कांग्रेस का हो रहा वनवास ख़त्म, महारानी वसुंधरा पर मंडराया महासंकट; खतरे में पड़ी की सीट

झालरापाटन।  राजस्थान विधानसभा चुनाव में झालावाड़ जिले की झालरापाटन सीट पर दिलचस्प मुकाबला देखने को मिल रहा है और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की पारंपरिक सीट खतरे में पड़ती नजर आ रही है।

झालरापाटन विधानसभा क्षेत्र के कलमंडी पंचायत के स्थानीय लोगों ने कहा कि वसुंधरा राजे जब 2003 में झालरापाटन विधानसभा से चुनाव लड़ी थी तब इस पंचायत से एक भी वोट किसी विपक्षी दल को नहीं मिला था लेकिन इस बार हालात अलग है। स्थानीय लोगों ने कहा कि पहले कभी प्रचार के लिए नहीं आते थे लेकिन इस बार वसुंधरा के बेटे, बेटी और बहू गली-गली घूमकर वोट मांग रहे है।

भाजपा के अलावा वसुंधरा परिवार के लोग पहली बार जिस तरह से झालरापाटन में प्रचार में जुटे हैं उससे लग रहा है कि मुख्यमंत्री को आसान जीत नहीं मिलने वाली है।

झालावाड़ वसुंधरा राजे का गढ़ है। इसी लोकसभा इलाके में झालरापाटन सीट है। श्रीमती राजे इस लोकसभा सीट से लगातार पांच बार सांसद रही हैं और उनके बाद इस सीट से उनके पुत्र दुष्यंत सिंह तीन बार से चुनाव जीत रहे हैं। वसुंधरा राजे झालरापाटन सीट से लगातार 2003 से विधायक का चुनाव जीतती आ रही हैं। उनके विजय रथ को रोकने के लिए कांग्रेस कई प्रयोग कर चुकी है, यहां तक कि प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट की मां रमा पायलट भी उनके खिलाफ चुनाव लड़ चुकी हैं लेकिन कामयाबी नहीं मिल सकी है। इसकी वजह यह बताई जाती है कि वसुंधरा राजे का अपने इलाके में सभी जातियों पर बराबर का असर है लेकिन इस बार समीकरण उनके विपरीत जाता दिख रहा है। हालांकि श्रीमती राजे के पुत्र दुष्यंत सिंह इस सीट पर जीतोड़ मेहनत कर रहे है। दुष्यंत सिंह ने यूनीवार्ता से बातचीत में कहा कि झालरापाटन सीट आसानी से जीत रहे है और राज्य में पूर्ण बहुमत से भाजपा की सरकार बन रही है। मुख्यमंत्री की लोकप्रियता सभी जातियों और वर्गों में है।

कांग्रेस ने पूर्व मंत्री जसवंत सिंह के बेटे मानवेंद्र सिंह को झालरापाटन से उम्मीदवार बनाकर मुकाबला रोचक बना दिया है। वसुंधरा सरकार से राजपूतों की नाराजगी का सीधा फायदा कांग्रेस को मिलता दिख रहा है। राजपूतों के विभिन्न संगठनों ने भाजपा के खिलाफ मतदान करने का ऐलान कर दिया है।

कांग्रेस उम्मीदवार सिंह ने यूनीवार्ता से खास बातचीत में कहा है कि सरकार की नीतियों को लेकर राज्य के किसानों में जबरदस्त गुस्सा है। राज्य के किसानों को कांग्रेस से काफी उम्मीदें है। सरकार की गलत नीतियों के कारण लहसुन की फसल की बर्बादी हुई और इसमें घोटाला हुआ। लहसून ख़रीदारी के नाम पर किसानों का ठगा गया।
बाहरी उम्मीदवार के सवाल पर श्री सिंह ने कहा कि प्रचार के दौरान यहां के लोगों का जिस तरह का प्यार, स्नेह और जनसमर्थन मिल रहा है उससे साफ पता चल रहा है कि वसुंधरा के प्रति लोगों में गुस्सा है। उन्होंने कहा कि वह राजस्थान से हैं और यहां की सभ्यता संस्कृति और लोगों के दुख दर्द को बेहतर समझते हैं।

झालरापाटन की सीट पर करीब दो लाख 73 हजार मतदाता हैं जिनमें सबसे अधिक 45,000 मुसलमान हैं। इसके अलावा 17,000 राजपूत, 20,000 डांगी, अनुसूचित जाति 35,000, अनुसूचित जनजाति 10,000, ब्राह्मण 28,000, गुर्जर 22,000 तथा पाटीदार 30,000 मतदाता हैं।

वसुंधरा सरकार से राजपूतों की खुली नाराजगी से साफ पता चल रहा है कि राजपूतों का एकमुश्त वोट भाजपा से खिसक गया है। राजपूतों में नाराजगी की वजह राजमहल भूमि विवाद, पद्मावत विवाद, आनंदपाल सिंह मुठभेड़ तथा राज्‍य पार्टी प्रमुख के लिए भाजपा के केंद्रीय नेतृत्‍व की पसंद गजेंद्र सिंह शेखावत का वसुंधरा राजे द्वारा विरोध शामिल हैं। राजस्‍थान की कुल जनसंख्या का करीब 12 प्रतिशत राजपूत समुदाय हैं और करीब 24 सीटों पर राजपूतों का अच्‍छा-खासा प्रभाव है।

मुस्लिम वोटों का ज्यादातर हिस्सा कांग्रेस के पक्ष में ही जाने की संभावना है। डांगी समुदाय अपनी संख्या के हिसाब से अहमियत ना मिलने की वजह से खुद उपेक्षित महसूस करता रहा है इसलिए इस बार अपनी ताकत दिखाने के लिए डांगी समुदाय ने गोवर्धन डांगी को निर्दलीय उम्मीदवार बनाया है। इस प्रकार भाजपा को मिलने वाला डांगी समुदाय का वोट भी खिसक गया है।

ब्राह्मण समुदाय का बड़ा हिस्सा भाजपा को ही मतदान करता था लेकिन इस बार ब्राह्मण वोटों में भी सेंध लग गई है। ब्राह्मणों का लोकप्रिय नेता और विधायक घनश्याम तिवाड़ी ने वसुंधरा सरकार के प्रति नाराजगी व्यक्त करते हुए भाजपा छोड़कर भारत वाहिनी पार्टी बना ली है। झालरापाटन में श्री तिवाड़ी के सबसे करीबी माने जाने वाले प्रमोद शर्मा ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है। इससे ब्राह्मणों का एक बड़ा हिस्सा कांग्रेस के पक्ष में जाता दिखाई दे रहा है।
कांग्रेस ने पाटीदार समुदाय को साधने के लिए गुजरात में पाटीदारों के नेता हार्दिक पटेल को मैदान में उतारा है। हार्दिक पटेल कांग्रेस के पक्ष में वोट की अपील कर रहे हैं।

सचिन पायलट के मुख्यमंत्री की दौड़ में सबसे आगे होने की वजह से गुर्जर समुदाय भी इस बार कांग्रेस की ओर अपना रुझान बनाये हुए है। झालरापाटन सीट पर 22 हजार गुर्जर वोटों से बड़ा उलट फेर हो सकता है। वहीं दूसरी तरफ केंद्र सरकार की नीतियों को लेकर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों में भी भाजपा को लेकर खासी नाराजगी देखने को मिल रही है।

झालरापाटन के जिस भी इलाके में जाइए, सरकार किसकी बन रही है, इससे कहीं ज्यादा पूछा जाने वाला सवाल यह बन चुका है कि आखिर ‘रानी’ यानी वसुंधरा राजे का क्या होगा? जहां भी चुनावी चर्चा चल रही होती है, वहां यह बात आखिर तक आ ही जाती है कि झालरापाटन में मुकाबला तो जोर का चल रहा है। यहां की फिजाओं में 1977 के रायबरेली चुनाव और 2016 के दिल्ली चुनाव के किस्से तैर रहे हैं। कहा जा रहा है कि हार तो कोई भी सकता है। हालांकि भाजपा इन किस्सों को ‘मुंगेरी लाल के सपने’ बता रही है। दरअसल, वर्ष 1977 में यूपी की रायबरेली सीट पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी चुनाव हार गई थीं और वर्ष 2016 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में केजरीवाल लहर के आगे तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित भी हार चुकी हैं। मानवेंद्र सिंह के मुताबिक कुछ वैसी ही सत्ता विरोधी लहर राजस्थान में भी चल रही है।

कांग्रेस मानवेंद्र सिंह को उनके इलाके से बहुत दूर लाकर वसुंधरा राजे के खिलाफ झालरापाटन से चुनाव लड़ाने के पीछे जसवंत के जरिये पैदा हुई सहानुभूति को भुनाने की कोशिश में है। वर्ष 2014 में बीजेपी ने जब उन्हें टिकट नहीं दिया था, तो भी वह बाड़मेर सीट से बतौर निर्दलीय चुनाव लड़े थे। हालांकि, वह हार गए थे, लेकिन मोदी लहर के बावजूद वह चार लाख से ज्यादा वोट पाने में कामयाब हुए थे।

वसुंधरा राजे को यहां के अपने मतदाताओं पर इतना भरोसा है कि वह कहती हैं कि यह हमारा घर है। नामांकन के बाद एक बार भी यहां न आऊं, तो भी जीत जाऊंगी लेकिन मानवेंद्र सिंह लड़ाई को कांग्रेस बनाम वसुंधरा या कांग्रेस बनाम भाजपा बनाने की बजाय जसवंत सिंह बनाम वसुंधरा राजे बनाना चाहते हैं।

उन्हें लगता है कि जसवंत सिंह के बहाने वह राजपूत स्वाभिमान को जगा सकते हैं। ऐसे भी राजस्थान में इस वक्त राजपूतों के बारे में कहा जा रहा है कि वसुंधरा राजे को लेकर वे नाराज हैं। इलाके में खास तौर से राजपूत समुदाय की जो बैठकें हो रही हैं, उनमें मानवेंद्र सिंह की टीम जसंवत सिंह के ‘अपमान’ की कहानी बताना नहीं भूलती। समाज के लोगों को बताया जा रहा है कि दंभ में चूर होकर किस तरह से वसुंधरा राजे ने एक बुर्जुग राजपूत को अपमानित किया। वैसे तो दोनों परिवारों के बीच रिश्ते कभी भी सहज नहीं रहे, लेकिन आग में घी डालने का काम वर्ष 2014 में हुआ जब भाजपा ने जसंवत सिंह को बाड़मेर से टिकट काट दिया और यह आरोप लगा था कि श्रीमती राजे के कारण ऐसा हुआ।  गौरतलब है कि राज्य में सात दिसंबर को मतदान है और वोटों की गिनती 11 दिसंबर को होगी।

 

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