन्स स्टडीज, यूनिवर्सिटी ऑफ मद्रास, द म्यूजिक अकैडमी, चेन्नई, रामानुजन ऑडिटोरियम, इंस्टिट्यूट ऑफ मैथेमैटिकल साइंसेज (IMSc) जैसी संस्थाओं में आयोजित हो चुकी हैं।

डॉ. श्रुति इन दिनों प्रोफेशनल गायकों को प्लेबैक सिंगिंग के लिए मार्गदर्शन दे रही हैं। वे उन्हें उन्नत वॉयस कल्चर और शास्त्रीय संगीत की बारीकियों के साथ गहराई से प्रशिक्षण दे रही हैं, ताकि उनकी आवाज़ में परिपक्वता, स्थिरता और भावनात्मक असर आ सके। उनकी देखरेख में कई युवा कलाकारों ने न सिर्फ मंचों पर, बल्कि रिकॉर्डिंग स्टूडियो की दुनिया में भी अपनी अलग पहचान बनाई है।

लेखन में भी रचा इतिहास, किताबें बनीं संदर्भ

संगीत के क्षेत्र में डॉ. श्रुति जौहरी जितनी पारंगत हैं, उतनी ही कुशल लेखिका भी हैं। उनके द्वारा लिखी गई तीन पुस्तकें संगीत प्रेमियों और विद्यार्थियों के बीच खासा लोकप्रिय हैं।

  • ‘एलीमेंट्स ऑफ हिंदुस्तानी क्लासिकल म्यूजिक’ (2011)
  • ‘राग माला’ (2016)
  • ‘फंडामेंटल्स ऑफ हिंदुस्तानी क्लासिकल म्यूजिक’ (2021)

इन पुस्तकों के माध्यम से उन्होंने शास्त्रीय संगीत के जटिल विषयों को बेहद सरल भाषा में प्रस्तुत किया है। उनकी पहली किताब ‘एलीमेंट्स ऑफ हिंदुस्तानी क्लासिकल म्यूजिक’ को सिक्किम यूनिवर्सिटी और पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय के स्नातक पाठ्यक्रम में ‘सुझावित पठन’ के रूप में शामिल किया गया है। ‘राग माला’ में उन्होंने पंडित विष्णु नारायण भातखंडे की प्रसिद्ध कृति क्रमिक पुस्तकमाला का अंग्रेज़ी में रूपांतरण प्रस्तुत किया है ताकि भारतीय और पाश्चात्य दोनों पाठक वर्ग उसे आसानी से समझ सकें। उनकी तीसरी पुस्तक ‘फंडामेंटल्स ऑफ हिंदुस्तानी क्लासिकल म्यूजिक’ भी संगीत के मूलभूत सिद्धांतों को समर्पित है और शिक्षार्थियों के लिए अत्यंत उपयोगी मानी जाती है।

इसके अलावा उन्होंने भारत्यस्य संगीत-विश्वानुबंध यात्रा (२०२३) नामक पुस्तक में भी योगदान दिया, जिसे मुंबई तरुण भारत और भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा प्रकाशित किया गया है। वे समय-समय पर टाइम्स ऑफ इंडिया, इंडियन एक्सप्रेस, और द हिंदू जैसे राष्ट्रीय समाचारपत्रों में शास्त्रीय संगीत पर आधारित लेख भी लिखती रही हैं, जिससे आम पाठक भी संगीत की गंभीरता को सहज रूप से समझ सके।

पुरस्कार और सम्मान

डॉ. जौहरी को उनके योगदान के लिए कई सम्मान प्राप्त हुए हैं, जिनमें शामिल हैं—

  • राज्य युवा उत्सव पुरस्कार, मध्यप्रदेश सरकार
  • कैथेड्रल एक्सीलेंस अवॉर्ड (२०१२) – लायंस क्लब ऑफ मद्रास कैथेड्रल
  • वोकेशनल एक्सीलेंस अवॉर्ड – रोटरी क्लब ऑफ मद्रास, वडापलानी, इत्यादि।

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