वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर करीब 160 तलाकशुदा पुरुषों ने हाल ही में अपनी पूर्व (लेकिन जीवित) पत्नियों का ‘अंतिम संस्कार’ किया है. इनकी पत्नियां जीवित हैं और इन्हें छोड़ चुकी हैं. पूर्व पतियों का कहना है वे फेमिनिज्म की बुराइयों से छुटकारा पाने के लिए धार्मिक क्रिया पूरी किए.
देश के अलग-अलग हिस्सों से आए और सेव इंडिया फेमिली फाउंडेशन (एसआईएफएफ) एनजीओ से जुड़े लोगों ने अपनी पूर्व पत्नियों के ‘पिंड दान’, ‘श्राद्ध’ आदि की रस्में गंगा के तट पर किया. उन्होंने कहा कि शादी की बुरी यादों से छुटकारा पाने के लिए भी वे ऐसा कर रहे हैं.
एसआईएफएफ के संस्थापक राजेश वखारिया कहते हैं
कहा जाता है कि भारत एक पितृसत्तात्मक सोसायटी है, लेकिन पतियों के अधिकारों को सुरक्षा देने के लिए कोई कानून नहीं है. दहेज विरोधी कानून का दुरुपयोग हो रहा है.
एक तांत्रिक रस्म ‘पिशाचिनी पूजा’ भी इन लोगों ने किया. एसआईएफएफ और वास्तव फाउंडेशन के अध्यक्ष अमित देशपांडे ने टीओआई से कहा कि मणिकर्णिका घाट पर उन्होंने बुरी यादों से अलगाव के लिए पूजा की.