
राजेश बंसल, प्रबंध निदेशक, मिडास फिनसर्व प्राइवेट लिमिटेड
वित्तीय क्षेत्र किसी भी अर्थव्यवस्था की रीढ़ होता है, खासकर भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्था के लिए, जहां विकास के लिए बड़ी पूंजी की आवश्यकता होती है। पिछले कुछ दशकों में, खासकर 2008-09 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद, भारत के वित्तीय क्षेत्र ने जबरदस्त प्रगति की है। 2024 के अंत तक, देश के सभी बैंकों की कुल संपत्ति लगभग 3.1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर (3.1 लाख करोड़ डॉलर) थी, जो देश की कुल GDP का 85% है। यह दिखाता है कि अर्थव्यवस्था का वित्तीयकरण सही दिशा में आगे बढ़ रहा है। भारत का वित्तीय समावेशन सूचकांक भी 2017 में 43.4 से बढ़कर 2024 में 64.2 हो गया है, जो इस क्षेत्र की मजबूती और आगे मौजूद बड़े अवसरों को दर्शाता है।
पिछले पांच वर्षों में, डिजिटल लेनदेन और घरेलू बचत के वित्तीयकरण में तेजी आई है, जिससे भारत के वित्तीय क्षेत्र को नई गति मिली है। वित्तीय वर्ष 2024 में, UPI के माध्यम से 2.9 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर (2.9 लाख करोड़ डॉलर) के 150 अरब से अधिक लेनदेन किए गए। इसके अलावा, भारतीय घरेलू निवेशकों के पास अब 17.5 करोड़ से अधिक डीमैट खातों के जरिए सूचीबद्ध कंपनियों के कुल बाजार पूंजीकरण (मार्केट कैप) का लगभग एक-चौथाई हिस्सा है, जो 4.6 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर (~4.6 लाख करोड़ डॉलर) का है। ये आंकड़े ऐतिहासिक रूप से अभूतपूर्व हैं, लेकिन अगर हम अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से तुलना करें, तो इस क्षेत्र के आगे और अधिक विस्तार की संभावनाएं स्पष्ट रूप से नजर आती हैं।
भारत के आर्थिक विकास में वित्तीय क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए, इसे निफ्टी 50 जैसे बेंचमार्क सूचकांकों में सबसे अधिक वेटेज प्राप्त है। वैश्विक वित्तीय संकट के बाद से बीते 16 वर्षों में, निफ्टी फाइनेंशियल सर्विसेज इंडेक्स ने निफ्टी 50 की तुलना में 160% अधिक रिटर्न दिया है। 2009 से 2024 के बीच, निफ्टी 50 ने जहां 797% का रिटर्न दिया, वहीं निफ्टी फाइनेंशियल सर्विसेज इंडेक्स ने 1285% का शानदार रिटर्न दिया। यह तब हुआ जब इस दौरान दुनिया को सबसे खराब क्रेडिट संकट और कोविड-19 जैसी वैश्विक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। खासतौर पर, पिछले चार वर्षों में वित्तीय क्षेत्र का प्रदर्शन काफी मजबूत रहा है। यह मुख्य रूप से परिसंपत्तियों की गुणवत्ता में सुधार, मार्जिन में वृद्धि और क्रेडिट ग्रोथ की वजह से संभव हुआ है।
पिछले एक साल में, वित्तीय क्षेत्र की वृद्धि कुछ समय के लिए धीमी हुई, जिसका मुख्य कारण नकदी की तंगी, संपत्तियों की गुणवत्ता पहले ही अपने सर्वोत्तम स्तर पर पहुंच जाना, जिससे सुधार की संभावनाएं सीमित हो गईं, आरबीआई द्वारा असुरक्षित ऋणों पर लगाए गए प्रतिबंध और माइक्रोफाइनेंस सेक्टर में हुए कुछ व्यवधान रहे। हालांकि, हाल की घटनाएं संकेत देती हैं कि यह क्षेत्र फिर से मजबूती के साथ आगे बढ़ने और नेतृत्व करने के लिए तैयार है।
आरबीआई ने नकदी प्रवाह को नियंत्रित तरीके से बढ़ाने का कार्यक्रम शुरू किया है। इसके तहत सीआरआर में कटौती की गई है और स्थायी नकदी बढ़ाने के लिए ओपन मार्केट ऑपरेशन की घोषणा की गई है। वित्त वर्ष 2026 के बजट में व्यक्तिगत करदाताओं को कर में राहत देकर बड़े पैमाने पर आर्थिक प्रोत्साहन दिया गया है, जिससे सिस्टम में 45 हजार करोड़ रुपये की अतिरिक्त नकदी आने की उम्मीद है। इसके साथ ही सरकार ने 8वें वेतन आयोग का गठन किया है, जिसकी सिफारिशें संभवतः 2026 से लागू होंगी। इससे लाखों सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों के वेतन में उल्लेखनीय बढ़ोतरी होगी। हाल ही में जारी आर्थिक सर्वेक्षण में भी इस बात पर जोर दिया गया है कि निजी क्षेत्र के वेतन में कंपनियों के मुनाफे के अनुसार वृद्धि नहीं हुई है, जिससे निजी कंपनियों को भी वेतन बढ़ाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। इन सभी पहलुओं से वित्तीय क्षेत्र की वृद्धि को जबरदस्त गति मिलेगी, जिससे ऋण और जमा राशि में तेज उछाल देखने को मिल सकता है और मुनाफे की दर में सुधार होगा।
भारतीय वित्तीय सेवा क्षेत्र एक बड़े बदलाव की दहलीज पर खड़ा है, जहां इसे तेजी से विकसित होती तकनीक, बदलते उपभोक्ता व्यवहार और अनुकूल सरकारी नीतियों का समर्थन मिल रहा है। जैसे-जैसे हम ‘विकसित भारत’ के लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं, वित्तीय क्षेत्र जीडीपी की दोगुनी गति से विकास करने के लिए तैयार है, जो निवेशकों के लिए शानदार अवसर पेश करेगा।
वित्तीय क्षेत्र के लिए एक और सकारात्मक पहलू इसका मूल्यांकन (वैल्यूएशन) है। हालिया गिरावट और अपेक्षाकृत कमजोर प्रदर्शन के कारण, इस सेक्टर का मूल्यांकन ऐतिहासिक औसत से काफी नीचे आ गया है। मजबूत विकास संभावनाओं, उचित मूल्यांकन और अर्थव्यवस्था में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए, हमारा मानना है कि वित्तीय सेवा क्षेत्र मध्यम से लंबी अवधि के लिए निवेशकों के लिए एक आकर्षक अवसर बना रहेगा।