आखिर कैसे रुकेगा कुरावली में सड़क किनारे का अतिक्रमण

पक्की दुकान में बैठे हुये दुकानदार हैं अतिक्रमण के जिम्मेदार

दुकान के आगे हथठेला लगाने वाले से वसूल रहे महीनादारी

प्रवीन पाण्डेय/मुकेश चतुर्वेदी

मैनपुरी- जनपद के कुरावली में जीटी रोड पर अतिक्रमण के कारण रोज लगने वाला जाम नगर व क्षेत्र के लोगों को परेशान कर रहा है। लेकिन कुछ गतिविधियों से देखने में लगता है कि शायद जीटी रोड पर लगने वाले जाम से नगर व क्षेत्र के लोगों को निजात नहीं मिल पाएगी। क्योंकि अतिक्रमण के कारण रोज लगने वाले जाम के लिए कोई और जिम्मेदार नही बल्कि जीटी रोड किनारे बनी पक्की दुकानों में बैठे दुकानदार ही जिम्मेदार हैं। जिसकी एक खास वजह निकलकर सामने आती है। यह दुकानदार पक्की दुकान के आगे हथठेला लगाने वाले से महीनादारी के तौर पर एक मोटी रकम वसूल रहे हंै।

जितना पक्की दुकान का किराया नहीं है उससे चार गुना यह दुकानदार हथठेला वाले से महीनादारी वसूल रहे हैं। कुरावली के मध्य से गुजरने वाले जीटी रोड पर रोज ही जाम लगने से बहुत दयनीय हालत हो जाती है। लगभग पूरे दिन जीटी रोड पर वाहन रेंग रेंगकर चलते हैं। नगर में जाम लगने का कारण कोई और नहीं रोड किनारे लगने वाले हथठेला या फड़ की दुकान लगाने वाले लोग हंै। अगर यह लोग हथठेला या फड़ वाली दुकान जीटी रोड किनारे लगा रहे हैं। तो वह दुकान लगवाने वाला कोई और नहीं बल्कि हथठेला के पीछे बनी पक्की दुकान वाला दुकानदार हैं। जो एक हथठेला लगाने वाले से तीन से चार हजार रुपए महीना वसूल रहा है। ऐसा नजारा शायद पूरे ही जीटी रोड के किनारे का है।

चाहे हथठेला या फड़ वाला दुकानदार सभी पक्की दुकान वाले को हजारों रुपए महीनादारी वसूल रहे हैं। क्योंकि पिछले समय देखने को मिलता था। किसी दुकान के आगे हथठेला खड़ा होने पर पक्की दुकान वाला कहता था कि मेरे दुकान की आढ़ हो गई। इस ठेला को आगे पीछे लगाओ। लेकिन आगे पीछे लगाने की कहने वाला दुकानदार अब खुद दुकान के आगे हथठेला लगवा रहा है। क्योंकि तीन से चार हजार रुपए महीना जो मिल रहे हंै। इतने रुपए मिलने के बाद दुकान के सामने आढ़ नहीं हो रही है।

एंबूलेन्स फंसने पर होता है बुरा हाल
नगर के जीटी रोड पर रोज लगने वाले जाम में जब किसी मरीज को उसकी चंद सांसें बाकी होने पर लेकर किसी बड़े हाॅस्पीटल जा रही एंबूलेन्स फंस जाती है। तो मरीज की सांसे तो बाद में रुकती है। उसके परिजनों की सांसे पहले रुक जाती हंै। ऐसा वाक्या तो नगर में आए दिन देखने को मिल रहे हंै।

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